देहरादून, 11 अप्रैल(हमारी चौपाल )
उत्तराखंड में पूर्व सैनिकों द्वारा राज्य पुलिस विभाग में दी जा रही सेवाओं को लेकर लंबे समय से उठ रहे मुद्दों को लेकर आज एक महत्वपूर्ण पहल देखने को मिली। सैनिक कल्याण मंत्री गणेश जोशी से आज उनके कैंप कार्यालय में उत्तराखंड के पूर्व सैनिक पुलिसकर्मियों के प्रतिनिधिमंडल ने औपचारिक रूप से मुलाकात की और अपनी विभिन्न समस्याओं को लेकर एक विस्तृत ज्ञापन सौंपा।
प्रतिनिधिमंडल ने मंत्री जोशी को अवगत कराया कि राज्य गठन के बाद वर्ष 2001 से पूर्व सैनिकों की नियुक्ति पुलिस विभाग में आरक्षी पद पर की गई थी। उन्होंने राज्य के विभिन्न जिलों में अनुशासन, कर्तव्यपरायणता और समर्पण भाव से कार्य करते हुए राज्य पुलिस बल को मजबूती प्रदान की। किंतु दुर्भाग्यवश, उन्हें वर्ष 2008 में जाकर नियमित किया गया, जिससे उन्हें कई विभागीय लाभों से वंचित रहना पड़ा।
पूर्व सैनिकों का कहना है कि इस देरी के कारण उन्हें वरिष्ठता का लाभ नहीं मिल पाया, न ही उन्हें पुरानी पेंशन योजना का हक मिला। इसके अतिरिक्त, सेवा काल की गणना 2001 से न होकर 2008 से की जा रही है, जिससे पदोन्नति और अन्य वित्तीय लाभ भी प्रभावित हो रहे हैं।
पूर्व सैनिक पुलिसकर्मियों ने अपनी प्रमुख मांगों में शामिल किया कि—
सेवा गणना की तिथि को वर्ष 2001 से प्रभावी माना जाए,
उन्हें पुरानी पेंशन योजना के अंतर्गत शामिल किया जाए,
वरिष्ठता और पदोन्नति में न्यायोचित अवसर प्रदान किए जाएं,
सेवा की निरंतरता को मान्यता देते हुए समस्त लंबित लाभ शीघ्र प्रदान किए जाएं।
मंत्री गणेश जोशी ने प्रतिनिधिमंडल की बातों को गंभीरतापूर्वक सुना और विश्वास दिलाया कि राज्य सरकार इस विषय को पूरी संवेदनशीलता से ले रही है। उन्होंने कहा, “पूर्व सैनिक हमारे देश की धरोहर हैं, जिनकी सेवाएं अनुकरणीय हैं। उनकी न्यायोचित मांगों पर सहानुभूतिपूर्वक विचार किया जाएगा और समाधान के लिए उचित कदम उठाए जाएंगे।”
उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि राज्य सरकार पूर्व सैनिकों के हितों की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध है और उनकी समस्याओं का शीघ्र निराकरण प्राथमिकता के आधार पर किया जाएगा।
इस अवसर पर प्रतिनिधिमंडल में सौरव असवाल, सरूप सिंह चौधरी, रमेश चंद जुयाल, बदर सिंह नेगी, महावीर सिंह मेहर, तेज सिंह धामी, ललित बहादुर छेत्री सहित अनेक पूर्व सैनिक उपस्थित रहे।
यह मुलाकात न केवल पूर्व सैनिकों की पीड़ा को सरकार तक पहुंचाने का माध्यम बनी, बल्कि इसके माध्यम से यह संकेत भी मिला कि शासन-प्रशासन पूर्व सैनिकों के योगदान को मान्यता देने और उनके अधिकारों की रक्षा हेतु सक्रिय प्रयास करेगा।