देहरादून, 20अप्रैल 2025(हमारी चौपाल )शिमला बायपास से सटे देहरादून के चकमंशा सिंघनिवाला गांव में लोग आज भी पानी की एक-एक बूंद के लिए जूझ रहे हैं। भले ही मुख्यमंत्री 24 घंटे पेयजल आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए जी-जान से जुटे हों, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही है।
सुबह 7 बजे से पानी नहीं, रात 7:15 तक कोई सुध नहीं!
रविवार सुबह 7:00 बजे से गांव की पेयजल आपूर्ति पूरी तरह ठप है। जब गांव वालों ने शाम 7:15 बजे लाइनमैन को फोन कर जानकारी दी, तो जवाब मिला—”जीई को सुबह 10 बजे ही सूचित कर दिया गया था।” सवाल ये है कि फिर पूरे दिन में मरम्मत क्यों नहीं हुई?
दो महीने पहले भी यही बहाना: ’12 खराब है’
शाम को दोबारा फोन करने पर जवाब मिला—”12 खराब है।” चौंकाने वाली बात ये है कि यही ’12’ दो महीने पहले मार्च में भी ‘खराब’ हो चुकी थी, और तब भी गांववासियों को 2 से 3 दिन बिना पानी के रहना पड़ा था। सूत्रों का कहना है कि हर बार बहाना बनाकर ’12 खराब’ का खेल खेला जाता है, जबकि असल मरम्मत न के बराबर होती है।
जनता की शिकायत पर ही होती है हरकत, वर्ना अधिकारी मौन!
जब कोई आम ग्रामीण शिकायत करता है, तभी विभाग की नींद खुलती है। वरना अधिकारीगण, ठेकेदार और लाइनमैन मिलकर जनता को ‘टालो नीति’ में उलझाए रहते हैं।
बिल भी नहीं आते, उपभोक्ता खुद करता है कॉल… और फिर लेट फीस!
यहाँ तक कि 7-8 महीनों तक पानी के बिल भी नहीं दिए जाते। उपभोक्ताओं को खुद फोन कर पूछना पड़ता है—”बिल आया या नहीं?” जवाब मिलता है—”आपका एरिया कभी हरबर्टपुर में आता है, कभी सहसपुर में, इसलिए वितरण नहीं हो पा रहा।” मगर जब उपभोक्ता बिल मांगता है, तो उस पर लेट फीस भी ठोक दी जाती है! आखिर ये जिम्मेदारी किसकी है? क्या उपभोक्ता विभाग की लापरवाही की कीमत चुका रहा है?
मुख्यमंत्री की मेहनत को पलीता लगाने में जुटे विभागीय अधिकारी?
जब मुख्यमंत्री प्रदेश को 24 घंटे जल आपूर्ति देने के मिशन पर हैं, ऐसे में देहरादून जैसे शहर के भीतर एक गांव को लगातार पानी से वंचित रखना सीधे तौर पर मुख्यमंत्री की नीतियों को फेल करने जैसा है। क्या ये साजिशन लापरवाही है? क्या अधिकारियों की जवाबदेही तय होगी?
आम जन की माँग :
पेयजल विभाग के प्रमुख अभियंता को तत्काल इस क्षेत्र का निरीक्षण कर जिम्मेदारों पर कार्रवाई करनी चाहिए। साथ ही गांव में नियमित जल आपूर्ति सुनिश्चित की जाए, अन्यथा उग्र आंदोलन के लिए ग्रामीण बाध्य होंगे।