मौसम की आंखमिचौली से हर कोई हैरान है। देश के कुछेक हिस्सों में जहां प्रचंड गर्मी से लोग परेशान हैं वहीं मूसलाधार बारिश के चलते पूर्वोत्तर के इलाकों में बाढ़ की दुरियां हैं।
एक खबर यह भी है कि करीब 62 साल बाद आर्थिक राजधानी मुंबई और राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में एकसाथ मानसून सक्रिय हुआ है। यानी इन दो जगहों पर बारिश एक साथ हो रही है। आमतौर पर मुंबई में मानसून दिल्ली के मुकाबले 15 दिन पहले आ जाता है। ज्ञातव्य है कि इससे पहले 21 जून, 1961 को दिल्ली और मुंबई में एकसाथ मानसून पहुंचा था।
बहरहाल, मौसम के बदलते स्वरूप के चलते उत्तर भारत में जहां सूर्य की तपिश से आमजन परेशान है वहीं पहाड़ी इलाकों में भारी बरसात के कारण हालात काफी भयावह हैं। बिहार और उत्तर प्रदेश में 100 से ज्यादा लोग लू लगने से मारे गए तो वहीं पहाड़ी राज्यों-हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड में बादल फटने से हालात काफी खराब हो चले हैं। वहीं असम में बाढ़ से स्थिति बदतर है। राज्य में 61 राहत शिविरों में करीब 50 हजार से ज्यादा लोग शरण लिये हुए हैं। हाल के वर्षो में मौसम में अप्रत्याशित बदलाव से मौसम वैज्ञानिक भी हैरान हैं।
ऐसा कम ही बार देखा और महसूस किया गया कि मानूसन किसी खास इलाकों में काफी सक्रिय है तो कहीं हालात सूखे जैसे हैं। दरअसल, प्रकृति के साथ हमने जिस कदर खिलवाड़ किया है; यह सब उसी का नतीजा है। न तो हमने नदियों को तरीके से रखा और न पहाड़ों में उसके मूल स्वरूप में छोड़ा। प्रकृति के इन दो प्रमुख किरदार की हमने इज्जत नहीं की। यही कारण है कि कभी पहाड़ में प्रकृति अपना रौद्र रूप दिखाती है तो कभी मैदानी इलाकों में नदियां विकराल रूप धारण करती हैं।
नदियों की साफ-सफाई पर तो किसी का भी ध्यान नहीं है। कागजों पर सिर्फ योजनाओं को उकेरा जाता है। हकीकत में उसे बिसरा दिया जाता है। कुल मिलाकर प्रकृति के साथ अन्याय का ही नतीजा है कि हम विषम परिस्थितियों को झेल रहे हैं। अभी भी इतना कुछ प्रतिकूल होने के बावजूद न तो जनता खुद में सुधार करती दिखती है और न सरकारी संस्थाएं। प्रदूषण ने कितना नुकसान पहुंचाया है; इस तथ्य से हर कोई वाकिफ है। लिहाजा, हर किसी को अपनी जिम्मेदारी का अहसास करना होगा। हां, सुधार के लिए सरकार का मुंह ताकना कहीं से भी न तो न्यायोचित कहा जाएगा न समझदारी।
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