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सात दिवसीय श्रीमद् भागवत महापुराण कथा का हुआ समापन।

देहरादून। 2अप्रैल। बिपिन नौटियाल। आईटी पार्क डांडा लखाैंड में स्वर्गीय श्रीमती विनोदिनी अंत की वार्षिक श्राद्ध एवं समस्त पितरों की मुक्ति के लिए श्रीमद्भागवत महापुराण कथा ज्ञान यज्ञ का आयोजन किया गया। आयोजित श्रीमद भागवत कथा का रविवार को समापन हो गया। प्रसिद्ध कथा वाचक दिल्ली निवासी पंडित राकेश चंद्र डुकलान के सानिध्य में श्रीमद् भागवत कथा का आयोजन किया गया। भागवत कथा के अंतिम दिन सुदामा चरित्र की कथा सुनाते हुए प्रसिद्ध कथा वाचक दिल्ली निवासी पंडित राकेश चंद्र डुकलान ने कहा कि मनुष्य स्वयं को भगवान बनाने के बजाय प्रभु का दास बनने का प्रयास करें। भक्ति भाव देख कर जब प्रभु में वात्सल्य जागता है तो वे सब कुछ छोड़ कर अपने भक्तरूपी संतान के पास दौडे़ चले आते हैं। उन्होंने कहा कि गृहस्थ जीवन में मनुष्य तनाव में जीता है जब कि संत सद्भाव में जीता है।

यदि संत नहीं बन सकते तो संतोषी बन जाओ। संतोष सबसे बड़ा धन है। सुदामा की मित्रता भगवान के साथ नि:स्वार्थ थी उन्होंने कभी उनसे सुख साधन या आर्थिक लाभ प्राप्त करने की कामना नहीं की। लेकिन सुदामा की पत्नी द्वारा पोटली में भेजे गए चावलों में भगवान श्री कृष्ण से सारी हकीकत कह दी। प्रभु ने बिन मांगे ही सुदामा को सबकुछ प्रदान कर दिया। आचार्य पंडित राकेश चंद्र डुकलान जी महाराज ने कहा कि श्रीमद् भागवत कथा सुनने से जीवन का कल्याण है जहां भागवत कथा का गुणगान होता है वहां प्रभु का वास होता है। भागवत कथा के अंतिम दिन आचार्य राकेश चंद्र डुकलान जी ने पंत परिवार और श्रद्धालुओं का आभार प्रकट किया कि उन्होंने बड़े प्यार और लगन के साथ कथा को सुना।

 

उन्होंने कहा कि हमें हमेशा प्रभु को हाथ जोड़कर जीवन व्यतीत करना चाहिए। श्रीमद भागवत कथा का आयोजन उमेश पंत, दिनेश पंत एवं समस्त पंत परिवार द्वारा किया गया।

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