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प्रवासी मजदूरों की फिक्र

06.07.2021,Hamari Choupal

सुप्रीम कोर्ट ने वन नेशन, वन राशन कार्ड योजना को जमीन पर उतारने के लिए जो सख्त निर्देश जारी किए हैं, वे बहुत महत्वपूर्ण हैं। महामारी के हालात में आजीविका गंवा चुके प्रवासी मजदूरपरिवारों की त्रासद स्थिति की सहज ही कल्पना की जा सकती है। ऐसे हर परिवार के लिए और परिवार के हर सदस्य के लिए राशन-पानी का इंतजाम उसी स्थान पर होना चाहिए, जहां वे रह रहे हों। इसलिए वन नेशन, वन राशन कार्ड की योजना की उपयोगिता और आवश्यकता में कोई संदेह नहीं हो सकता। लेकिन उस पर प्रभावी अमल सुनिश्चित करने को लेकर सवाल जरूर बनता है। इसी सवाल पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और राज्य सरकारों की खिंचाई करते हुए उनके अब तक के प्रयासों की तीखी आलोचना की है।

ध्यान रहे, कोर्ट ने देशव्यापी लॉकडाउन के दौरान प्रवासी मजदूर परिवारों की दुर्दशा को देखते हुए पिछले साल मई में इस सुओमोटो केस पर सुनवाई शुरू की थी। इस बीच वन नेशन, वन राशन कार्ड योजना पर बातें बहुत होती रहीं, प्रवासी मजदूरों तक योजना के फायदे पहुंचाने के दावे भी किए जाते रहे, लेकिन फायदे तो तब पहुंचेंगे जब इन प्रवासी मजदूरों का रजिस्ट्रेशन होगा। इसी मोर्चे पर सरकारों की ओर से लापरवाही बरती जा रही है।

कोर्ट ने केंद्र सरकार से असंगठित क्षेत्र के मजदूरों का नैशनल डेटाबेस तैयार करने का काम 31 जुलाई तक पूरा करने को कहा है। इन्फ्रास्ट्रक्चर से जुड़े दूसरे अधूरे काम भी इसी बीच पूरे करने होंगे। उदाहरण के लिए, दिल्ली जैसे राज्य में भी सार्वजनिक वितरण प्रणाली की दुकानों में ईपीओएस (इलेक्ट्रॉनिक पॉइंट ऑफ सेल) की शुरुआत नहीं की गई है। चूंकि इसके बगैर राशनकार्ड धारक की रीयल टाइम पहचान सुनिश्चित नहीं हो सकती, इसलिए यह व्यवस्था भी अमल में नहीं लाई जा सकती कि यूपी या बिहार के किसी मजदूर को मुंबई, बेंगलुरु या चेन्नै में राशन मिल जाए और उसके परिवार को यह उसके गांव स्थित दुकान से मिलता रहे।

गौर करने की बात यह भी है कि जिन कानूनों के तहत सुप्रीम कोर्ट ने प्रवासी मजदूरों के परिवारों के लिए यह सहूलियत सुनिश्चित करने को कहा है, वे बरसों पुराने हैं। नेशनल फूड सिक्यॉरिटी एक्ट 2013 से, इंटर स्टेट माइग्रेंट वर्कमेन एक्ट 1979 से और अनऑर्गनाइज्ड वर्कर्स सोशल सिक्यॉरिटी एक्ट 2008 से ही अस्तित्व में हैं। साफ है कि किसी कानून का बन जाना और संबंधित सभी लोगों तक उस कानून का फायदा सचमुच पहुंच पाना दो एकदम अलग बातें हैं। कम से कम इस मामले में सुप्रीम कोर्ट के सख्त रुख से यह उम्मीद बन रही है कि इस महीने के आखिर तक सभी जरूरी इंतजाम पूरे करके प्रवासी मजदूरों तक यह सुविधा पहुंचा दी जाएगी। ऐसा हो जाए तो यह एक बड़ी उपलब्धि कही जाएगी, लेकिन जरूरी यह भी है कि ऐसे तमाम मामलों में सरकारों के कागजी दावों से आगे बढ़कर यह सुनिश्चित करने के कारगर प्रयास हों कि सभी जरूरतमंद लोगों तक सरकारी योजनाओं का लाभ वास्तव में पहुंचे।

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