देहरादून: सूत्रों के हवाले से एक चौंकाने वाली खबर सामने आई है, जिसमें पचवादून के अंबिवाला में पूर्व प्रधान नौशाद पर परवल रोड पर बड़े पैमाने पर अवैध प्लाटिंग करने का आरोप लगाया गया है। स्थानीय लोगों के अनुसार, नौशाद ने न केवल कृषि भूमि पर अवैध कब्जा किया है, बल्कि एक बरसाती नाले को भी मिट्टी और मलबे से पाट दिया है, जिससे क्षेत्र में गंभीर पर्यावरणीय खतरे पैदा हो गए हैं।
मौके का हाल
विश्वसनीय सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार, पूर्व प्रधान नौशाद ने अंबिवाला स्थित परवल रोड पर एक बरसाती नाले को हजारों डंपर मिट्टी और मलबे से भरकर समतल कर दिया है। मौके पर जाकर निरीक्षण करने से यह स्पष्ट रूप से दिखाई देता है कि किस प्रकार भारी मात्रा में डंपरों का उपयोग करके नाले के प्राकृतिक प्रवाह को अवरुद्ध किया गया है। इस नाले का भराव न केवल जल निकासी व्यवस्था को बाधित कर रहा है, बल्कि आसपास की कृषि भूमि और पर्यावरण के लिए भी एक बड़ा खतरा बन गया है।
जमीन की धोखाधड़ी
आरोप है कि पूर्व प्रधान नौशाद के पास मात्र तीन बीघा जमीन की रजिस्ट्री है, जबकि उन्होंने आठ बीघा क्षेत्र में अवैध प्लाटिंग कर दी है। यह स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि लगभग पांच बीघा सरकारी या अन्य व्यक्तियों की भूमि पर अवैध कब्जा किया गया है। इतना ही नहीं, कृषि भूमि पर बरसाती नाले में भराव करके उसे भी प्लाटिंग के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है। कृषि भूमि का इस प्रकार गैर-कृषि कार्यों के लिए उपयोग करना और प्राकृतिक जलमार्ग को अवरुद्ध करना गंभीर कानूनी और पर्यावरणीय उल्लंघन है।
कानूनी उल्लंघन
उत्तराखंड में कृषि भूमि पर प्लाटिंग से संबंधित कई नियम और कानून लागू हैं। हाल ही में, फरवरी 2025 में उत्तराखंड सरकार ने एक नया भू-कानून पारित किया है, जिसके तहत राज्य के 13 में से 11 जिलों में बाहरी लोगों द्वारा कृषि और बागवानी भूमि की खरीद पर प्रतिबंध लगा दिया गया है, जिसमें हरिद्वार और उधम सिंह नगर शामिल नहीं हैं. इस कानून का मुख्य उद्देश्य राज्य के संसाधनों, सांस्कृतिक विरासत और नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करना है. यदि अंबिवाला, पचवादून इन 11 जिलों में आता है और नौशाद को बाहरी व्यक्ति माना जाता है, तो यह प्लाटिंग सीधे तौर पर इस नए कानून का उल्लंघन हो सकता है। हालांकि, शहरी क्षेत्रों में जमीन खरीदने पर कोई रोक नहीं है, और ग्रामीण क्षेत्रों में भी आवासीय उद्देश्यों के लिए एक परिवार अधिकतम 250 वर्गमीटर जमीन खरीद सकता है. आठ बीघा में की गई प्लाटिंग इस सीमा से कहीं अधिक है, जिससे यह आवासीय उपयोग के लिए अनुमेय सीमा का उल्लंघन प्रतीत होता है।
इसके अतिरिक्त, उत्तराखंड जमींदारी विनाश और भूमि व्यवस्था अधिनियम, 1950 की धारा 143 कृषि भूमि को गैर-कृषि उद्देश्यों के लिए परिवर्तित करने की प्रक्रिया निर्धारित करती है, जिसके लिए तहसीलदार या जिला कलेक्टर से अनुमति लेना आवश्यक है. धारा 144 कृषि भूमि के अनधिकृत उपयोग पर प्रतिबंध लगाती है. यदि नौशाद ने कृषि भूमि पर प्लाटिंग करने से पहले विधिवत रूप से भूमि उपयोग परिवर्तन की अनुमति नहीं ली है, तो यह इन धाराओं का भी उल्लंघन होगा। सरकार ने भूमि की खरीद-बिक्री में पारदर्शिता लाने और गड़बड़ियों को रोकने के लिए एक ऑनलाइन पोर्टल बनाने की प्रक्रिया भी शुरू की है.
