छह साल पुरानी योजना अब बनी जनता की परेशानी का कारण, मानसून से पहले हालात चिंताजनक
हमारी चौपाल विशेष संवाददाता, देहरादून
देहरादून, 21अप्रैल 2025 : उत्तराखंड की राजधानी देहरादून इन दिनों विकास और अव्यवस्था के दो पाटों के बीच फंसी नज़र आ रही है। एक ओर उत्तराखंड पावर कॉर्पोरेशन लिमिटेड (UPCL) की बहुप्रतीक्षित परियोजना—मुख्य मार्गों की बिजली लाइनों को भूमिगत करने का कार्य प्रारंभ हो चुका है, तो दूसरी ओर इस कार्य की प्रक्रिया और उसकी टाइमिंग ने शहरवासियों को मुसीबतों की भंवर में धकेल दिया है। सवाल यह नहीं है कि बिजली लाइनें भूमिगत होनी चाहिए या नहीं, सवाल यह है कि काम कैसे हो रहा है, कब हो रहा है, और किस कीमत पर हो रहा है?
इस योजना का इतिहास—वर्ष 2017 से अब तक
इस परियोजना की नींव मई 2017 में पड़ी थी, जब तत्कालीन केंद्रीय ऊर्जा राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) ने इंटीग्रेटेड पावर डेवलपमेंट स्कीम (IPDS) के तहत देहरादून, हरिद्वार और नैनीताल जैसे शहरों की बिजली लाइनों को भूमिगत करने का सुझाव दिया था। उद्देश्य स्पष्ट था—शहरों की सुंदरता बढ़े, तारों के जंजाल से मुक्ति मिले, और आंधी-तूफानों से बार-बार होने वाली बिजली बाधाओं को रोका जा सके।
UPCL ने इस निर्देश पर तेजी से कार्य किया और 1800 करोड़ रुपये की विस्तृत कार्ययोजना तैयार कर केंद्र सरकार को भेजी। इस योजना में केवल देहरादून के लिए ही 900 करोड़ रुपये का प्रावधान था। 33 केवी और 11 केवी की प्रमुख लाइनों के साथ-साथ एलटी (लो टेंशन) लाइनों को भी भूमिगत करना प्रस्तावित था। लेकिन योजना जल्द ही वित्तीय अड़चनों में फंस गई। पावर फाइनेंस कॉर्पोरेशन (PFC) ने इतनी बड़ी धनराशि देने से हाथ खड़े कर दिए।
इसके बाद योजना वर्षों तक सरकारी फाइलों में धूल फांकती रही। अंततः वर्ष 2023 में यह परियोजना एक बार फिर सक्रिय हुई, और राज्य सरकार व UPCL के निदेशक मंडल की बैठक में इसे नए सिरे से स्वीकृति मिली। इस बार परियोजना की लागत करीब 500 करोड़ रुपये तय की गई, जिसमें से 80% धनराशि एशियन डेवलपमेंट बैंक (ADB) द्वारा वहन की जानी है। शेष 20% रकम UPCL अपने संसाधनों से खर्च करेगा। अब यह प्रस्ताव केंद्र सरकार की इकोनॉमिक अफेयर्स कमेटी के पास भेजा गया है और प्रारंभिक स्वीकृति के साथ कार्य शुरू हो चुका है।
विकास की आड़ में अव्यवस्था का विस्तार
परियोजना की मंशा भले ही सराहनीय हो, लेकिन इसकी क्रियान्वयन शैली और समय ने जनता को नाराज़ कर दिया है। चारधाम यात्रा की तैयारियों के बीच, जब देहरादून राज्य का मुख्य प्रवेशद्वार बन चुका है, तब पूरे शहर की प्रमुख सड़कों को खोद डाला गया है। सड़कों के किनारे उखड़ी हुई टाइल्स, बिखरी मिट्टी, खुले गड्ढे और मलबे के ढेर अब राजधानी की नई पहचान बनते जा रहे हैं।
