Friday , November 22 2024

फिर पुराने तेवर में लौट रही है बीजेपी

14,09,2021,Hamari Choupal

{अवधेश कुमार}

बीजेपी की स्थिति पर नजर रखने वाले इस बात को स्वीकार करेंगे कि पिछले कुछ सप्ताह से पार्टी में नई स्फूर्ति और ताजगी भरी सक्रियता दिखने लगी है। पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव परिणाम के बाद और कोरोना की दूसरी लहर के बीच दिखती सुन्नता, निष्क्रियता और निस्तेजपन का दौर खत्म हो गया है। मानसून सत्र के दौरान संसद ठप कर विपक्ष ने बीजेपी को रक्षात्मक मुद्रा में डालने तथा उसके विरुद्ध देशव्यापी माहौल बनाने की कोशिश की। किंतु प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सांसदों को संबोधित करते हुए कहा कि विपक्ष को जनता के बीच बेनकाब करें। यह प्रत्याक्रमण करने का आह्वान था जिसका परिणाम हमने सदनों के अंदर और बाहर देखा। मोदी और अमित शाह के नेतृत्व वाली बीजेपी की यही पहचान रही है जो लगता था कि कहीं खो गई है।

अनिश्चितता खत्म हुई

थोड़ी बारीकी से देखें तो साफ हो जाएगा कि इसके लिए नेतृत्व ने योजनाबद्ध ढंग से काम किया। इसकी शुरुआत 15 जुलाई को प्रधानमंत्री के अपने संसदीय क्षेत्र वाराणसी दौरे से हुई। मुख्य कार्यक्रम करीब 1600 करोड़ रुपये की परियोजनाओं के शिलान्यास तथा उद्घाटन का था किंतु मोदी और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री आदित्यनाथ योगी ने इसका बेहतरीन राजनीतिक इस्तेमाल किया। मोदी ने वाराणसी के आध्यात्मिक-सांस्कृतिक महत्त्व, उसकी गरिमा वृद्धि के लिए केंद्र और प्रदेश सरकार द्वारा किए जा रहे कार्य, उत्तर प्रदेश के विकास और उसे माफिया राज तथा अपराध से मुक्त करने की मुहिम का जैसा चित्रण किया, उसने सारी अनिश्चितता दूर कर दी। स्पष्ट हो गया कि बीजेपी नेतृत्व ने रणनीति के तहत ही 11 जून को योगी आदित्यनाथ का दिल्ली दौरा कराया था। मोदी और शाह जानते हैं कि बीजेपी ही नहीं, संघ में भी योगी के प्रति आकर्षण है।
मोदी की यात्रा के बीच मीडिया में कोरोना की दूसरी लहर की चर्चा खत्म हो गई। पूरा फोकस उनकी मुलाकातों और बातचीत पर रहा। उसके बाद बीजेपी ने एक दिन का भी विराम नहीं लिया। उत्तर प्रदेश चुनाव को लेकर बीजेपी नेताओं के दौरे, लखनऊ से दिल्ली तक बैठकें जारी हैं। बीजेपी नेतृत्व को पता है कि सामाजिक-आर्थिक विकास व जन कल्याण कार्यक्रम आदि का लाभ उसे मिलता है लेकिन उसके पक्ष में माहौल हिंदुत्व और उस पर केंद्रित राष्ट्रीयता के मुद्दों से ही बनता है। अपराध व आतंकवाद के खिलाफ पार्टी का कठोर रुख इसी से जुड़ा है और आदित्यनाथ उसके यूएसपी बनकर उभरे हैं।

बंगाल में बीजेपी कार्यकर्ताओं के विरुद्ध हिंसा के बीच समर्थक ही जिस तरह से पार्टी के रुख पर सवाल उठाने लगे थे, उससे साफ था कि उन्हें फिर से विश्वास में लेना और पक्ष में काम करने के लिए प्रेरित करना है तो इनसे जुड़े मुद्दों को बार-बार सामने लाना होगा। योगी आदित्यनाथ इस लिहाज से बीजेपी के आदर्श मुख्यमंत्री हैं। उन्होंने उत्तर प्रदेश में जनसंख्या नियंत्रण कानून का प्रारूप सामने रखा और पूरा देश इसके पक्ष और विपक्ष में बहस कर रहा है।

