प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार, हादसे के बाद घटनास्थल पर ऐसा मंजर था जिसे देखकर रूह कांप जाए। सड़क पर बच्चों की चीखें, बिखरी किताबें, टूटे बैग और खून से सनी ज़मीन,हर तरफ़ मातम पसरा हुआ था।
बस बोक्सा जनजाति के एक स्कूल से छुट्टी के बाद बच्चों को लेकर उनके गांव की ओर जा रही थी। लेकिन सिंहनीवाला के पास सामने से आ रहे लोडर से टकराकर बस पलट गई। इस दौरान कई यात्री बस के नीचे इतनी बुरी तरह दब गए कि उनके जीवित बचने की संभावना बेहद कम बताई जा रही है।
स्थानीय लोग तत्काल राहत-बचाव कार्य में जुट गए। JCB मशीन मंगाई गई और घंटों की मशक्कत के बाद बस को सीधा किया गया, जिसके बाद दबे हुए यात्रियों को बाहर निकाला जा सका।
108 एंबुलेंस सेवा की मदद से घायलों को तत्काल ग्राफिक एरा मेडिकल कॉलेज अस्पताल पहुंचाया गया, जहां उनका इलाज जारी है।
इस दर्दनाक हादसे के बाद वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक (SSP) देहरादून स्वयं ग्राफिक एरा अस्पताल पहुंचे और वहां भर्ती घायल बच्चों एवं अन्य पीड़ितों से मुलाकात की। उन्होंने सभी के स्वास्थ्य की जानकारी ली और उनके शीघ्र स्वास्थ्य लाभ की कामना की। SSP द्वारा पीड़ित परिवारों को हर संभव मदद का भरोसा भी दिलाया गया।
इस हादसे ने पूरे राज्य को झकझोर कर रख दिया है। सवाल यह उठ रहा है कि क्या स्कूली बच्चों की सुरक्षा के लिए कोई ठोस व्यवस्था है? क्यों ऐसे पुराने और असुरक्षित वाहनों को स्कूली परिवहन में लगाया जा रहा है?
प्रशासन ने हादसे की जांच के आदेश दे दिए हैं, लेकिन एक बार फिर सिस्टम की लापरवाही मासूमों की जान पर भारी पड़ी है।
यह हादसा सिर्फ एक दुर्घटना नहीं, बल्कि एक गहरी चेतावनी है,सड़क सुरक्षा और बच्चों की ज़िंदगी के सवाल पर अब और चुप रहना अपराध होगा।