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जंतर-मंतर पर पहलवानों का धरना धीरे-धीरे उस अवस्था में पहुंच गया जहां से इसका अंत होना इस समय कठिन लग रहा है।

HamariChoupal,18,05,2023

अवधेश कुमार

किसान संगठन और खाप पंचायतों के प्रतिनिधियों ने अपना जो तेवर दिखाया है उससे साफ है कि धरने को लंबा खींचने की रणनीति बना दी गई है। हालांकि सर्वोच्च न्यायालय ने इस मामले की आगे सुनवाई करने से इनकार कर दिया। न्यायालय ने कहा कि महिला पहलवानों को कोई शिकायत है तो संबंधित मजिस्ट्रेट के न्यायालय या उच्च न्यायालय में जाएं।

कुश्ती महासंघ के अध्यक्ष ब्रिज भूषण शरण सिंह के विरुद्ध प्राथमिकी दर्ज हो चुकी है, नाबालिग शिकायतकर्ता को भी पर्याप्त सुरक्षा मिल गई है। अन्य शिकायतकर्ताओं को खतरे का भी आकलन किया गया। कोई खतरा नहीं होने के बावजूद उन्हें भी सुरक्षा दी गई। सभी शिकायतकर्ता महिला पहलवानों को एक-एक पुलिसकर्मी की सुरक्षा दी गई है। नाबालिग शिकायतकर्ता को सिक्योरिटी यूनिट से सुरक्षा कराई गई है। इस सिक्योरिटी यूनिट के पुलिसकर्मिंयों को एक निजी वाहन दिया गया है जो उसके साथ अपने वाहन से चलते हैं।  सीआरपीसी यानी अपराध प्रक्रिया संहिता की धारा 161 के अंतर्गत बयान भी दर्ज किए गए हैं और आगे किए जा रहे हैं। बावजूद यदि पहलवान पुलिस जांच रिपोर्ट आने तक धरना खत्म करने और जांच प्रक्रिया पर नजर रखते हुए न्यायालय के फैसले की प्रतीक्षा करने को तैयार नहीं तो सोचना पड़ेगा कि ऐसा क्यों हो रहा है?  मांग कर रहे हैं कि जब तक भारतीय कुश्ती संघ के अध्यक्ष बृजभूषण शरण सिंह की गिरफ्तारी नहीं होगी धरना जारी रहेगा।

वास्तव में पूर्व धरना के बाद समिति गठित होने और सरकार से बातचीत होने पर धरना समाप्त किया गया था। उसके बाद ऐसा लगा था कि दोबारा धरना नहीं होगा। बृजभूषण शरण सिंह कह रहे हैं कि वह फांसी पर चढऩे का तो तैयार हैं, लेकिन अपराधी बनकर त्यागपत्र नहीं देंगे। कुश्ती महासंघ के अध्यक्ष ने नाबालिग-बालिग लडिक़यों का यौन शोषण किया है तो इस देश में कोई ऐसा व्यक्ति नहीं होगा जो उनका समर्थन करेगा। उन्हें इसकी सजा मिलनी ही चाहिए। किंतु आरोप लगाने से किसी को अपराधी नहीं मान सकते। न्यायालय को भी प्रमाण चाहिए। जहां तक गिरफ्तारी की बात है तो सर्वोच्च न्यायालय कह चुका है कि 7 वर्ष तक की सजा वाले अपराध में पुलिस चाहे तो गिरफ्तार करे या गिरफ्तार न करे। दिल्ली पुलिस ने बालिग और नाबालिग सात पहलवानों की शिकायत के आधार पर दो अलग-अलग प्राथमिकी दर्ज की है। उन पर आईपीसी यानी भारतीय दंड संहिता की धारा 354, 354 ए, 354 डी लगाई गई है। ये धाराएं शारीरिक छेड़छाड़, अश्लील इशारे करने, स्टॉकिंग और कॉमन इंटेंशन से संबंधित हैं। दूसरी, पोक्सो कानून के अंतर्गत का मामला है। इन शिकायतों के आधार पर किसी को अनिवार्य रूप से गिरफ्तार करने का प्रावधान नहीं है। सर्वोच्च न्यायालय ने भी नहीं कहा कि इन्हें गिरफ्तार किया जाना चाहिए। वैसे भी छेडख़ानी और यौन शोषण के आरोपों में 2012 से लेकर 2022 तक की बातें हैं।

