1 ) उत्तराखंड राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग की अध्यक्ष, डॉ. गीता खन्ना ने हीमोफीलिया पीड़ितों की दवाईयों के अभाव जैसी गंभीर समस्याओं को लेकर राज्य के स्वास्थ्य मंत्री, स्वास्थ्य सचिव और स्वास्थ्य महानिदेशक को पत्र लिखकर त्वरित कार्रवाई का अनुरोध किया है।
डॉ. गीता खन्ना ने अपने पत्र में हीमोफीलिया की जीवन रक्षक दवाओं की उपलब्धता सरकारी अस्पतालों और दून मेडिकल कॉलेज में सुनिश्चित करने का आग्रह किया है साथ ही राज्य के दूरस्थ क्षेत्रों में दवाओं की निरंतर उपलब्धता सुनिश्चित की जाए, ताकि मरीजों को किसी आपातकालीन परिस्थिति से बचाया जा सके ।
हीमोफीलिया कार्यक्रम, जो पहले दून मेडिकल कॉलेज द्वारा संचालित किया जा रहा था, अब कोरोनेशन अस्पताल को स्थानांतरित कर दिया गया है। वर्तमान में, सभी आवश्यक दवाएं और फैक्टर्स कोरोनेशन अस्पताल को ही प्रदान किए जा रहे हैं। आयोग अध्यक्ष ने दून मेडिकल कॉलेज के कुलपति से इस विषय पर चर्चा की। कुलपति ने इस बात की पुष्टि की है कि दून मेडिकल कॉलेज भी दवाईयों का स्टॉक लेने और मरीजों के इलाज की प्रक्रिया पुनः शुरू करने के लिए तैयार है।
डॉ. गीता खन्ना ने कहा, “हीमोफीलिया पीड़ितों को समय पर इलाज और जीवन रक्षक दवाओं की आपूर्ति सुनिश्चित करना राज्य सरकार की प्राथमिकता है । आयोग इस समस्या के समाधान के लिए स्वास्थ्य विभाग के साथ मिलकर इसे सुलझाने का प्रयास कर रहा है।”
2) आयोग ने राज्य के सभी जिलाधिकारियों को बच्चों से जुड़े संस्थानों और सार्वजनिक स्थानों की जांच एवं सुरक्षा सुनिश्चित करने हेतु निर्देश जारी किए हैं | डॉ गीता खन्ना ने निर्देशित करते हुए लिखा कि किड्स स्कूल मे छोटे बच्चों को उनकी आयु के अनुसार उचित संस्थानों (क्रेच/प्ले स्कूल) में रखा जाए व सभी किड्स स्कूल सरकार द्वारा निर्धारित गाइडलाइंस का पालन करें। नशा मुक्ति केन्द्रों का संचालन सरकार द्वारा निर्धारित गाइडलाइंस के अनुसार किया जाए। और जो कोचिंग संस्थान है उनका विशेष रूप से आवासीय कोचिंग संस्थानों की जांच कर यह सुनिश्चित किया जाए कि हॉस्टल और अन्य नियमों का पालन हो रहा है की नहीं । आयोग की अध्यक्षा ने मदरसों पर भी सुनिश्चित करने के लिए कहा कि मदरसे पंजीकृत हों और निजी भूमि पर बने अवैध मदरसों और आवासीय मदरसों की जांच की जाए। उन्होंने सार्वजनिक स्थानों जैसे पार्क व जलाशयों पर बच्चों की सुरक्षा पर भी निर्देश दिए है जैसा की :
· प्रमुख पार्कों और सार्वजनिक स्थलों पर सुरक्षा ऑडिट किया जाए।
· बच्चों के लिए सुरक्षित और चाइल्ड-फ्रेंडली जोन विकसित किए जाएं।
· सीसीटीवी निगरानी और प्रशिक्षित सुरक्षा कर्मियों
· की तैनाती की जाए एवं सुरक्षा कर्मियों को फर्स्ट एड और जीवन रक्षक तकनीकों का प्रशिक्षण दिया जाए।