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हरिशंकर व्यास
जिस तरह से कर्नाटक का चुनाव कांग्रेस आलाकमान के लिए परीक्षा है वैसे ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए भी यह परीक्षा की तरह है। उनके जादू की परीक्षा हो रही है। यदि बीएस येदियुरप्पा के बगैर भाजपा कर्नाटक में जीती तो भाजपा के सभी पुराने प्रादेशिक क्षत्रपों का बोरिया बिस्तर बंधेगा। और अगर मोदी की इतनी मेहनत के बावजूद भाजपा नहीं जीती तो उसके दो नुकसान हैं। पहला तो यह कि दक्षिण भारत में भाजपा का प्रवेश द्वार बंद हो जाएगा। दूसरा यह कि भाजपा के प्रादेशिक क्षत्रपों को ताकत मिलेगी। भाजपा आलाकमान की उन पर निर्भरता बढ़ेगी। उन्हें किनारे करके मोदी के चेहरे पर चुनाव लडऩे का फैसला करने से पहले भाजपा को दस बार सोचना पड़ेगा।
सवाल है कि क्या नरेंद्र मोदी और भाजपा के चुनाव रणनीतिकारों को इसका अंदाजा नहीं है? प्रधानमंत्री मोदी ने काफी देर से कर्नाटक में चुनाव प्रचार शुरू किया। पहले कहा जा रहा था कि उनको चुनाव नतीजों का अंदाजा है इसलिए वे कम प्रचार करेंगे। लेकिन अब फिर उन्होंने अपने को झोंका है। वे अब तक एक दर्जन रैलियां कर चुके हैं और बेंगलुरू व मैसुरू जैसे बड़े शहरों में रोड शो किया है। शनिवार को वे फिर दो दिन के दौरे पर कर्नाटक पहुंचेंगे। तो बेंगलुरू में दो दिन में 36 किलोमीटर का रोड शो करेंगे। पहले यह रोड शो एक दिन में होना था लेकिन बेंगलुरू की ट्रैफिक समस्या और लोगों की परेशानियों का इतना हल्ला मचा कि पार्टी को इसे दो दिन में करना पड़ रहा है। इन दो दिनों में प्रधानमंत्री की कई चुनावी रैलियां भी होंगी।
उन्होंने अब तक के प्रचार में सारे दांव आजमाए हैं। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खडग़े के बयान के बाद उन्होंने अपने अपमान का मुद्दा बनाया। मोदी ने रैलियों में कहा कि कांग्रेस ने उनको 91 बार गालियां दी हैं। सारे नेताओं ने कहना शुरू किया कि मोदी पर जितना कीचड़ उछालोगे उतना कमल खिलेगा। इसके बाद उन्होंने अपने को शंकर भगवान के गले की शोभा बता कर वोट मांगा। बाद में जब कांग्रेस ने पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया की तरह बजरंग दल पर भी पाबंदी लगाने का वादा किया तो प्रधानमंत्री मोदी ने जय बजरंग बली के नारे लगा कर वोट मांगा। इस तरह प्रधानमंत्री सारे दांव आजमा रहे हैं।
इसमें संदेह नहीं है कि भाजपा नहीं जीतेगी तो न मीडिया उसका ठीकरा प्रधानमंत्री मोदी पर फोड़ेगा और न भाजपा। सब यही कहेंगे कि जितनी भी सीटें मिली हैं वह मोदी मैजिक से मिली हैं। अगर उन्होंने इतना सघन प्रचार नहीं किया होता तो पार्टी इतनी सीटें भी नहीं जीत पाती। लेकिन इस प्रचार के बावजूद भाजपा के हारने का असर पार्टी की आगे की चुनाव रणनीति पर पड़ेगा। प्रादेशिक क्षत्रपों और बड़े जातीय समूहों को नेतृत्व करने वाले नेताओं को हाशिए पर डालने की योजना स्थगित करनी पड़ेगी। कट्टर हिंदुत्व के मुद्दों को लेकर भी पार्टी को नए सिरे से सोचना होगा।