HamariChoupal,05,03,2025
पौराणिक काल में अवंती नगरी (वर्तमान उज्जैन) एक समृद्ध और वैभवशाली नगर था। यह नगरी न केवल अपनी धार्मिकता और संस्कारों के लिए प्रसिद्ध थी, बल्कि यहां वैदिक ज्ञान और तपस्या का केंद्र भी था। इस नगर में वेदप्रिय नामक एक धर्मात्मा ब्राह्मण निवास करते थे। वे अत्यंत विद्वान और सत्य के मार्ग पर चलने वाले व्यक्ति थे। वे भगवान शिव के अनन्य भक्त थे और उनकी आराधना ही उनका जीवन था। वेदप्रिय प्रतिदिन एक नया शिवलिंग बनाकर उसकी विधिपूर्वक पूजा-अर्चना करते थे। उनके घर में निरंतर वैदिक मंत्रों का उच्चारण होता रहता था, और वहाँ यज्ञ की अग्नि कभी शांत नहीं होती थी। उनके तप और शिव-भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें चार पुत्रों का वरदान दिया। उनके चारों पुत्र—देवप्रिय, प्रियमेधा, संस्कृत, और सुवृत—भी अपने पिता के समान ही शिवभक्त और धर्मपरायण थे।
असुर दूषण का अत्याचार
वेदप्रिय और उनके पुत्र नित्य शिव भक्ति और यज्ञों में लीन रहते थे, जिससे समस्त अवंती नगरी में धर्म और सदाचार का वातावरण बना हुआ था। लेकिन उस समय धरती पर अधर्म और आसुरी शक्तियों का प्रभाव बढ़ रहा था। रत्नमाल पर्वत पर दूषण नामक एक अत्याचारी असुर का निवास था। वह बहुत ही क्रूर और अहंकारी था। ब्रह्माजी से उसे वरदान प्राप्त था कि कोई भी देवता या मानव उसका वध नहीं कर सकता। इस वरदान के कारण वह निरंकुश हो गया था और देवताओं तथा धर्मात्माओं को कष्ट देने लगा था।
अपने अत्याचारों को और अधिक फैलाने के उद्देश्य से दूषण ने अवंती नगरी पर आक्रमण करने का निर्णय लिया। उसने अपनी विशाल असुर सेना को लेकर नगर पर धावा बोल दिया। नगरवासियों पर भय और आतंक छा गया। असुरों ने चारों ओर हाहाकार मचा दिया, मंदिरों को तोड़ने लगे, यज्ञों को बाधित करने लगे और निर्दोष लोगों की हत्या करने लगे।

वेदप्रिय के पुत्रों का साहस
जब अवंती नगरी के लोगों ने देखा कि असुरों की सेना उनके नगर को नष्ट कर रही है, तो वे घबरा गए। चारों ओर त्राहि-त्राहि मच गई। परंतु वेदप्रिय के चारों पुत्रों ने धैर्य नहीं खोया। उन्होंने नगरवासियों को ढांढस बंधाया और कहा, “भगवान शिव पर विश्वास रखो, वे अपने भक्तों की रक्षा अवश्य करेंगे।”
चारों भाई शिवलिंग के समक्ष जाकर भगवान शिव से प्रार्थना करने लगे, “हे प्रभु! आप भक्तों के संकटहरण करने वाले हैं। कृपा करके हमें और हमारे नगर को इस आसुरी संकट से बचाइए।”
भगवान महाकाल का प्रकट होना
दूषण की सेना ने जब वेदप्रिय के पुत्रों को घेर लिया और उन पर आक्रमण करने के लिए शस्त्र उठाए, तो अचानक एक अद्भुत चमत्कार हुआ। जिस शिवलिंग की वे प्रतिदिन पूजा करते थे, उसमें से तेज प्रकाश फैलने लगा। यह प्रकाश इतना प्रबल था कि असुरों की सेना कुछ क्षणों के लिए अंधी हो गई। इसी प्रकाश के मध्य से भगवान महाकाल प्रकट हुए। उनका स्वरूप अत्यंत भयंकर था—त्रिनेत्रों से अग्नि प्रज्वलित हो रही थी, मस्तक पर चंद्रमा सुशोभित था, गले में नागों की माला थी और उनके हाथों में त्रिशूल चमक रहा था।
भगवान महाकाल ने अपनी हुंकार मात्र से असुरों की सेना को भस्म कर दिया। चारों ओर अग्नि प्रज्वलित हो उठी, और असुरों की शक्ति नष्ट होने लगी। भयभीत होकर कुछ असुर प्राण बचाने के लिए भागने लगे, लेकिन भगवान शिव के कोप से वे भी नहीं बच सके। अंत में भगवान महाकाल ने अपने त्रिशूल से दूषण का वध कर दिया।

भगवान महाकाल का वरदान
असुरों के संहार के बाद भगवान शिव का रौद्र रूप देखकर वेदप्रिय के चारों पुत्र भयभीत हो गए। वे हाथ जोड़कर विनती करने लगे, “हे प्रभु! कृपया अपना क्रोध शांत करें। हम आपके शरणागत हैं।”
भगवान महाकाल ने चारों भाइयों को अभयदान दिया और कहा, “भयभीत मत होओ, भक्तों की रक्षा करना मेरा परम कर्तव्य है।”
इसके बाद भगवान शिव ने चारों भाइयों से वरदान मांगने को कहा। चारों भाइयों ने निवेदन किया, “हे प्रभु! आप सदैव इस अवंती नगरी में निवास करें और अपने भक्तों की रक्षा करें।”
भगवान शिव उनकी भक्ति और प्रेम से प्रसन्न हुए और कहा, “तथास्तु! मैं महाकाल के रूप में इस स्थान पर सदा निवास करूंगा और जो भी सच्चे हृदय से मेरी आराधना करेगा, उसकी सभी मनोकामनाएँ पूर्ण होंगी।”
महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग की स्थापना
तब से भगवान शिव महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग के रूप में अवंती नगरी में विराजमान हो गए। यह ज्योतिर्लिंग अन्य सभी ज्योतिर्लिंगों में विशेष है, क्योंकि यह एकमात्र स्वयंभू (स्वतः प्रकट) ज्योतिर्लिंग है। भगवान महाकाल की उपासना करने से सभी प्रकार के भय और कष्टों का नाश होता है, तथा भक्तों को मोक्ष की प्राप्ति होती है।

आज भी उज्जैन स्थित महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग विश्वभर में श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र बना हुआ है। भक्तगण यहाँ आकर भगवान महाकाल की आराधना करते हैं और उनकी कृपा प्राप्त करते हैं। प्रत्येक दिन भस्म आरती का विशेष महत्व है, जो संपूर्ण विश्व में प्रसिद्ध है। इस आरती में महाकाल को भस्म अर्पित की जाती है, जिससे उनकी अनंत शक्ति और भयंकर रूप की स्मृति बनी रहती है।
इस प्रकार, महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग की यह कथा हमें यह शिक्षा देती है कि भगवान शिव सच्चे भक्तों की सदा रक्षा करते हैं और अधर्म का नाश कर धर्म की स्थापना करते हैं।
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