विकासनगर(एजेंसी,RNS),21,03,2023
पछवादून मे इन दिनों फर्जी पत्रकारों की बाढ़ आ गई हैं। सोशल मीडिया के सहारे पत्रकार बने ये खबरनवीस खुद को चैनल का पत्रकार बता पीत पत्रकारिता कर धन उगाही में लगे हुए हैं। इनका पहला निशाना बन रहे हैं सरकारी अधिकारी व कर्मचारी। ऐसा ही एक मामला कालसी वन प्रभाग के एक अधिकारी के साथ हुआ। इस अधिकारी ने बताया कि बीते दिनों उनके मोबाईल फोन से किसी ने उनकी सोसल मीडिया की आई डी हैक कर ली थी और उनके परिचितों व रिश्तेदारों से पैसे की मांग की जा रही थी। इसी की शिकायत करने के लिए वह जब कालसी थाने जा रहे थे तो वहां रास्ते में उनको कुछ तथाकथित मीडिया कर्मियों ने रोका और चैनल की धोंस दिखाकर डराने धमकाने लगे। उन्होंने बताया कि यह पहला मामला नहीं है इससे पहले भी ये कथित मीडिया कर्मी कई अन्य विभागों के अधिकारियों को अपना निशाना बना चुके हैं।
बताया जा रहा है कि इन दिनों इस तरह के सोसल मीडिया चैनलों की बाढ़ आ रखी हे। इन चैनलों को चलाने वाले अधिकांश वो युवक हैं जो कि किसी भी अखबार या सेटेलाईट चैनल से नहीं जुड़े हुए हैं। इनका काम सिर्फ यह है कि यू ट्यूब पर ये अपना एक एकाउट बना लेते हैं और फिर उल्टी सीधी खबर बनाकर विभाग व सरकारी अधिकारी की छवि खराब करते हैं। इसके बाद इसके एवज में धन की मांग करते हैं। इस तरह से ये पत्रकारिता की आढ़ में ब्लेकमेलिंग का धन्धा कर रहे हैं। कोई भी अधिकारी या कर्मचारी इनके खिलाफ सिर्फ मीडिया की बजह से कार्रवाई नहीं करता हैं। बताया जा रहा है कि इस समय केवल पछवादून में ही सिर्फ तीन दर्जन से अधिक ऐसे फर्जी चैनल हैं जिनका न तो कही पंजीकरण हैं और न ही कही किसी तरह को कोई बजूद। ये सिर्फ काला कारोबार करने के लिए ही चल रहे हैं। कोई भू माफिया है तो कोई वन माफिया, कोई खनन का कारोबार कर रहा है तो कोई शराब का।
सुप्रीम कोर्ट की है ये गाईडलाईन
सुप्रीम कोर्ट ने वर्ष 2018 नवम्वर को एक जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान कहा था कि सोशल मीडिया पर किसी तरह के सामचार नहीं चलाए जा सकते हैं यह केवल जनहित के मुद्दों को उठाने का प्लेटफार्म है। इस पर जनहित की बात करने वाला किसी तरह का पत्रकार नहीं माना जाएगा और न ही उासको किसी तरह से कोई भी माईक आई डी लगाने का अधिकार नहीं हैा।
सोशल मीडिया और फेक न्यूज़ संबंधी नियम-कानून
भारत में सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पहले से ही सूचना प्रौद्योगिकी (IT) अधिनियम, 2008 के दायरे में आते हैं।
यदि सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म को अदालत या कानून प्रवर्तन संस्थाओं द्वारा किसी सामग्री को हटाने का आदेश दिया जाता है तो उन्हें अनिवार्य रूप से ऐसा करना होगा।
सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर रिपोर्टिंग तंत्र भी मौजूद हैं, जो यह पता लगाने का प्रयास करते हैं कि क्या कोई सामग्री सामुदायिक दिशा-निर्देशों का उल्लंघन कर रही है या नहीं और यदि वह ऐसा करते हुए पाई जाती है तो उसे प्लेटफॉर्म से हटा दिया जाता है।
भारत में फेक न्यूज़ को रोकने के लिये कोई विशेष कानून नहीं है। परंतु भारत में अनेक संस्थाएँ हैं जो इस संदर्भ में कार्य कर रही हैं-
प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया: एक ऐसी ही नियामक संस्था है जो समाचार पत्र, समाचार एजेंसी और उनके संपादकों को उस स्थिति में चेतावनी दे सकती है यदि यह पाया जाता है कि उन्होंने पत्रकारिता के सिद्धांतों का उल्लंघन किया है।