रामायण, भारतीय संस्कृति का एक ऐसा अद्भुत ग्रंथ है जो हमें धर्म, नीति और वीरता जैसे अनेक जीवन मूल्यों से परिचित कराता है। इस महाकाव्य में अनेक ऐसे प्रसंग हैं जो हमें आश्चर्यचकित करते हैं और भगवान श्रीराम के भक्तों की अटूट भक्ति और पराक्रम का परिचय देते हैं। ऐसा ही एक अविस्मरणीय प्रसंग है जब हनुमान जी ने रावण की अमर सेना का सामना किया था।
लंका के राजा रावण ने जब देखा कि उसकी सारी शक्तिशाली सेना भगवान श्रीराम के वानर सेना के हाथों पराजित हो चुकी है और उसके बड़े-बड़े योद्धा युद्ध में मारे जा चुके हैं, तो वह अत्यंत चिंतित हो गया। अपनी आसन्न पराजय को भांपते हुए, उसने एक अंतिम और भयावह चाल चली। रावण ने एक हजार ऐसे अमर राक्षसों को रणभूमि में भेजने का आदेश दिया, जिनके बारे में यह माना जाता था कि काल भी उनका कुछ नहीं बिगाड़ सकता।
विभीषण, जो रावण के छोटे भाई थे और भगवान राम के भक्त बन गए थे, उनके गुप्तचरों ने तुरंत इस समाचार को श्रीराम तक पहुँचाया। यह सुनकर श्रीराम भी कुछ चिंतित हुए। वे सोचने लगे कि यदि ये राक्षस अमर हैं, तो उनकी सेना उनसे कब तक युद्ध कर पाएगी? विजय की राह और भी कठिन दिखने लगी।
श्रीराम की इस चिंता को देखकर, वानर सेना के साथ-साथ कपिराज सुग्रीव भी विचलित हो गए। वे सोचने लगे कि अब क्या होगा? वे अनिश्चित काल तक युद्ध तो कर सकते थे, परंतु विजयश्री का वरण कैसे होगा?
तभी, संकट की इस घड़ी में, भगवान श्रीराम के परम भक्त हनुमान जी ने उन्हें चिंतित देखकर पूछा, “प्रभो! क्या बात है? आपकी मुखमंडल पर यह चिंता की रेखाएं क्यों?”
श्रीराम के संकेत पर, विभीषण जी ने हनुमान जी को सारी बात विस्तार से बताई – रावण की अमर सेना और युद्ध की अनिश्चितता के बारे में। यह सुनकर हनुमान जी क्षण भर भी विचलित नहीं हुए। बल्कि, उनके नेत्रों में एक अद्भुत तेज और आत्मविश्वास झलक उठा।
पवनपुत्र हनुमान ने दृढ़ स्वर में कहा, “प्रभो! आप चिंता न करें। असंभव को संभव और संभव को असंभव कर देने का नाम ही तो हनुमान है। आप केवल मुझे आज्ञा दीजिए, मैं अकेला ही जाकर रावण की इस अमर सेना को नष्ट कर दूंगा।”
भगवान राम ने आश्चर्य से पूछा, “कैसे हनुमान! वे तो अमर हैं। उन्हें पराजित करना तो देवताओं के लिए भी कठिन है।”
तब हनुमान जी ने पूरी श्रद्धा और विश्वास के साथ उत्तर दिया, “प्रभो! इसकी चिंता आप न करें, अपने सेवक पर विश्वास रखें। मैं अपनी शक्ति और प्रभु के आशीर्वाद से अवश्य ही कोई मार्ग निकाल लूंगा।”
उधर, जब रावण ने उन अमर राक्षसों को युद्ध के लिए भेजा था, तो उसने उन्हें विशेष रूप से सावधान किया था। उसने कहा था, “वहां हनुमान नाम का एक वानर है, उससे जरा सावधान रहना। वह अत्यंत बलशाली और मायावी है।”
हनुमान जी जब अकेले ही रणभूमि में उन अमर राक्षसों के सामने पहुँचे, तो वे राक्षस उन्हें एकाकी देखकर आश्चर्यचकित हुए। उन्होंने अहंकारपूर्वक पूछा, “तुम कौन हो? क्या तुम हम लोगों को देखकर भयभीत नहीं हो? जो अकेले ही रणभूमि में चले आए हो?”
