देहरादून, 06 मई 2025(हमारी चौपाल)राज्य में ज़मीन की खरीद-फरोख्त को लेकर हो रही धोखाधड़ी के मामलों में लगातार इजाफा हो रहा है। ताजा मामला देहरादून के बड़ोवाला क्षेत्र का है, जहां दस से अधिक जमीन खरीदारों ने एक पूर्व पार्षद और उसके साथियों पर गंभीर आरोप लगाए हैं। इन पीड़ितों में एक पूर्व सैनिक भी शामिल हैं, जिन्होंने सोमवार को उत्तरांचल प्रेस क्लब में आयोजित पत्रकार वार्ता में अपनी आपबीती साझा की।
पीड़ितों का कहना है कि वर्ष 2020 में उन्होंने बड़ोवाला आर्केडिया ग्रांट स्थित भूमि को एवीएस एसोसिएट्स के प्रॉपर्टी डीलर विजेंद्र सिंह रावत और उसके सहयोगी लाखन सिंह रावत से खरीदा था। रजिस्ट्री और दाखिल-खारिज की तमाम कानूनी प्रक्रियाएं पूरी होने के बावजूद अब यह जमीन एनएच की अधिसूचित सीमा में आ गई है और सरकारी दस्तावेज़ों में खरीदारों का नाम दर्ज नहीं है।
पूर्व सैनिक हीरा वल्लभ कुनियाल ने बताया कि “यह हमारे जीवन की सबसे बड़ी ठगी है। हमने न केवल अपनी बचत की पूंजी लगाई, बल्कि विश्वास के साथ ज़मीन खरीदी। अब हम दर-दर भटक रहे हैं, लेकिन न्याय नहीं मिल रहा।”
प्रेस वार्ता में देवकी बिजल्वान, नंदा देवी, शशिकला, विनोद कुमार, सचिन, जगजीवन राम, नरवीर लाल, संतोषी देवी और एडवोकेट अभिजीत पटवाल समेत सभी पीड़ित मौजूद रहे। सभी ने आरोप लगाया कि आरोपी विजेंद्र सिंह रावत, जो सत्ताधारी पार्टी का नामित पूर्व पार्षद रह चुका है, अपने रसूख का इस्तेमाल कर उन्हें लगातार धमका रहा है।
पीड़ितों के अनुसार, उन्होंने 9 अक्टूबर 2024 को पटेलनगर थाने में एफआईआर दर्ज करवाई थी। मामला धारा 120बी, 420, 406, 465, 504 और 506 के तहत दर्ज किया गया, लेकिन अब तक न तो कोई गिरफ्तारी हुई और न ही कोई ठोस कार्रवाई।
एडवोकेट अभिजीत पटवाल ने कहा, “हमने मुख्यमंत्री से लेकर जिलाधिकारी और एसएसपी तक सबका दरवाज़ा खटखटाया, लेकिन नतीजा शून्य रहा। आरोपी खुलेआम घूम रहे हैं और हमें धमकियां दे रहे हैं।”
सभी पीड़ितों ने चेतावनी दी कि यदि जल्द ही उन्हें न्याय नहीं मिला तो वे सड़क पर उतरकर आंदोलन करने को मजबूर होंगे, जिसकी पूरी जिम्मेदारी सरकार और प्रशासन की होगी।
इस गंभीर मामले ने एक बार फिर यह सवाल खड़ा कर दिया है कि उत्तराखंड जैसे शांत प्रदेश में भी भूमाफिया किस कदर सक्रिय हैं, और सत्ता से जुड़े लोगों का संरक्षण पाकर खुलेआम आम नागरिकों को ठग रहे हैं।
अब देखना यह होगा कि सरकार और प्रशासन इस मामले में क्या ठोस कदम उठाते हैं, या फिर न्याय की आस में ये पीड़ित यूं ही भटकते रहेंगे।