देहरादून,21अप्रैल 2025(हमारी चौपाल )
यह दृश्य किसी फिल्म का नहीं, बल्कि उत्तराखंड की राजधानी देहरादून के सिंहनीवाला क्षेत्र के हरे-भरे जंगल का है, जहां प्रकृति की नाजुक छाती पर अब लोहे की कीलें ठोकी जा रही हैं—वो भी महज कुछ व्यवसायिक साइन बोर्ड टांगने के लिए।
ताजा मामला शिमला बाईपास रोड, चकमांसा, सिंहनीवाला (देहरादून) से सामने आया है, जहां “The R.L.C Resort” नामक व्यवसायिक प्रतिष्ठान द्वारा जंगल के जीवित पेड़ों पर लोहे की कीलें ठोक कर बड़ा विज्ञापन बोर्ड लगाया गया है। इस बोर्ड में उनके A/C कमरे, रेस्टोरेंट, पार्टी हॉल और स्विमिंग पूल जैसी सुविधाओं का प्रचार किया गया है।
जहां एक ओर राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT), उत्तराखंड सरकार, और भारत सरकार पर्यावरण संरक्षण के लिए लाखों-करोड़ों रुपये खर्च कर रही हैं, वहीं दूसरी ओर जंगलों में खुलेआम पेड़ों पर कीलें ठोक कर व्यवसायिक बोर्ड लगाए जा रहे हैं। यह दृश्य न केवल प्रकृति का अपमान है, बल्कि पर्यावरणीय कानूनों की सीधी अवहेलना भी है।
प्रश्न यह है: वन विभाग क्या कर रहा है?
क्या इसकी अनुमति दी गई? यदि नहीं, तो फिर कार्यवाही क्यों नहीं हो रही? क्या यह केवल लापरवाही है या किसी प्रकार की मिलीभगत और लालच?
पेड़ों पर कीलें ठोकना सिर्फ एक कृत्य नहीं, बल्कि एक हत्या है।
वृक्षों की छाल में गढ़ी गई कीलें धीरे-धीरे उनके जीवन को समाप्त करती हैं। यह प्रक्रिया न केवल पेड़ को नुकसान पहुंचाती है, बल्कि पूरे पारिस्थितिकी तंत्र को प्रभावित करती है।
मांग उठती है:
1. ऐसे सभी बोर्ड तत्काल हटाए जाएं।
2. जिम्मेदार अधिकारियों के विरुद्ध कार्रवाई हो।
3. संबंधित व्यवसायिक संस्थानों पर पर्यावरणीय अपराध का मुकदमा दर्ज हो।
4. भविष्य में पेड़ों को किसी भी प्रकार के प्रचार माध्यम से दूर रखा जाए।
5. जनता को इस विषय पर जागरूक किया जाए।
“हर पेड़ सांस देता है, हर शाखा जीवन रचती है, इन्हें न मिटाइए, इन्हें अपनाइए।”