कुश्ती संघ के अध्यक्ष पर देश के अलग-अलग राज्यों के साथ विदेशों में भी विभिन्न प्रतियोगिताओं के दौरान छेडख़ानी और यौन शोषण  का आरोप है।  जांच में एक एसीपी सहित सात महिला पुलिस अधिकारियों को लगाया गया है। उसकी जांच में तो समय लगेगा। वैसे भी गिरफ्तारी करने के पीछे मुख्य उद्देश्य होता है कि आरोपी भाग न जाए या सबूतों को नष्ट नहीं करे।

शिकायतकर्ता इतने कमजोर नहीं हैं कि बृजभूषण धमकी देकर उनके बयान बदलवा लें। उन्हें पर्याप्त सुरक्षा मुहैया करा दी गई है। बृज भूषण सिंह सांसद हैं इसलिए उनके भागने का भी कोई प्रश्न नहीं है। कायदे से प्राथमिकी दर्ज हो गई हो तो पुलिस को जांच करने देना चाहिए। यह मामला ऐसा नहीं है जिस पर तुरंत जांच कर पुलिस निष्कर्ष निकाल ले। पुलिस जांच में कोताही करेगी तो फिर सर्वोच्च न्यायालय जाने का दरवाजा खुला हुआ है। यह संभव नहीं कि पुलिस की भूमिका संदिग्ध हो और न्यायालय याचिका का निपटारा कर दे। केंद्रीय खेल मंत्री अनुराग ठाकुर का बयान है कि पहलवानों से बात कर समिति का गठन किया गया। यह सच है कि समिति के सामने सभी को पेश होने का अवसर दिया गया। समिति में महिलाओं की संख्या ज्यादा रखी गई। इनकी मांगों के अनुरूप भारतीय कुश्ती सं

घ में निष्पक्ष चुनाव के लिए भारतीय ओलंपिक संघ आईओए को अधिकार दिया गया, जिसने अपनी समिति भी गठित कर दी। यही समिति वहां पर चयन प्रक्रिया, टूर्नामेंट आयोजन और आंतरिक शिकायत समिति का गठन करेगी।
पहलवान कह रहे हैं कि उन्हें किसी समिति के सदस्य पर विश्वास नहीं है, बृजभूषण सिंह की गिरफ्तारी होनी चाहिए। किसी की गिरफ्तारी कानून की धाराओं के तहत ही हो सकती है। आज का परिदृश्य देखते हुए यह बेहिचक कहा जा सकता है कि अब धरना पहलवानों के नियंत्रण से बाहर जा चुका है। देश का वह समूह जो किसी-न-किसी बहाने नरेन्द्र मोदी सरकार, भाजपा, संघ आदि को बदनाम करने, कमजोर करने या जनता को उनके विरुद्ध उद्वेलित करने के लिए प्रयासरत हैं वो सारे इसका उपयोग कर रहे हैं। ऐसा लगता है जैसे इसको शाहीन बाग या कृषि कानून विरोधी आंदोलन का प्रतिरूप बनाने की रणनीति पर काम किया जा चुका है। कल तक बड़े संस्थानों में काम करने वाले पत्रकारों का समूह अपने यूट्यूब चैनल का माइक और कैमरा लेकर जंतर-मंतर पर पहले से जम गए थे। अब तो किसान संगठनों और खाप पंचायतों के लोग आकर ऐलान ही कर चुके हैं कि उनका धरना खत्म करने का कोई इरादा नहीं।

खाप पंचायतों की प्राचीन परंपरा है। कोई सरकार उनको नाराज करने का जोखिम नहीं उठा सकती। निश्चित रूप से यह सब एक विशेष रणनीति के तहत हुआ है। रणनीति यही है कि धरने को लंबा खींच मोदी सरकार के विरु द्ध माहौल बनाया जाए। यह स्पष्ट हो चुका है कि धरने पर बैठे पहलवानों के लिए बगल में एक पंचतारा होटल में कमरा बुक कराया गया है जहां वे आराम करते हैं। कमरे की बुकिंग कराने वाली कंपनी का नाम है, स्काई होलीडे। तर्क यह है कि महिला पहलवानों के लिए धरना स्थल पर सार्वजनिक सुविधाएं उपलब्ध नहीं है इस कारण कमरे लिए गए। पहली नजर में यह बात सही लग सकती है। वैसे भी यह उनका अधिकार है जैसे चाहें रहें। किंतु जब आप आंदोलन करने आते हैं तो लोग जानना चाहेंगे कि उनका खर्च कौन उठा रहा है।

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