कांग्रेस नेता राहुल गांधी 14 जनवरी से ‘भारत न्याय यात्रा’ पर निकलने वाले हैं। यह उनकी ‘भारत जोड़ो यात्रा’ की दूसरी कड़ी है, जिसमें वे थोड़ी दूर पैदल चलेंगे और लंबी दूरी बस से तय करेंगे। हाइब्रीड मोड में होने वाली यह यात्रा मणिपुर से शुरू होगी और मुंबई में संपन्न होगी। मार्च के मध्य में जब उनकी यात्रा का समापन होगा तब तक लोकसभा चुनाव की घोषणा हो चुकी होगी। जब इस यात्रा की घोषणा हुई तब ऐसा लगा था कि भाजपा इसे लेकर राहुल को निशाना बनाएगी। सोशल मीडिया में उनका मजाक उड़ाया जाएगा। इसे लेकर सवाल उठेगा कि जिस समय पूरे देश में श्रीराम जन्मभूमि मंदिर में रामलला की प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा हो रही होगी उस समय राहुल एक नई यात्रा पर निकलेंगे। राहुल की यात्रा को अयोध्या में होने वाले कार्यक्रम से ध्यान भटकाने साजिश करार दिया जाएगा। लेकिन आश्चर्यजनक तरीके से भाजपा इस मसले पर चुप रही है। छोटे-छोटे नेताओं या प्रवक्ताओं ने इस पर बयान दिया लेकिन बड़े नेता चुप रहे है और आईटी सेल ने भी इसका मुद्दा नहीं बनाया।
इसका मतलब है कि भाजपा अभी राममंदिर के आयोजन से ध्यान नहीं भटकाना चाहती है। उसे पता है कि अगर वह राहुल की यात्रा को लेकर हमला करेगी और इस मसले पर कांग्रेस से उलझेगी तो फोकस राममंदिर से राहुल की यात्रा पर शिफ्ट हो जाएगा। अभी भाजपा को सारे संसाधन और सारी ताकत अयोध्या के कार्यक्रम पर लगानी है। पहले 16 से 22 जनवरी तक प्राण प्रतिष्ठा का कार्यक्रम होगा और उसके बाद 25 जनवरी से देश भर में अयोध्या चलो का अभियान छेड़ा जाएगा। भाजपा देश भर के रामभक्तों को अयोध्या ले जाने का अभियान चलाएगी। इसके बीच राहुल की यात्रा की मीडिया कवरेज के लिए कांग्रेस को बहुत प्रयास करना होगा। अगर भाजपा यात्रा पर हमला करती है तो मजबूरी में मीडिया को उसे स्पेस देना होगा और फिर राहुल की यात्रा अपने आप खबरों में आएगी। इस तरह से कह सकते हैं कि राहुल ने चुनावी साल में और भाजपा के सबसे बड़े आयोजन से ऐन पहले यात्रा का ऐलान करके भाजपा को कैच-22 सिचुएशन में डाल दिया है।
ध्यान रहे भाजपा के नेता सचमुच यह मानते रहे हैं कि राहुल गांधी जब तक कांग्रेस के सर्वोच्च नेता रहेंगे और विपक्ष के सबसे मुख्य चेहरे के तौर पर चुनाव लड़ते रहेंगे तब तक भाजपा के लिए चुनावी लड़ाई बहुत आसान रहेगी। अनेक पत्रकार और स्वतंत्र राजनीतिक विश्लेषक भी यह मानते हैं और तंज करते हुए लिखते-बोलते रहे हैं कि भाजपा के स्टार प्रचारक राहुल गांधी हैं। यह दावा किया जाता है कि वे जहां भी प्रचार करने जाते हैं वहां भाजपा जीतती है और उनकी बातों से भाजपा को फायदा होता है। मीडिया और सोशल मीडिया में प्रचार के जरिए इस धारणा को बहुत मजबूती से स्थापित किया गया है। इसके लिए राहुल के फर्जी वीडियो और गढ़े गए बयानों आदि का इस्तेमाल किया गया। भाजपा ने राहुल को ‘पप्पू’ साबित करने पर अधिकतम समय, श्रम और साधन खर्च किया। भाजपा को निश्चित रूप से इसका फायदा मिला लेकिन जिस तरह से हर दवा की एक्सपायरी डेट होती है वैसे ही हर प्रचार या रणनीति की भी एक्सपायरी डेट होती है। ऐसा लग रहा है कि भाजपा को अब लगने लगा है कि राहुल के लिए जो रणनीति अपनाई गई थी उसका अधिकतम फायदा लिया जा चुका और अब उस रणनीति से राहुल से मुकाबला आसान नहीं होगा। तभी अब राहुल के खिलाफ भाजपा के राजनीतिक अभियान की दिशा बदल रही है।
