साल 2022 में भारत में सडक़ हादसों में एक लाख 68 हजार लोग मारे गए। कुल चार लाख 61 हजार हादसे हुए, जिनमें बड़ी संख्या में लोग जख्मी और विकलांग भी हुए। घायलों की संख्या 4.43 लाख रही।
भारत में जानलेवा परिवहन की चर्चा अक्सर होती है, लेकिन कोई समाधान नहीं निकलता। शायद इसलिए कि समाधान निकालना किसी की प्राथमिकता में नहीं है। यह एक तरह से सडक़ों पर रोजमर्रा के स्तर पर घटने वाली त्रासदियों के प्रति हमारी सामूहिक बेरहमी का संकेत है। इस त्रासदी का दायरा कितना बड़ा है, यह एक बार फिर सामने आए आधिकारिक आंकड़ों से जाहिर हुआ है। केंद्रीय सडक़ यातायात मंत्रालय ने सडक़ हादसों के बारे में अपनी रिपोर्ट जारी की है। इस सालाना रिपोर्ट के मुताबिक 2022 में देश में सडक़ हादसों में एक लाख 68 हजार लोग मारे गए। कुल हादसे चार लाख 61 हजार हुए, जिनमें बड़ी संख्या में लोग जख्मी और विकलांग भी हुए। घायलों की संख्या 4.43 लाख रही। मरने वालों में से 71.2 प्रतिशत लोग तेज गति से वाहन चलाने की वजह से हुए हादसों का शिकार बने। सबसे ज्यादा हादसों के शिकार दोपहिया वाहन चलाने वाले हुए। यह भी इस घटननाक्रम का एक पहलू है। दोपहिया वाहन अक्सर निम्न मध्य वर्ग परिवारों के परिवहन का जरिया होते हैँ। नीति निर्माण से लेकर मीडिया की चर्चा और आम संवेदनाओं की प्राथमिकता में गरीब और निम्न आय वर्ग के परिवार अक्सर काफी नीचे आते हैँ। एक और तथ्य गौरतलब है: 47.7 प्रतिशत हादसे और 55.1 प्रतिशत मौतें खुले इलाकों में हुईं- यानी उन क्षेत्रों में जहां मानव गतिविधि ज्यादा नहीं थी। मतलब यह कि हादसों के पीछे लापरवाही एक बड़ा कारण बनी हुई है। पिछले लगभग दो दशक इस बात को चर्चा में लाया गया कि अगर लोगों को दुर्घटनाग्रस्त व्यक्तियों की मदद के लिए प्रोत्साहित किया जाए, तो बहुत-सी जानें बच सकती हैँ। विधि आयोग की एक रिपोर्ट में कहा गया था कि सडक़ हादसों में मारे गए लोगों को अगर समय से अस्पताल पहुंचा दिया जाए तो उनमें से 50 प्रतिशत की जान बचाई जा सकती है। इसे संभव बनाने के उद्देश्य से 2020 में केंद्र सरकार ने नए नियम भी बनाए। लेकिन इस दिशा में वास्तव में कोई प्रगति हुई है, इसका संकेत नहीं है। कुल मिलाकर दुखद स्थिति यह है कि हमारी सडक़ों का जानलेवा रूप बदल नहीं रहा है।
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