एक गॉव में सत्यम नाम का एक सीधा सादा नौजवान रहता था। उसने अजीवन भगवान विष्णु की भक्ति करने का मन बना लिया। वह दिन रात विष्णु भगवान की पूजा अर्चना करता रहता था। एक दिन उसे एक साधू बाबा मिले।
सत्यम ने साधू बाबा से पूछा ‘‘बाबा मैं भगवान विष्णु को अपना आराध्य देव मान कर उनकी पूजा करता रहता हूं किन्तु मैं भगवान के दर्शन करना चाहता हूं मुझे भगवान की भक्ति का मार्ग बताईये।’’
साधू बाबा ने कहा ‘‘बेटा मैं भक्ति का मार्ग तो तुझे बता दूंगा किन्तु भगवान के दर्शन पाने के लिए अपना अहंकार, छोड़ना होगा। इसके साथ ही तू गृहस्थ जीवन में रहते हुए भी भगवान को पा सकता है’’
लेकिन सत्यम नहीं माना उसने कहा ‘‘महाराज मैंने अजीवन विवाह न करने का मन बना लिया है और मैं एकान्त में तपस्या करना चाहता हूं आप मेरा मार्ग दर्शन करें’’
साधू बाबा ने उसे तपस्या करने की पूरी विधि बता दी अगले दिन सत्यम जंगल में पहुंच गया और एक स्थान पर बैठ कर तपस्या करने लगा। धीरे धीरे वह तपस्या में लीन हो गया। उसे भूख प्यास लगनी बंद हो गई वह दिन रात भगवान विष्णु का ध्यान करने लगा। इसी प्रकार कई वर्ष बीत गये।
एक दिन सत्यम जब ध्यान लगा कर तपस्या कर रहा था तो उसे लगा जैसे उसकी तपस्या पूर्ण हो गई उसके शरीर के अन्दर आलौकिक शक्तियां भर गई हैं।
यह देख कर सत्यम बहुत खुश हुए उसने भगवान के इस चमत्कार को नमन किया और वह तपस्या करने लगा। तभी एक पेड़ पर एक चिड़िया चहचहा रही थी। उसकी आवाज से सत्यम की तपस्या भंग हो रही थी।
चिड़िया इस सब से बेखबर चहचहा रही थी। सत्यम को गुस्सा आने लगा। उसने आंख खोल कर चिड़िया से कहा ‘‘मूर्ख चिड़िया तुझे दिखाई नहीं देता मैं तपस्या कर रहा हूं मेरी तपस्या तूने भंग कर दी इसकी सजा तुझे अवश्य मिलेगी’’
यह सुनकर चिड़िया रोने लगी और माफी मांगने लगी। लेकिन सत्यम ने जैसे ही गुस्से से चिड़िया को देखा चिड़िया जल कर भस्म हो गई।
यह देखकर सत्यम बहुत खुश हुआ उसने मन ही मन में कहा ‘‘इस संसार में मुझसे शक्ति शाली और ज्ञानी कोई नहीं है।’’
यह सोच कर वह गॉंव की तरफ चल दिया। सत्यम बहुत सालों के बाद गॉव में आया था उसे कोई पहचान नहीं पाया सत्यम एक घर के पास पहुंचा और उसने कहा ‘‘माई बाबा आये हैं भिक्षा दो’’
घर के अन्दर से कोई आवाज नहीं आई कुछ देर इंतजार करने के बाद सत्यम ने फिर कहा ‘‘माई भिक्षा दो’’
साधू की आवाज सुन कर घर के अंदर से एक औरत की आवाज आई उसने कहा ‘‘साधू बाबा तनिक इंतजार कीजिए मैं अभी अपने पति को भोजन करा रही हूं अभी नहीं आ सकती कुछ देर बाद आकर आपको भिक्षा दूंगी’’
यह सुनकर सत्यम क्रोध से भर गया उसने कहा ‘‘मूर्ख जानती है मैं कितना ज्ञानी तपस्वी साधू हूं मेरा अपमान करने का साहस इस संसार में किसी को नहीं है’’