बरसाती नालों को भरने से संबंधित भी सख्त कानून और पर्यावरणीय दिशानिर्देश मौजूद हैं। देहरादून के रायपुर क्षेत्र में बारिश के कारण नालों के उफान से हुई क्षति यह दर्शाती है कि बरसाती नालों का प्राकृतिक प्रवाह बनाए रखना कितना महत्वपूर्ण है. उत्तराखंड जल प्रबंधन और नियामक अधिनियम, 2013 राज्य में जल संसाधनों के प्रबंधन और विनियमन से संबंधित है. किसी भी बरसाती नाले को भरना या उसके प्राकृतिक मार्ग को अवरुद्ध करना इस अधिनियम का उल्लंघन हो सकता है, क्योंकि यह जल संसाधनों के विवेकपूर्ण और सतत प्रबंधन के सिद्धांतों के विपरीत है। राष्ट्रीय नदी संरक्षण योजना (एनआरसीपी) जैसी पहल भी नदियों और जल निकायों के प्रदूषण को कम करने के लिए कार्यरत हैं , और बरसाती नाले को भरने से अप्रत्यक्ष रूप से प्रदूषण बढ़ सकता है और पारिस्थितिक संतुलन बिगड़ सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने भी जल निकायों के अवैध भराव के मामलों में सख्त रुख अपनाया है. ऐतिहासिक रूप से भी, नैनीताल में अंग्रेजों के शासनकाल में जल निकासी व्यवस्था को बनाए रखने पर विशेष ध्यान दिया जाता था ताकि भूस्खलन और अन्य आपदाओं से बचा जा सके.
मिलीभगत का शक
स्थानीय सूत्रों का यह भी कहना है कि इस अवैध प्लाटिंग में कुछ वकील, राजनेता और अधिकारियों की मिलीभगत से भी इनकार नहीं किया जा सकता है। यदि यह आरोप सही पाया जाता है, तो यह एक गंभीर मामला होगा जो भ्रष्टाचार के एक बड़े नेटवर्क की ओर इशारा करता है। ऐसे प्रभावशाली व्यक्तियों की संलिप्तता के कारण ही शायद नौशाद इतने बड़े पैमाने पर अवैध गतिविधियों को अंजाम देने में सक्षम हो पाए हैं।
अंबिवाला, पचवादून के भूमि अभिलेखों की तलाश
अंबिवाला, पचवादून क्षेत्र के भूमि अभिलेखों और मानचित्रों को ऑनलाइन खोजने के प्रयास किए जा सकते हैं, हालांकि विशिष्ट जानकारी की उपलब्धता भिन्न हो सकती है. इन अभिलेखों की गहन जांच से यह पता चल सकता है कि नौशाद के नाम पर कितनी जमीन पंजीकृत है और अवैध प्लाटिंग का वास्तविक पैमाना क्या है। राजस्व विभाग के आधिकारिक रिकॉर्ड ही इस मामले में निर्णायक सबूत प्रदान कर सकते हैं।
उत्तराखंड में भूमि संबंधी भ्रष्टाचार के मामले
उत्तराखंड में भूमि संबंधी भ्रष्टाचार या अवैध प्लाटिंग के मामले कोई नई बात नहीं हैं। अतीत में भी ऐसे कई मामले सामने आए हैं, जिनमें भू-माफिया, राजनेता और अधिकारियों की मिलीभगत पाई गई है. सरकार ने भू-माफिया के खिलाफ सख्त कार्रवाई भी की है और कई अवैध निर्माणों को ध्वस्त किया गया है. नया भू-कानून भी इसी दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है, जिसका उद्देश्य बाहरी लोगों द्वारा कृषि भूमि की अंधाधुंध खरीद को रोकना और भूमि के दुरुपयोग पर लगाम लगाना है. हालांकि, भ्रष्टाचार के आरोपी अधिकारियों को महत्वपूर्ण पदों पर नियुक्त करने के मामलों पर सुप्रीम कोर्ट ने भी नाराजगी जताई है , जो यह दर्शाता है कि भ्रष्टाचार की समस्या अभी भी बनी हुई है। लोकायुक्त का गठन भी लंबे समय से लंबित है, जिससे भ्रष्टाचार पर प्रभावी अंकुश लगाने में कठिनाई हो सकती है.
