भगवान श्रीनृसिंह देव जी हिरण्यकशिपु का वध करने के बाद उसके ही सिंहासन पर बैठ गए। उस समय आपकी क्रोध से भरी मुद्रा को देख कर कोई भी आपके आगे जाने का साहस नहीं कर पा रहा था। ब्रह्मा, रुद्र, इंद्र, ॠषि, विद्याधर, नाग, मनु, प्रजापती, गंधर्व, चारण, यक्ष, किम्पुरुष, इत्यादि सभी ने दूर से ही आपकी स्तुति की क्योंकि सभी आपकी भयानक गर्जना को सुनकर व हिरण्यकशिपु के पेट की आतों से लिपटे आपके वक्ष स्थल को देख कर भयभीत हो रहे थे किंतु साथ ही वे बड़े प्रसन्न थे कि आपने खेल ही खेल में असुर-राज हिरण्यकशिपु का वध कर दिया था।
ब्रह्मा जी, रुद्रादि की स्तुतियों को सुनकर भगवान का क्रोध शांत नहीं हुआ। वे लगातार दिल को दहलाने वाली गर्जना कर रहे थे। मामला सुलझता न देख ब्रह्मा जी ने देवी लक्ष्मी जी से प्रार्थना की कि वे जाकर भगवान के क्रोध को शांत करें। लक्ष्मी जी भी भगवान के ऐसे भयानक रूप के आगे जाने का साहस न जुटा पाई। फिर ब्रह्मा जी ने श्री प्रह्लाद से कहा कि वे ही कुछ करें क्योंकि भगवान ने ऐसा क्रोधित रूप श्री प्रह्लाद महाराज जी की रक्षा के लिए ही तो लिया था।
प्रह्लाद जी ने बड़े सरल भाव से सभी देवी-देवताओं को प्रणाम किया व भगवान श्रीनरसिंह देव के आगे जाकर लंबा लेटकर उनको दंडवत प्रणाम किया। भगवान अपने प्यारे भक्त को प्रणाम करता देखकर वात्सल्य प्रेम से भर गए, उन्होंने प्रह्लाद के सिर पर अपना दिव्य हाथ रखा । जिससे प्रह्लाद को अद्भुत ज्ञान का संचार हो गया। उन्होंने भगवान की स्तुति करनी प्रारंभ कर दी।
भगवान श्रीनरसिंह ने प्रसन्न होकर प्रह्लाद से वर मांगने के लिए कहा। प्रह्लाद जी ने कहा,”भगवन् ! मेरी कोई इच्छा नहीं है, मुझे कोई वरदान नहीं चाहिए।”
भगवान नरसिंह जी ने कहा,”प्रह्लाद ! मेरी इच्छा है कि तुमको कुछ देता जाऊं।” इसलिए मेरी इच्छा को पूरा करने के लिए ही कोई वर मांग लो।
प्रह्लाद जी ने कहा,”हे प्रभु ! मुझे ऐसा वरदान दीजिए कि मेरे दिल में कोई इच्छा ही न हो मांगने की।”
भगवान ने मुस्कुराते हुए कहा,”यह तो मजाक है। मुझ से कुछ वरदान मांगो।” तब श्री प्रह्लाद जी ने कहा, ‘मेरे पिता ने आप पर आक्रमण किया। कृपया उन्हें क्षमा करते हुए शुद्ध कर दीजिए व उन पर कृपा कीजिए।’
भगवान ने कहा,”प्रह्लाद! तुम्हारे पिता ने मेरा दर्शन किया, मुझे स्पर्श किया, क्या इससे वे शुद्ध नहीं हुए? ये वंश जिसमें तुमने जन्म लिया है, क्या अभी भी अशुद्ध रह गया है? प्रह्लाद ! भक्ति के प्रभाव से तुम्हारा तो कल्याण हुआ ही है, साथ ही साथ तुम्हारे 21 जन्मों के माता-पिता का उद्धार हो गया है, उन्हें भगवद् धाम मिल गया है।”