5 अगस्त को प्रधानमंत्री का उत्तर प्रदेश के 6 जिलों के गरीब कल्याण योजना के लाभार्थियों से बातचीत का कार्यक्रम भी इसी रणनीति का हिस्सा था। 5 अगस्त बीजेपी के लिए बहुत मायने रखता है। इसी दिन 2016 में पाकिस्तान के विरुद्ध सर्जिकल स्ट्राइक किया गया था, जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 की समाप्ति इसी दिन हुई थी और अयोध्या में प्रधानमंत्री ने श्री राम मंदिर के लिए भूमि पूजन भी पिछले वर्ष इसी दिन किया था। उस दिन योगी अयोध्या महोत्सव के आयोजन में थे और वहीं से उन्होंने घोषणा की कि मंदिर भले 2025 में पूरा होगा लेकिन लोगों को दर्शन के लिए यह 2023 से ही उपलब्ध हो जाएगा।
मई-जून और जुलाई के पूर्वार्ध तक ऐसा लग रहा था मानो बंगाल की छाया में बीजेपी कार्यकर्ता और समर्थक इन मुद्दों को भूल चुके हैं। कोरोना की दूसरी लहर में विपक्ष के प्रहार के सामने बीजेपी कमजोर साबित हो रही थी। मीडिया पर अगले चुनाव में बीजेपी को हराने का अभियान चल रहा था। इस बीच गृह मंत्री अमित शाह एक अगस्त को उत्तर प्रदेश दौरे पर गए थे जिसमें उन्होंने लखनऊ के पास फॉरेंसिक साइंस इंस्टिट्यूट के शिलान्यास के साथ मिर्जापुर में मां विंध्यवासिनी मंदिर में विंध्य कॉरिडोर का शिलान्यास व भूमि पूजन किया।

विपक्ष इन सबकी आलोचना कर सकता है लेकिन बीजेपी की मुख्य पहचान यही है। इन मामलों में उसकी जितनी आलोचना होती है, उसे राजनीतिक रूप से उतना ही फायदा होता है। इस बीच अनुच्छेद 370 की समाप्ति के बाद जम्मू कश्मीर के नेताओं के साथ प्रधानमंत्री की दिनभर की बैठकों ने भी माहौल बदलने तथा वहां सरकार द्वारा किए जा रहे कार्यों की ओर देश का ध्यान खींचने में सफलता पाई। संयोग से इसी दौरान भारत को सुरक्षा परिषद की एक महीने की अस्थाई अध्यक्षता का दायित्व मिला और उसका भी सुनियोजित ढंग से उपयोग किया गया है। लंबे समय बाद प्रधानमंत्री ने किसी अंतरराष्ट्रीय मंच पर अपना संबोधन दिया जिसमें समुद्री और भौगोलिक सीमा विस्तार करने करने वाले तथा आतंकवाद प्रायोजित करने वाले देशों पर हमला करके संदेश दिया कि चीन और पाकिस्तान के प्रति रुख में किसी तरह की नरमी नहीं आई है।
विपक्ष से आगे

वस्तुत: पार्टी नेतृत्व की पहचान ऐसी ही स्थितियों में होती है। मोदी और शाह ने पिछले सात वर्षों में कई बार पार्टी को निराशा और चिंता से उबारा है। 2018 के अंत में मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान विधानसभा चुनावों में पराजय के बाद विपक्ष की जोरदार मोर्चाबंदी देखकर ऐसा लग रहा था कि 2019 में बीजेपी की नैया शायद पार नहीं होगी। लेकिन हुआ उलटा। इस बार भी उत्तर प्रदेश में बीजेपी का चुनाव अभियान परवान चढ़ गया है जबकि विपक्ष बैठकें करने और छोटे-मोटे जातीय सम्मेलन आयोजित कराने तक सीमित है। राष्ट्रीय स्तर पर भी विपक्षी दल सिर्फ बैठकें कर रहे हैं, जमीन पर पूरी सक्रियता बीजेपी की ही है। समय भी उसी का साथ देता है जो स्वयं उठकर खड़ा होने की कोशिश करता है।

About admin

Check Also

चमोली में 6 सौ काश्तकार मत्स्य पालन कर मजबूत कर रहे अपनी आजीविका

चमोली(आरएनएस)। जिले में 6 सौ से अधिक काश्तकार मत्स्य पालन के जरिये अपनी आजीविका को …

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *