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महंगाई ने बढ़ाई मुसीबत

22.06.2021,Hamari Choupal

पेट्रोलियम गुड्स, कमॉडिटी और लो बेस इफेक्ट के कारण मई में थोक दर 12.94 फीसदी और खुदरा महंगाई दर 6.30 फीसदी तक चली गई, जो पिछले 6 महीने में सबसे अधिक है। यह रिजर्व बैंक (आरबीआई) के 2-6 फीसदी के लक्ष्य से ज्यादा है। यह बुरी खबर है क्योंकि इससे आरबीआई पर ब्याज दरों में बढ़ोतरी करने का दबाव बढ़ेगा। यह बात और है कि वह ऐसा नहीं करेगा क्योंकि असल चिंता जीडीपी ग्रोथ बढ़ाने की है। कोरोना महामारी की वजह से लॉकडाउन और मांग में कमी आने के कारण ग्रोथ कमजोर बनी हुई है। दूसरी तरफ, चीन, अमेरिका और अन्य अमीर देशों में आर्थिक गतिविधियां तेज हो रही हैं, जिससे कच्चे तेल और दूसरी कमॉडिटी के दाम और बढ़ेंगे। यानी आगे भी आरबीआई के लिए ग्रोथ और महंगाई दर के बीच संतुलन बनाना आसान नहीं होगा। कमॉडिटी के अधिक दाम से उद्योग-धंधों पर भी बुरा असर पड़ेगा क्योंकि उनके लिए कच्चे माल की लागत बढ़ जाएगी। इससे मैन्युफैक्चर्ड गुड्स और महंगे होंगे। इसे कोर इन्फ्लेशन कहते हैं। इसमें पेट्रोलियम-गुड्स पेट्रोलियम गुड्स और खाने-पीने की महंगाई दर शामिल नहीं होती। मई में यह पिछले 83 महीनों में सबसे अधिक रही। इसका मतलब यह है कि कंपनियां कच्चे माल की बढ़ी हुई लागत का बोझ ग्राहकों पर डाल रही हैं। सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकॉनमी (सीएमआईई) ने जनवरी-मार्च तिमाही में 1,481 कंपनियों के नतीजों का विश्लेषण किया तो पता चला कि उन्हें 1.8 लाख करोड़ रुपये का मुनाफा हुआ है। इसकी बड़ी वजह उनके प्रॉफिट मार्जिन में बढ़ोतरी है। यह मार्जिन उन्हें सामान के दाम बढ़ाने से मिल रहा है।

इसे हेल्दी नहीं माना जा सकता क्योंकि महामारी के कारण उद्योग-धंधों के बंद होने या कम उत्पादन, बड़े पैमाने पर बेरोजगारी बढऩे और पगार घटने से वस्तुओं और सेवाओं की मांग घटी है। आम ग्राहकों के लिए बुरी खबर इतनी ही नहीं है। खुदरा महंगाई दर में खाने के सामान की महंगाई मई में 5.01 फीसदी रही, जो इससे पिछले महीने सिर्फ 1.96 फीसदी थी। इसमें खाने का तेल और दाल की कीमतों का बड़ा योगदान है। खाने के सामान के साथ पेट्रोल, डीजल और रसोई गैस की महंगाई से गरीबों पर सबसे अधिक चोट पड़ रही है। इससे दूसरी जरूरतों पर खर्च करने के लिए उनके पास कम पैसा बच रहा है। यही हाल रहा तो इससे खपत और घटेगी, जिसका ग्रोथ पर बुरा असर होगा। केंद्र और राज्य चाहें तो पेट्रोलियम गुड्स पर टैक्स घटाकर लोगों को फौरन महंगाई से राहत दे सकते हैं। पेट्रोल के दाम में 61 फीसदी और डीजल में 54 फीसदी टैक्स के मद में जाता है। इससे लोगों, कारोबारियों और रिजर्व बैंक को राहत मिलेगी, कर्ज सस्ता बना रहेगा, खपत को मजबूती मिलेगी। इसके साथ, केंद्र को आर्थिक गतिविधियां तेज करने के लिए राहत पैकेज लाने पर भी विचार करना चाहिए।
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