हनुमानजी ने शांत परंतु दृढ़ स्वर में उत्तर दिया, “क्यों? क्या आते समय राक्षसराज रावण ने तुम लोगों को कुछ संकेत नहीं दिया था? क्या उसने मेरे बारे में कुछ नहीं बताया जो तुम मेरे समक्ष इस प्रकार निर्भय खड़े हो?”
निशाचरों को यह समझने में देर नहीं लगी कि उनके सामने खड़ा यह वानर कोई साधारण जीव नहीं, बल्कि वही महाबली हनुमान है, जिसके बारे में रावण ने उन्हें चेतावनी दी थी। फिर भी, अपने अमर होने के घमंड में चूर होकर उन्होंने सोचा, “तो भी क्या? हम तो अमर हैं, यह अकेला वानर हमारा क्या बिगाड़ लेगा?”
इसके बाद एक भयंकर युद्ध आरंभ हुआ। पवनपुत्र हनुमान अपनी अद्भुत शक्ति और गति से राक्षसों पर टूट पड़े। उनकी मार से राक्षस रणभूमि में ढेर होने लगे। देखते ही देखते, रावण की चौथाई अमर सेना समाप्त हो गई। तभी पीछे से एक सामूहिक आवाज आई, “हनुमान! हम लोग अमर हैं। हमें जीतना असंभव है। अतः अपने स्वामी के साथ लंका से लौट जाओ, इसी में तुम सबका कल्याण है।”
आंजनेय हनुमान ने उस अमर सेना के अहंकार को चूर-चूर करते हुए कहा, “लौटूंगा अवश्य, परंतु तुम्हारे कहने से नहीं, अपितु अपनी इच्छा से। हां, तुम सब मिलकर आक्रमण करो, फिर मेरा बल देखो और जाकर रावण को बताना कि हनुमान कौन है।”
जैसे ही उन अमर राक्षसों ने एक साथ मिलकर हनुमान जी पर आक्रमण करने का प्रयास किया, वैसे ही पवनपुत्र ने एक अद्भुत पराक्रम दिखाया। उन्होंने अपनी विशाल पूंछ से उन सभी राक्षसों को लपेट लिया और फिर उन्हें ऊपर आकाश में फेंक दिया। वे सब पृथ्वी की गुरुत्वाकर्षण शक्ति की सीमा से भी ऊपर चले गए। अमर होने के कारण उनका शरीर तो नहीं मरा, परंतु उस ऊंचाई पर वायुमंडल न होने के कारण उनका शरीर सूख गया और वे निष्प्राण हो गए। इस प्रकार, हनुमान जी ने रावण की अमर सेना के अमरत्व को ही समाप्त कर दिया।
इसके बाद हनुमान जी वापस भगवान श्रीराम के चरणों में आए और शीश झुकाया। श्रीराम ने पूछा, “क्या हुआ हनुमान? तुमने उस अमर सेना का क्या किया?”
हनुमान जी ने विनम्रतापूर्वक उत्तर दिया, “प्रभो! उन्हें ऊपर भेजकर आ रहा हूं।”
राघव ने आश्चर्य से कहा, “पर वे तो अमर थे हनुमान।”
हनुमान जी ने कहा, “हां स्वामी, इसलिए मैंने उन्हें जीवित ही ऊपर भेज दिया है। अब वे कभी भी नीचे नहीं आ सकते।”
फिर हनुमान जी ने आत्मविश्वास से कहा, “रावण को अब आप शीघ्रातिशीघ्र ऊपर भेजने की कृपा करें, जिससे माता जानकी का आपसे मिलन हो सके और महाराज विभीषण का लंका के राजसिंहासन पर अभिषेक हो सके।”
यह प्रसंग हनुमान जी की अद्भुत शक्ति, बुद्धि और भगवान श्रीराम के प्रति उनकी अटूट भक्ति का एक ज्वलंत उदाहरण है। यह हमें सिखाता है कि सच्ची निष्ठा और पराक्रम से असंभव को भी संभव किया जा सकता है। हनुमान जयंती के इस पावन अवसर पर, हमें उनके जीवन से प्रेरणा लेनी चाहिए और अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए दृढ़ संकल्पित रहना चाहिए।
हनुमान जयंती 2025: हनुमान जी से डरता था रावण, पढ़ें रोचक कथा
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