Hamarichoupal,30,07,2025
देहरादून (हमारी चौपाल)देहरादून के भाववाला स्थित शराब के ठेके पर आज फिर वही हुआ जो वर्षों से होता आ रहा है—ग्राहकों से खुलेआम ओवररेटिंग। बाज़ार में अधिकतम खुदरा मूल्य (MRP) ₹100 अंकित होने के बावजूद एक ब्रीज़र की बोतल ₹110 में बेची गई। ग्राहक से सात ब्रीज़र पर ₹770 वसूले गए, यानी ₹70 की अवैध वसूली। न रसीद, न सफाई—सीधी जेबकतरी।
यह कोई एक दिन की बात नहीं है। देहरादून के कई इलाकों में ठेकेदार इसी तरह की लूट-खसोट में लिप्त हैं, और यह सब उस वक्त हो रहा है जब प्रदेश की सरकार “जीरो टॉलरेंस फॉर करप्शन” का दावा करती है।
कुछ वर्ष पूर्व ऐसी ही शिकायत जब जिलाधिकारी सविन बंसल के संज्ञान में आई थी, तब उन्होंने स्वयं शराब के ठेके पर जाकर औचक निरीक्षण किया था और ओवररेटिंग की पुष्टि होने पर तत्काल सख्त निर्देश जारी किए थे। लेकिन विडंबना यह है कि आज भी वैसा ही भ्रष्ट गठजोड़ – “ठेकेदारों और आबकारी विभाग के अफसरों” के बीच – कायम है, और जनता को मूर्ख बनाकर अवैध वसूली की जा रही है।
जब डीएम को भी करनी पड़ी थी कार्रवाई, फिर भी जिंदा है गठजोड़
हाल ही में डीएम सविन बंसल को शराब माफिया-प्रशासन गठजोड़ का एक और सबूत तब मिला जब देहरादून के जिला आबकारी अधिकारी ने शासन की मंशा के विरुद्ध, कोर्ट में ठेकेदारों के पक्ष में पत्र भेजकर शराब की दुकानों के स्थानांतरण को रोकने की कोशिश की। इस मामले में तो शासकीय अधिवक्ता तक ने केस लड़ने से मना कर दिया, यह कहते हुए कि “एक ओर सरकार कुछ और कह रही है, दूसरी ओर जिला अधिकारी कुछ और।”
आखिरकार जिलाधिकारी को कठोर कदम उठाते हुए जिला आबकारी अधिकारी को निलंबित करना पड़ा। लेकिन सवाल यह उठता है कि यदि इतनी सख्त कार्रवाई के बावजूद भी ठेकेदार बेखौफ हैं, तो इसके पीछे किसका संरक्षण है?
फेविकोल के जोड़” जैसा गठजोड़
प्रशासनिक निरीक्षण, सख्त निर्देश, निलंबन जैसी कार्यवाहियों के बावजूद भी सरकारी शराब की दुकानों पर MRP से अधिक वसूली बदस्तूर जारी है। ऐसा प्रतीत होता है जैसे ठेकेदार और कुछ आबकारी अफसरों का रिश्ता फेविकोल के जोड़ की तरह है—कभी नहीं टूटने वाला।
आमजन को नशे से दूर रहने की नसीहतें देने वाली व्यवस्था, खुद उन्हें लूट रही है। कोई निगरानी नहीं, कोई जवाबदेही नहीं, कोई तंत्र नहीं जो जनता के पक्ष में खड़ा हो। ग्राहक के हाथ में कोई विकल्प नहीं, क्योंकि शराब के ये सरकारी ठेके “सरकारी संरक्षण” की ढाल में काम कर रहे हैं।
मुख्यमंत्री की “जीरो टॉलरेंस” नीति पर बड़ा सवाल
जब प्रदेश के मुख्यमंत्री मंचों से “भ्रष्टाचार के खिलाफ जीरो टॉलरेंस” की बात करते हैं, तब यह दृश्य उनकी नीति की जमीनी हकीकत को उजागर करता है। सवाल यह नहीं है कि ₹10-₹20 की ओवररेटिंग क्यों हो रही है, सवाल यह है कि जो दिख रहा है, उस पर कार्रवाई क्यों नहीं हो रही?
अब सवाल जनता का है – कार्रवाई कब और कैसे?
शराब की दुकानों पर ओवररेटिंग को अब किसी गोपनीय जांच की जरूरत नहीं। सब कुछ प्रमाण सहित सामने है—बोतल पर अंकित MRP ₹100, और कार्ड मशीन से ₹770 की वसूली सात बोतलों के लिए। यह लूट नहीं तो और क्या है?
प्रशासनिक अमले को अब पुनः हिम्मत जुटाकर इस खुले भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाना चाहिए ? या फिर यह भी उन्हीं मुद्दों की तरह ठंडे बस्ते में चला जाएगा, जिनका हल “ऑर्डर शीट” तक सीमित रह जाता है?