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मौत को हरा अन्नपूर्णा फतह कर आई बलजीत

राष्ट्रीय न्यूज़ सर्विस{RNS}

अरुण नैथानी

 

सोशल मीडिया पर उनको श्रद्धांजलि देने का सिलसिला थम नहीं रहा था। उनके साथ ही लापता आयरलैंड के पर्वतारोही का शव बरामद हो चुका था। जिस इलाके में वह लापता हुई थी, उसे डेथ जोन कहा जाता है। दुनिया की खतरनाक चोटियों में शुमार नेपाल की अन्नपूर्णा चोटी पर लापता हिमाचल की पर्वतारोही बेटी को लेकर कयास लगाये जा रहे थे कि अब वह नहीं लौटेगी। वैसे एक खास ऊंचाई पर विकट हालात में इतने समय तक किसी का जीवित रह पाना संभव ही नहीं होता। बशर्ते कोई करिश्मा न हो। दरअसल, एक खास ऊंचाई के बाद बिना ऑक्सीजन के खतरनाक चोटियों पर चढ़ाई करने वाले पर्वतारोहियों के हाई ऑल्टीट्यूड सेरिब्रल एडिमा का शिकार होने का खतरा बढ़ जाता है। यह स्थिति इतनी भयावह होती है कि आपका दिमाग आपके ही विरुद्ध काम करना शुरू कर देता है। दिमाग सामान्य संवेदनशीलता भी खो देता है। फिर कल्पना की ऐसी दुनिया में ले जाता है, जो मौत की राह बन सकती है। इस स्थिति में थोड़ी देर की नींद भी पर्वतारोही को मौत के आगोश में ले जाती है। ऐसी ही कल्पना इस माह के तीसरे हफ्ते में हिमाचल की पर्वतारोही बलजीत को लेकर भी की जा रही थी।

 

मगर मजबूत इरादों व आत्मविश्वास से भरी बलजीत मौत को हराकर लौट आई। उसने तमाम पर्वतारोहियों व आम लोगों को संदेश दिया कि मनोबल से हारी लड़ाई भी जीती जा सकती है। लगातार अपने दिमाग के प्रतिरोध से जूझते हुए वह निरंतर खुद को बचाने के प्रयास में लगी रही। दिमाग के पूरी तरह साथ न देने के बावजूद उसने टूर पर्वतारोहण में सहयोग करने वाली कंपनी से संपर्क साधने में सफलता पाई। आखिरकार सात हजार छह सौ मीटर की ऊंचाई पर उन्हें हेलिकॉप्टर के जरिये बचा लिया गया। इस स्थान पर वह अद्र्धचेतन अवस्था में गिरते-पड़ते पहुंची। इस तरह वह डेथ जोन से बाहर निकली। दरअसल, एनसीसी के दौरान मिले सैन्य प्रशिक्षण और हिमाचल की पृष्ठभूमि ने उसे इतना मजबूत बनाया कि वह अंतिम समय तक मौत से लड़ती रही। उसके योग के ज्ञान ने भी उसे आंतरिक ताकत दी।दरअसल, कई दुरुह पहाडिय़ों पर तिरंगा फहरा चुकी जीवटता की धनी बलजीत ने इस बार अन्नपूर्णा चोटी पर बिना ऑक्सीजन के चढऩे का मन बनाया था। लेकिन पर्वतारोहण में मदद करने वाली कंपनी ने उनके जीवन के साथ खिलवाड़ किया। चोटी पर चढऩे में सहयोग करने वाले अनुभवी शेरपा उन्हें कंपनी ने उपलब्ध नहीं कराये। नौसिखिये और गैरजिम्मेदार शेरपाओं ने चोटी फतह करने के बाद लौटते वक्त उनकी जान जोखिम में डाल दी। उनके शरीर पर अधिक ऊंचाई पर होने वाली बीमारी का प्रभाव दिखने लगा था। दरअसल, समुद्रतल से एक खास ऊंचाई पर पहुंचने के बाद शरीर में ऑक्सीजन तीव्र गति से घटने लगती है, जिससे दिमाग पर खासा प्रतिकूल असर दिखता है। पर्वतारोहियों का खून जमने से शरीर को लकवा तक मार जाता है।दरअसल, मौत के मुंह से बलजीत की वापसी उसके आत्मबल, एनसीसी के बाद सैन्य प्रशिक्षण, पहाड़ के परिवेश में जीवन-यापन और भयावह परिस्थितियों से साम्य बैठाने के अद्भुत गुण से संभव हो पायी। वह बिना आक्सीजन के घातक परिस्थितियों में शिखर तक की सौ मीटर की दूरी 24 घंटे में पूरी कर सकी। ऐसे हालात में जब जटिल परिस्थितियों में उसका दिमाग भी साथ नहीं दे रहा था, वह हाई ऑल्टीट्यूड सेरेब्रल एडिमा की शिकार हो रही थी।

 

उसकी लड़ाई सिर्फ बेहद दुरुह अन्नपूर्णा चोटी की खतरनाक स्थितियों से ही नहीं थी बल्कि उसका दिमाग भी उसके विरुद्ध खड़ा हो गया था। वह दिमाग से भी लड़ रही थी। साढ़े सात हजार मीटर की ऊंचाई पर दिमाग भरमा रहा था कि वह अपने कैंप में लौट आई है। उसे कुछ समय के लिये नींद भी आई। ऐसी स्थितियों में अक्सर पर्वतारोही जान गंवा देते हैं। मगर सेना का प्रशिक्षण उसके काम आया। वह दिमाग की साजिशों से लड़ती रही। वह अपने शरीर को नीचे की ओर घसीट रही थी। वह कुछ मीटर फिसल कर गिरी भी, लेकिन सुरक्षा के लिये बांधे एंकर ने उसे खाइयों में गिरने से बचाया।फिर पर्वतारोहियों की मदद के लिये दिये गये यंत्र गार्मिन डिवाइस के मदद से उसने मददगार कंपनी से संपर्क साधा और आपातकालीन बचाव की गुहार लगायी। कंपनी के आपातकालीन फोन से संपर्क नहीं हुआ तो दूसरे नंबर पर संपर्क साधा। एक घंटे तक कोई जवाब नहीं मिला। खाने-पीने का सामान खत्म हो चुका था। लेकिन परिवार द्वारा दिये गये जीवटता के संस्कारों ने उसे मदद की। उसका दृढ़ विश्वास था कि पर्वत किसी की जान नहीं लेना चाहते हैं। हालांकि खतरनाक अन्नपूर्णा पर्वत पर पर्वतारोहियों की मृत्यु दर पच्चीस फीसदी है। वह खुद को घसीटकर उतर रही थी कि उसका संदेश मिलने के बाद बचाव के लिये हेलिकॉप्टर आए और लॉन्ग लाइन के जरिये उन्हें उठाया गया। फिर उपचार के लिये काठमांडू लाया गया।इस तरह दो दिन दो रात अन्नपूर्णा चोटी पर बिना आक्सीजन के रहने के बाद बच पाना किसी चमत्कार से कम न था। दुनिया उन्हें मृत मान चुकी थी और सोशल मीडिया पर उन्हें श्रद्धांजलि दी जा रही थी। लेकिन उनकी मां को विश्वास था बेटी लौटेगी और आखिरकार उससे बात भी हुई। उसका उपचार करने वाले डॉक्टर भी उसके जीवित रहने को एक चमत्कार ही मान रहे थे। दुनिया की दसवीं सबसे ऊंची चोटी को फतह करके लौटी बलजीत निस्संदेह जीवटता की मिसाल है। उसे दूसरा जीवन मिला है।

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