यहां उत्तराखंड में भूमि भ्रष्टाचार के कुछ उदाहरण दिए गए हैं:
तालिका: उत्तराखंड में भूमि भ्रष्टाचार के मामले
| मामले का विवरण | भ्रष्टाचार/अवैध गतिविधि का स्वरूप | स्निपेट आईडी |
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| जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क में अवैध निर्माण | भ्रष्टाचार के आरोपी अधिकारी को महत्वपूर्ण पद पर नियुक्ति, कोर एरिया में अवैध और मनमाना निर्माण, पेड़ों की कटाई | |
| रामनगर में रहमत नगर बनाने का प्रयास | सरकारी जमीन पर अवैध कब्जे, मस्जिद, मदरसे और मजारें बनाकर कब्जे, जमीन की अवैध खरीद-फरोख्त | |
| देहरादून में मृत महिला संत की जमीन पर कब्जा | दिवंगत महिला संत को जीवित दिखाकर उसकी जमीन पर कब्जा, प्लाटिंग करके बेचना | |
| नैनीताल जिले में भूमि कानूनों का उल्लंघन | 250 वर्ग मीटर की अनुमति के बावजूद रिसॉर्ट्स का निर्माण, 4 राज्यों के 64 भू-माफिया पर केस दर्ज | |
| खटीमा में सरकारी जमीन पर अवैध प्लाटिंग | वर्ग 4 की भूमि पर भू-माफिया द्वारा अवैध प्लाटिंग, पुलिया का निर्माण | |
| पछुवा देहरादून में अवैध कब्जे | मुस्लिम रहनुमाओं द्वारा अवैध कब्जे करवाना, बाहरी लोगों को बसाना, सरकारी जमीनों को खुर्दबुर्द करना | |
| विकासनगर और देहरादून में अवैध प्लाटिंग ध्वस्त | एमडीडीए द्वारा बिना अनुमति के की गई अवैध प्लाटिंग को ध्वस्त करना | |
आगे की कार्रवाई
इस गंभीर मामले की तत्काल उच्च-स्तरीय जांच शुरू की जानी चाहिए। राजस्व विभाग, पर्यावरण विभाग और पुलिस की एक संयुक्त टीम को मौके पर जाकर निरीक्षण करना चाहिए ताकि नाले के भराव की वास्तविक स्थिति और अवैध प्लाटिंग की सीमा का आकलन किया जा सके। पूर्व प्रधान नौशाद और अन्य संदिग्ध व्यक्तियों से गहन पूछताछ की जानी चाहिए। अंबिवाला और पचवादून के भूमि अभिलेखों और मानचित्रों की भी बारीकी से जांच की जानी चाहिए। यदि मिलीभगत के आरोप सही पाए जाते हैं, तो संबंधित वकील, राजनेता और अधिकारियों के खिलाफ भी कठोर कार्रवाई की जानी चाहिए। अवैध प्लाटिंग को तुरंत ध्वस्त किया जाना चाहिए और बरसाती नाले को उसके मूल स्वरूप में वापस लाने के लिए आवश्यक कदम उठाए जाने चाहिए।
पूर्व प्रधान नौशाद द्वारा परवल रोड, अंबिवाला, पचवादून में की जा रही कथित अवैध प्लाटिंग और बरसाती नाले को भरने के आरोप अत्यंत गंभीर हैं। यह मामला न केवल उत्तराखंड के भूमि कानूनों का घोर उल्लंघन है, बल्कि क्षेत्र के पर्यावरण के लिए भी एक बड़ा खतरा है। अधिकारियों को इस मामले में बिना किसी देरी के निष्पक्ष और गहन जांच करनी चाहिए और यदि आरोप सही पाए जाते हैं तो दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई सुनिश्चित करनी चाहिए। यह आवश्यक है कि कानून का शासन स्थापित हो और प्राकृतिक संसाधनों तथा कृषि भूमि का संरक्षण किया जा सके ताकि भविष्य में इस प्रकार की अवैध गतिविधियों को रोका जा सके।