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की गड्ढा-मुक्त सड़क अभियान के अंतर्गत जो सड़कों की मरम्मत और सौंदर्यीकरण हुआ था, वह सब अब बर्बाद होता दिख रहा है। वन विभाग द्वारा लगाए गए पौधे उखाड़ दिए गए, पीडब्ल्यूडी द्वारा लगाई गई नई टाइल्स हटाई जा चुकी हैं, और अब बची-खुची सड़कें भी भूमिगत लाइन बिछाने के नाम पर तबाह कर दी गई हैं।
ट्रैफिक पुलिस की परेशानी,जनता की हताशा
परिस्थितियां इस कदर बिगड़ गई हैं कि शहर की ट्रैफिक पुलिस भी बेबस है। जहां-जहां खुदाई चल रही है, वहां लंबा ट्रैफिक जाम आम हो चुका है। स्कूली बच्चों की वैन, ऑफिस जाने वाले नागरिक, और आपातकालीन वाहनों के लिए भी रास्ता निकालना दूभर हो गया है। सामान्य दिनों में भी जाम की स्थिति गंभीर रहती है, अब हालात बद से बदतर हो गए हैं।
विभागीय समन्वय की कमी,जनता भुगते
देहरादून में पिछले एक वर्ष के भीतर यही देखा गया है—एक विभाग काम करता है, दूसरा उसे तोड़ देता है। पहले पीडब्ल्यूडी सड़कें ठीक करता है, फिर वन विभाग पौधारोपण के नाम पर टाइल्स उखाड़ता है, और अब UPCL ने बिजली के तार डालने के नाम पर वहीं से खुदाई शुरू कर दी है। कहीं कोई ठोस तालमेल नहीं, न कोई संयुक्त कार्ययोजना। आखिरकार, इस अराजकता का बोझ जनता के सिर है, जिसने टैक्स दिया, वोट दिया, और अब त्रास झेल रही है।
कोई तालमेल नहीं,विभागों की अलग-अलग चाल
देहरादून की विडंबना यही है कि यहां विभाग अलग-अलग दिशा में दौड़ते हैं। कोई विभाग सड़क बनाता है, दूसरा टाइल्स लगाता है, तीसरा पौधारोपण करता है और चौथा खुदाई। लेकिन इन कार्यों के बीच कोई समन्वय नहीं है। कोई मास्टर प्लान नहीं, कोई संयुक्त समीक्षा नहीं, और न ही कोई सार्वजनिक सूचना प्रणाली।
जनता बार-बार यह सवाल पूछ रही है—जब मानसून आने वाला है, तब इस प्रकार की खुदाई क्यों? क्या इस बात की गारंटी है कि खुदी हुई सड़कों की मरम्मत बारिश से पहले हो जाएगी? अगर नहीं, तो क्या यह जानबूझकर आम आदमी को परेशानी में झोंकने की साज़िश नहीं है?
एक विनम्र पर प्रखर अपील
हमारी चौपाल इस समाचार के माध्यम से सरकार, प्रशासन और जिम्मेदार विभागों से मांग करता है कि—
कार्ययोजना को चरणबद्ध और सुव्यवस्थित किया जाए।
विभागों के बीच समन्वय स्थापित किया जाए ताकि एक ही स्थान पर बार-बार काम न हो।
जनता को नियमित रूप से जानकारी दी जाए कि कौन-सा कार्य कब और कहां होगा।
चारधाम यात्रा और मानसून को ध्यान में रखते हुए खुदाई कार्यों की प्राथमिकता तय की जाए।
कार्यस्थलों पर सुरक्षा मानकों का पालन हो और अस्थायी सड़क सुधार की व्यवस्था तुरंत की जाए।
उत्तराखंड की जनता ने विकास के नाम पर बलिदान देने की आदत बना ली है, लेकिन यह समय है कि सरकार जनता की सहनशीलता की परीक्षा लेना बंद करे। टैक्स देने वाला नागरिक, सड़कों पर जाम में फंसी गर्भवती महिला, स्कूल जाता बच्चा—इनकी आवाज़ सरकार तक पहुंचे, यही हमारा उद्देश्य है।