तभी उस घर से आवाज आई ‘‘क्षमा कीजिये महाराज किन्तु मैं अपने पति को भोजन कराये बिना बाहर नहीं आ सकती’’
यह सुनकर सत्यम और अधिक क्रोध में बोला ‘‘तू इसका परिणाम जानती है’’
यह सुनकर उस घर से आवाज आई ‘‘महाराज मैं कोई पेड़ पर बैठी चिड़िया नहीं हूं जो आपके क्रोध से भस्म हो जाउंगी’’
यह सुनकर सत्यम आश्चर्य में पड़ गया उसने कहा ‘‘तुझे यह सब कैसे पता’’
तब उस घर से आवाज आई ‘‘महाराज यहां से कुछ दूर पर एक कसाई की दुकान है आप वहां चले जाईये आपको आपके प्रश्नों के उत्तर मिल जायेंगे’’
सत्यम उस दुकान की ओर चल दिया। वह दुकान पर पहुंचा तो उसने देखा एक कसाई मांस बेच रहा था। सत्यम को देख कर वह दुकान से बाहर आ गया। सत्यम उससे पूछता उससे पहले ही कसाई ने कहा ‘‘महाराज आपको उस औरत ने भेजा है जो अपने पति को भोजन करा रही थी’’
यह सुनकर सत्यम ने कहा ‘‘तुम्हें यह सब कैसे पता वहां तो उस समय कोई नहीं था।
तब उस कसाई ने कहा ‘‘महाराज आप मेरे साथ मेरे घर चलिए वहां आपके सभी प्रश्नों के उत्तर मिल जायेंगे’’
सत्यम आश्चर्य से कसाई के साथ उसके घर पहुंच गया।
वहां पहुंच कर उसने देखा कसाई ने घर जाकर अपने बूढ़े माता पिता के पैर छुए। और पूरे दिन में जो भी कमाया था उनके चरणों में रख दिया फिर अपने माता पिता को अपने हाथों से खाना खिलाया। उसके बाद उनके पैर दबाता रहा जब वे सो गये तब वह कसाई सत्यम के पास आकर बैठ गया।
सत्यम का सारा घमंड समाप्त हो चुका था। उसने कसाई के पैर पकड़ लिये और बोला ‘‘मैंने बर्षों तक तपस्या की जिससे आलौकिक शक्तियां मेरे अन्दर आ गईं। लेकिन आपको देख कर मेरा सारा घमंड चला गया। आप मुझे इसका राज बताईये’’
तब उस कसाई ने कहा ‘‘जिस औरत ने आपको इंतजार करने के लिए कहा वह अपना पतिव्रत धर्म निभा रही थी। इस पतिव्रत धर्म के आगे तो यमराज को भी झुकना पड़ा था। उस पति व्रता में वह शक्ति है कि उसे गृहस्थ होते हुए भी तपस्या का फल मिल गया और उसका ज्ञान तो आपने देख ही लिया’’
‘‘मैं पूरा दिन जीव हत्या कर उनका मांस बेचता हूं किन्तु वह मेरा कर्म है व्यवसाय है किन्तु घर मैं सब कुछ अपने माता पिता को अर्पण कर देता हूं उनकी सेवा मैं श्रवण कुमार बन कर करता हूं। माता पिता की सेवा करने से मुझे गृहस्थ होते हुए भी तपस्या का फल मिल गया जिससे में सब जान पाता हूं’’
यह सुनकर सत्यम रोने लगा। उसने कहा मैंने कई वर्षों तपस्या की भगवान को पाने के लिए किन्तु एक क्षण के अहंकार ने मेरी तपस्या भंग कर दी’’
यह सुनकर उस कसाई ने कहा ‘‘आपका मन अब निर्मल हो गया है आप गृहस्थ जीवन में अपने करते हुए प्रभु को याद कीजिये यही सबसे बड़ी तपस्या है आने कर्मों भाग कर आप कभी प्रभु को नहीं पा सकते’’
यह सुनकर सत्यम अपने घर आ गया और गॉव वालों की सेवा करने लगा। धीरे धीरे उसकी तपस्या पूर्ण होने लगी।