एक समय था, जब राहुल से लडऩा बहुत आसान था क्योंकि ज्यादातर युवा और देश की बड़ी आबादी उनको गंभीरता से नहीं लेती थी। लेकिन धीरे धीरे स्थितियां बदलती गईं और भारत जोड़ो यात्रा के बाद राहुल को गंभीरता से लिया जाने लगा। तभी पिछले एक साल में कई बार भाजपा नेताओं के ऐसे बयान सुनने को मिले कि राहुल गांधी अगर प्रधानमंत्री बन गए तो देश में क्या हो सकता है। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कई जगह अपने भाषणों में कहा कि अगर राहुल गांधी प्रधानमंत्री बन गए तो तो देश में भ्रष्टाचार का बोलबाला होगा। सोचें, जब राहुल गांधी के रहने से भाजपा को फायदा होता है, वे भाजपा के स्टार प्रचारक हैं, जहां भाषण देते हैं वहां भाजपा की जीत सुनिश्चित करते है तो उनके होते कांग्रेस कैसे सकती है और वे कैसे प्रधानमंत्री बन सकते हैं? भाजपा के नेता अगर राहुल के प्रधानमंत्री बनने का भय जनता को दिखा रहे हैं तो इसका मतलब है कि कहीं न कहीं भाजपा नेताओं के मन में राहुल को लेकर चिंता पैदा हो रही है। उनको लग रहा है कि राहुल चुनौती बन रहे हैं। भाजपा ने उनको गंभीर राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी मान लिया है।
यही कारण है कि राहुल पर अब गंभीर राजनीतिक हमले हो रहे हैं। संसद के शीतकालीन सत्र में भाजपा ने जिस तरह से राहुल गांधी को निशाना बनाया वह इस बात का संकेत है कि राहुल अब गंभीर राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी हैं। उनके बारे में पहले यह प्रचारित किया गया कि तीन राज्यों में कांग्रेस की हार के बाद राहुल विदेश दौरे पर चले गए। हालांकि यह बात गलत साबित हुई। उसके बाद भाजपा ने संसद में पैदा हुए गतिरोध का ठीकरा राहुल के ऊपर फोड़ा। जबकि हकीकत यह है कि संसद की सुरक्षा में सेंध लगी थी। चार लोग संसद परिसर में घुस गए थे, जिनमें से दो लोग दर्शक दीर्घा से लोकसभा के अंदर कूद गए और सदन में धुआं फैला दिया। विपक्ष तो इस मसले पर सिर्फ केंद्रीय गृह मंत्री के बयान की मांग कर रहा था, लेकिन गृह मंत्री को सदन में बयान नहीं देना था। इस वजह से गतिरोध पैदा हुआ और 146 सांसद निलंबित किए गए। तब भाजपा और केंद्र सरकार की ओर से कहा गया कि संसद में राहुल के इशारे पर हंगामा हुआ है और गतिरोध पैदा हुआ है।
सोचें, भाजपा कह रही है कि राहुल के इशारे पर समूचा विपक्ष एकजुट हुआ और संसद नहीं चलने दी! संसद में घुसपैठ के मसले पर राहुल ने कहा कि संसद की घटना देश में फैली बेरोजगारी और महंगाई के कारण हुई है। इस पर भाजपा ने कहा कि राहुल संसद में हुई घटना का समर्थन कर रहे हैं। इसके बाद संसद परिसर में तृणमूल कांग्रेस के सांसद कल्याण बनर्जी ने राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ की नकल उतारी तो उसकी बजाय भाजपा ने इस बात का मुद्दा बनाया कि राहुल गांधी उनकी मिमिक्री की वीडियो बना रहे थे। इसे लेकर भाजपा ने देश भर में राहुल गांधी के खिलाफ प्रदर्शन किया और कल्याण बनर्जी की बजाय राहुल गांधी का पुतला जलाया।
जाहिर है कि एक गंभीर राजनीतिक मामले में भाजपा के निशाने पर विपक्ष के दूसरे नेता नहीं थे, बल्कि राहुल गांधी थे। यह राहुल गांधी की बढ़ती हैसियत का संकेत है। अब वे भारत न्याय यात्रा पर निकलने वाले हैं। पूरब से पश्चिम की उनकी यह यात्रा उनकी छवि को सकारात्मक तरीके से प्रभावित करेगी और उनके बारे में बन रही गंभीर राजनेता की धारणा को मजबूती देगी। लोकसभा चुनाव से पहले इससे कोई चमत्कार हो जाएगा इसका अंदाजा तो कांग्रेस को भी नहीं है लेकिन यह जरूर है कि राहुल को लेकर भाजपा की गंभीरता बढ़ेगी। विपक्षी पार्टियां राहुल को अपना नेता मानने को तैयार नहीं हैं लेकिन भाजपा उनको विपक्ष का नेता बना रही है। हो सकता है कि भाजपा को इसका फायदा हो लेकिन साथ ही राहुल गांधी को भी फायदा होगा। ध्यान रहे लोकतंत्र में नेता हमेशा सिर्फ अपने प्रयासों से नहीं बनते हैं कई बार विपक्ष के निरंतर हमलों से भी बनते हैं।
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