एक समय था, जब मुंबई में दिनदहाड़े गोलीबारी होती थी और गैंगस्टर खुलेआम घूमते थे। ऐसा लगता है कि 12 अक्तूबर को महाराष्ट्र के विवादित पूर्व मंत्री बाबा सिद्दीकी की हत्या के बाद से कुछ ऐसा माहौल वापस आ गया है। सिद्दीकी बॉलीवुड सितारों के साथ करीबी संबंधों के लिए जाने जाते थे। जिन लोगों ने 66 वर्षीय सिद्दीकी को गोली मारी, वे अपने चेहरे को रुमाल से ढंके हुए थे। पुलिस ने इसे कॉन्ट्रैक्ट हत्यारों का काम बताया है। गैंगलैंड स्टाइल की यह हत्या राजनेता-बिल्डर-अंडरवर्ल्ड गठजोड़ की शक्ति, पहुंच तथा कानून और व्यवस्था के प्रति अवमानना को दर्शाती है, जो देश के सबसे प्रमुख महानगर मुंबई में बेखौफ काम कर रहा है। लंबे समय तक कांग्रेस सदस्य और सम्मानित स्टार सुनील दत्त के करीबी सहयोगी रहे सिद्दीकी इस साल के शुरू में अजीत पवार गुट की राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी में शामिल हो गये थे, जो अभी भाजपा के साथ महाराष्ट्र में सत्ता में है। उससे पहले उनके खिलाफ प्रवर्तन निदेशालय की जांच चल रही थी, पार्टी छोड़ने के बाद वह मामला आगे नहीं बढ़ा। एक सत्तारूढ़ पार्टी के इस कार्यकर्ता की हत्या तब हुई है, जब तमाम दल आगामी विधानसभा चुनाव की तैयारी में हैं। बाबा सिद्दीकी को एक पखवाड़े पहले ही जान से मारने की धमकी मिली थी, जिसके बाद उन्हें ‘वाई’ श्रेणी की सुरक्षा प्रदान की गयी थी।
आधिकारिक कहानी यह है कि यह हत्या लॉरेंस बिश्नोई के गिरोह का काम है। सिद्दीकी की अभिनेता सलमान खान से निकटता को इसकी वजह बताया गया है, जिन्होंने कथित तौर पर 1998 में एक काले हिरण का शिकार किया था, जिसे बिश्नोई समुदाय पवित्र मानता है। इस साल अप्रैल में सलमान खान के घर पर गोलीबारी हुई थी। उस मामले में गिरफ्तार आरोपियों में से एक अनुज थापन ने बाद में पुलिस हिरासत में आत्महत्या कर ली थी, जिससे मामले में एक नया मोड़ आ गया। अब शायद सलमान खान के सभी दोस्त और सहयोगी बिश्नोई गिरोह के निशाने पर हैं। लेकिन हत्या के बाद कहानी इतनी तेजी से सामने आयी है कि कई सवाल अभी भी बने हुए हैं, जिनमें सबसे अहम यह है कि बिश्नोई गुजरात में हिरासत में है। पुलिस ने उसी रात सिद्दीकी मामले में दो त्वरित गिरफ्तारियां कीं और उसके बाद एक और आरोपी को गिरफ्तार किया गया है। यह तीसरा व्यक्ति उस आदमी का भाई है, जिसने बिश्नोई गिरोह की ओर से हत्या का दावा किया था। क्या यह मामला इतना सीधा व सरल हो सकता है?
बाबा सिद्दीकी को रियल एस्टेट कारोबार से जुड़ाव के लिए भी जाना जाता था। बिल्डरों ने मुंबई के परिदृश्य को बदल दिया है, और कई मायनों में शहर को आंखों को चुभने वाली कंक्रीट की ऊंची इमारतों में बदल दिया है, जिनकी चमक नकली है। कई इमारतें अधूरी ही छोड़ दी गयी हैं क्योंकि रियल एस्टेट का बाजार बढ़ता और घटता रहता है। रियल एस्टेट के निवेशकों को अब इसमें अपेक्षित रिटर्न मिलता नहीं दिखता। फिर भी, जमीन का आकर्षण और उससे मिलने वाले रिटर्न की संभावना देश के सबसे धनी शहर में पहले की तरह ही बनी हुई है। कुछ मामलों में राजनेता भूमि सौदों और बिल्डरों से निकटता से जुड़े होते हैं, जैसे कि बाबा सिद्दीकी कथित तौर पर थे। कुछ राजनेता स्वयं बिल्डर होते हैं, जैसे मुंबई के भाजपा के मंत्री मंगल प्रभात लोढ़ा हैं। लोढ़ा और उनका रियल एस्टेट व्यवसाय समूह अपने प्रभाव और मुंबई को नया आकार देने के साथ-साथ कीमतें बढ़ाने के लिए जाने जाते हैं, जिससे यह शहर अमीरों के लिए उपयुक्त और औसत या गरीब लोगों के लिए मुश्किल होता गया है।
बाबा सिद्दीकी उस बांद्रा पश्चिम से विधायक थे, जिसे कभी उपनगरों की रानी के रूप में जाना जाता था। लेकिन बिल्डरों के बढ़ते दबाव के कारण इसका आकर्षण कम होता जा रहा है। पहले इस क्षेत्र का प्रतिनिधित्व साधारण लोग करते थे, जिसका एक उदाहरण 1970 के दशक में पूर्व शिक्षा मंत्री सदानंद वर्दे रहे हैं। वर्दे एक समाजवादी थे और बांद्रा के नेशनल कॉलेज में अर्थशास्त्र के व्याख्याता थे। एक अन्य प्रतिनिधि और स्कूल शिक्षक सलीम जकारिया भी राज्य के शिक्षा मंत्री बने थे। बांद्रा के एक साधारण पृष्ठभूमि के एक और व्यक्ति रामदास नायक थे, जो मुंबई में भाजपा के नेता थे। अगस्त 1994 में 52 साल की उम्र में दाऊद इब्राहिम गिरोह के सदस्यों ने गोली मार कर उनकी हत्या कर दी थी। बांद्रा की मुख्य सड़क हिल रोड का नाम अब उनकी याद में रखा गया है। नायक भाजपा की मुंबई इकाई के अध्यक्ष थे और भ्रष्टाचार के खिलाफ अभियान चलाते थे। पूर्व मुख्यमंत्री एआर अंतुले के खिलाफ सीमेंट घोटाले के आरोपों को उजागर करने में उन्होंने प्रमुख भूमिका निभायी थी। नायक ने कुछ बिल्डरों के खिलाफ भी आवाज उठायी थी।
अब तस्वीर बहुत अलग है। त्वरित समाधान की पेशकश की जा रही है। मामलों को आसानी से सुलझाया जा रहा है। यह लोगों या अधिकारियों को कभी भी यह बताने का मौका नहीं देगा कि वास्तव में क्या गलत हो रहा है, या कौन सूत्रधार है या गिरोहबंद हत्या के पीछे असली मकसद क्या है, जिसकी मुंबई में फिर वापसी हो गयी है।
(ये लेखक के निजी विचार हैं। )
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