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अब लड़कियों की शादी के लिए कानूनी उम्र सीमा 21 वर्ष

28 ,12,2021,Hamari चौपाल

{दीपा सिन्हा}

केंद्रीय मंत्रिमंडल ने हाल ही में लड़कियों की शादी की कानून उम्र 18 से बढ़ाकर 21 वर्ष करने की मंजूरी दी है। हालांकि इसके पीछे मुख्य कारण कम उम्र में होने वाली शादियों को रोकना है, फिर भी इसकी गहराई में जाएं तो कई बातें सामने आती हैं, जिन पर ध्यान देना जरूरी है। आंकड़ों की बात करें, तो नैशनल फैमिली हेल्थ सर्वे-5 से यह बात निकली है कि 23 प्रतिशत महिलाओं की शादी 18 वर्ष से कम उम्र में होती है। देश में यह प्रयास चल रहा है कि 18 वर्ष से कम उम्र में लड़कियों की शादी न हो। अब हालात बदल गए हैं और 56 प्रतिशत लड़कियों की शादी 21 वर्ष से कम उम्र में होने लगी है। अगर कानून आ जाता है तो 21 वर्ष से कम उम्र की लड़कियों की शादियां गैरकानूनी हो जाएंगी। इसका मतलब यह हो जाता है कि आज के समय में जितनी शादियां हो रही हैं, उसकी आधी शादियां गैरकानूनी की श्रेणी में आ जाएंगी।

कानून काफी नहीं

कानून को कैसे लागू किया जाए, यह ठीक से समझने की जरूरत है। पहली बात, कम उम्र की शादियों का मामला अब घटता जा रहा है। 15-20 सालों से देखा जा रहा है कि लड़कियों की शादी की औसत उम्र बढ़ रही है। इसके अलग-अलग कारण हैं। विस्तार में न भी जाएं तो इतना जरूर कहा जा सकता है कि सिर्फ कानून पारित होने से शादी की उम्र नहीं बढ़ेगी। उसके लिए और भी बहुत कुछ करने की जरूरत है। यह भी कि लड़कियों की शादी की उम्र 18 से 21 वर्ष करने का बहुत कुछ लॉजिक नहीं है। 18 से कम उम्र में वे बच्चे होते हैं और बच्चों का अपना हक होता है। यह माना जाता है कि 18 साल तक लोग अपने-आप निर्णय नहीं ले सकते हैं क्योंकि उनकी इमोशनल, मेंटल, फिजिकल मच्योरिटी अभी आई नहीं होती है। लेकिन 18 साल के बाद जब हम कहते हैं कि वे सरकार चुन सकती हैं या कोई और भी निर्णय ले सकती हैं,

 

 तो शादी क्यों नहीं कर सकतीं

चाइल्ड मैरिज कानून का ज्यादातर इस्तेमाल कौन करता है? यदि इस मसले को हम देखें तो माता-पिता और समुदाय इसका इस्तेमाल तब करते हैं, जब लडक़ी अपने मन से शादी करना चाहती है। माता-पिता जब उस शादी को पसंद नहीं करते हैं, तब लड़कियां घरों से भाग जाती हैं और चॉइस मैरिज करना चाहती हैं। ऐसे में लडक़ी के माता-पिता उस कानून का इस्तेमाल करना चाहते हैं, ताकि लडक़ी अपनी मर्जी से शादी न करे और उसे घर वापस लाया जा सके। अब तक जो कानून चला है, वह लड़कियों की तरफ से नहीं चला है, बल्कि उनके खिलाफ चला है। यह भी सोचने की जरूरत है कि कम उम्र में होने वाली शादियां रोकने के लिए कानून बनाने के साथ-साथ और क्या स्टेप्स लेने चाहिए।
हम फिर से अपने अनुभवों से देखें कि बाल विवाह क्यों होता है, किन परिवारों में होता है तो स्पष्ट होता है कि ज्यादातर गरीब और कम पढ़े-लिखे परिवारों में ऐसा होता है। ये परिवार क्यों ऐसा फैसला करते हैं? इसका एक बड़ा कारण यह भी सामने आता है कि माता-पिता को अपनी बेटी की सेफ्टी की बहुत चिंता होती है। उन्हें लगता है कि जब लडक़ी मच्योर हो जाए तो ज्यादा समय उसे घरों में रखेंगे तो पता नहीं उसे सुरक्षित रख पाएंगे या नहीं। समाज क्या कहेगा? स्पष्ट है कि कानून से ज्यादा जरूरी है ऐसा माहौल बनाना, जिससे यह डर नहीं रहे। उन्हें समझाना होगा कि लड़कियां पढ़ाई करना चाहती हैं, नौकरी करना चाहती हैं, तो उन्हें ऐसा करने देने में कोई हर्ज नहीं है। यह भी कि शादी के लिए जल्दीबाजी करने की कोई ठोस, तर्कसंगत वजह नहीं है।

अगर आसपास स्कूल, कॉलेज अच्छे हों, पढ़ाई करने के बाद लड़कियों को नौकरियां मिल रही हों, तब अपने आप ही देखा गया है कि शादी की औसत उम्र खुद ही बढ़ जाती है। एक और जो कारण दिया जाता है कि बाल-विवाह को रोकना जरूरी है तो इसमें देखा जाता है कि लड़कियां किस लेवल तक पढ़ती हैं। लड़कियों को हम जितना पढ़ाएंगे, बाल विवाह उतना कम होगा, न कि जोर-जबर्दस्ती करके अरेंज्ड मैरिज बढ़ाने की कोशिश करने पर। यह अपने आप नहीं होगा। स्कूलों में टॉयलेट की सुविधा दी जाए, स्कूल आने-जाने के आसान साधन उपलब्ध हों, तभी लड़कियां पढ़ पाएंगी। ऐसे में खुद-ब-खुद लड़कियों की सुविधा के अनुरूप माहौल बनेगा।

पिछले लगभग 20 वर्षों से हमारे देश में महिलाओं में जो वर्कफोर्स पार्टिसिपेशन है, वह घटता आ रहा है। वह इसलिए घटता आ रहा है कि महिलाओं के लिए खेती के अलावा कामकाज का विकल्प ही नहीं है। अगर पढ़ी-लिखी भी हों, तो उन्हें उस तरह की नौकरी नहीं मिल पा रही है। अगर पढऩे-लिखने का मौका दिया जाए, नौकरी दी जाए और समाज में ऐसी स्थिति बनाई जाए जहां असुरक्षा न हो, तो अपने-आप शादी की उम्र बढ़ जाएगी। इस तरह का कानून लाने से उसका इस्तेमाल लड़कियों को उनकी पसंद चुनने से रोकने और उनकी फ्रीडम को कम करने के लिए किए जाने का डर रहेगा। पूरी दुनिया में हम जहां भी देखें, लडक़े-लड़कियों के लिए शादी की उम्र सीमा 18 साल ही होती है।

शिक्षा और रोजगार

एक पहलू यह भी है कि बच्चे जल्दी न हों, नहीं तो महिलाओं का स्वास्थ्य खराब होगा। इसके लिए जबरदस्ती कानून लाने का तरीका ठीक नहीं है। सही तरीका यह होगा कि शिक्षा और रोजगार के स्तर पर विमिन एंपावरमेंट को तवज्जो दी जाए। अगर महिलाओं की स्थिति को हम बेहतर करना चाहते हैं, तो अभी बहुत सारे काम करने हैं। जैसे अबॉर्शन रोकना, हिंसा रोकना, दहेज खत्म करना। ज्यादा अच्छा होता कि सरकार इन चीजों पर ज्यादा जोर देती।

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