ऋषिकेश(आरएनएस)। परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने लोहड़ी पर्व की बधाईयाँ देते हुये कहा कि लोहड़ी भारत की समृद्ध परंपरा, उत्कृष्ट कृषि व्यवस्था, सांस्कृतिक एकता और ऐतिहासिक विरासत का पर्व है जो एकजुटता, सद्भाव व समरसता का संदेश देता है।लोहड़ी पर्व फसल पकने की खुशी और उत्तम पैदावार के प्रतीक के रूप में भी मनाया जाता है। प्राकृतिक संसाधनों, सूर्य की किरणों व अन्य प्राकृतिक तत्वों के संयोजन से तैयार हुई स्वस्थ व समृद्ध फसलों के घर आने की प्रार्थना करने हेतु सभी लोग एकत्र होते हैं और उमंग व उल्लास के साथ फसलों के आने का उत्सव मनाते हैं। लोहड़ी के अवसर पर सभी मिलकर भगवान सूर्य एवं अग्नि देव का पूजन कर प्राकृतिक संसाधनों के प्रति आभार प्रकट करते हैं, यह वास्तव में एक श्रेष्ठ परम्परा है जो संदेश देती है कि प्रकृति व प्राकृतिक संसाधनों के बिना हमारा जीवन सम्भव नहीं है। प्रकृति व पर्यावरण स्वच्छ है तो न केवल हमारी फसलें सुरक्षित है बल्कि हमारा जीवन भी सुरक्षित है। इसी प्रार्थना के साथ अलाव में मूंगफली, गुड़ की रेवड़ी और मखाना चढ़ाते हैं और फिर लोकप्रिय लोक गीत गाते हुए उसके चारों ओर नृत्य करते हैं।
लोहड़ी का भौगोलिक महत्व भी है शीतकालीन संक्रांति के अंत और फसल कटाई के मौसम की शुरुआत होती है। सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है जिसे शुभ माना जाता है क्योंकि यह एक नई शुरुआत का भी प्रतीक है। इस समय दिन लंबे और रातों छोटी होती है और इसे गर्म दिनों की शुरुआत का प्रतीक भी माना जाता हैं इसलिये अग्नि जलाकर ठंड भरी लंबी रातों के साथ ही शीतकालीन संक्रांति के अंत का जश्न मनाया जाता है।
वास्तव में देखे तो लोहड़ी प्रकृति और परमात्मा के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने का जश्न है। किसान, उर्वरता, फसल के सफल उत्पादन के लिए आभार व्यक्त करते हैं। उर्वरता केवल फसलों व खेती तक ही सीमित नहीं रहती बल्कि वंश वृद्धि का भी जश्न मनाया जाता है।
लोहड़ी पर्व सामाजिक मेलजोल, एकता व एकजुटता का अद्भुत संदेश देता है। लोहड़ी के अवसर पर पूरा परिवार और समुदाय के लोग एक साथ मिलकर उत्सव मनाते हैं जिससे सामाजिक बंधन मजबूत होते हैं।
लोहड़ी कड़ाके की सर्दियों के अंत और वसंत के आगमन का भी प्रतीक है, जो एक सुनहरे भविष्य की आशा लेकर आती हैं।
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