Hamarichoupal,26,06,2026
नैनीताल/देहरादून, 26 जून। उत्तराखंड में त्रिस्तरीय पंचायत चुनावों को लेकर आरक्षण व्यवस्था पर खड़े हुए सवालों की गूंज हाईकोर्ट की चौखट तक बहस में अटकी है। गुरुवार को भी इस गंभीर मुद्दे पर उत्तराखंड हाईकोर्ट में सुनवाई जारी रही। मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति जी. नरेंद्र और न्यायमूर्ति आलोक मेहरा की खंडपीठ ने सरकार से आरक्षण रोस्टर, नियमावली और गजट प्रकाशन की वैधता पर विस्तृत और तथ्यों पर आधारित जवाब तलब किया है।
सरकार की ओर से सुनवाई में पंचायत चुनावों में आरक्षण का रोस्टर अदालत में पेश किया गया, लेकिन अदालत ने स्पष्ट रूप से पूछा कि कितनी सीटों पर आरक्षण बदला गया और कितनी सीटों पर पुराना आरक्षण दोहराया गया है? साथ ही यह भी पूछा गया कि क्या वर्तमान गजट प्रकाशन “साधारण खंड अधिनियम के रूल 22” और “उत्तराखंड पंचायती राज अधिनियम 2016 की धारा 126” के अनुरूप है? यदि नहीं, तो फिर उसकी वैधता कैसे ठहराई जा सकती है?
सरकार की ओर से महाधिवक्ता एस.एन. बाबुलकर और सीएससी चंद्रशेखर रावत ने अदालत में सभी पंचायत स्तरीय सीटों का पुराना और नया विवरण प्रस्तुत करते हुए अपनी आरक्षण प्रक्रिया को विधिसम्मत बताया। उन्होंने पंचायत चुनावों पर लगी अंतरिम रोक हटाने की भी अपील की।
वहीं, याचिकाकर्ताओं की ओर से अधिवक्ता शोभित सहारिया और अनिल जोशी ने गंभीर आरोप लगाते हुए कहा कि सरकार द्वारा रोटेशन नीति का पालन नहीं किया गया और आरक्षण की घोषणा ऑफिस मेमोरेंडम के आधार पर की गई, न कि विधिसम्मत नियमों पर। उन्होंने आरक्षित सीटों का विस्तृत आंकड़ा पेश करते हुए महिला, ओबीसी, एससी, एसटी जैसी श्रेणियों के आरक्षण में भारी अनियमितताओं की ओर अदालत का ध्यान आकृष्ट किया।
हाईकोर्ट के अधिवक्ता योगेश पचौलिया ने यह भी तर्क दिया कि जिस आधार पर सरकार चुनाव की घोषणा कर रही है, वह रिपोर्ट सार्वजनिक डोमेन में उपलब्ध ही नहीं है, जिससे आमजन को अपनी आपत्तियां दर्ज करने का अधिकार ही नहीं मिल पाया है।
गौरतलब है कि 23 जून को हाईकोर्ट ने त्रिस्तरीय पंचायत चुनावों पर अंतरिम रोक लगाते हुए अधिसूचना के अमल को तत्काल प्रभाव से स्थगित कर दिया था। इससे पूर्व, 21 जून को राज्य निर्वाचन आयोग ने पंचायत चुनाव की अधिसूचना जारी की थी, जिसके अनुसार नामांकन 25 जून से शुरू होने थे और मतदान 10 और 15 जुलाई को दो चरणों में प्रस्तावित था।
अब सारी निगाहें शुक्रवार की अगली सुनवाई पर टिकी हैं, जब खंडपीठ इस अत्यंत संवेदनशील मुद्दे पर आगे का रुख स्पष्ट करेगी। यह मामला न केवल पंचायत चुनाव की पारदर्शिता बल्कि आरक्षण प्रक्रिया की विधिसम्मतता की कसौटी पर भी सरकार को कस रहा है।