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जल, हमारे भोजन की नींव:  स्वामी चिदानन्द सरस्वती

ऋषिकेश। परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी और साध्वी भगवती सरस्वती जी ने अपनी गंगोत्री व उत्तरकाशी यात्रा के दौरान उत्तरकाशी में विद्यालय के नन्हें-नन्हें बच्चों, नर्सिग, पैरामेडिकल और अन्य विभागों के विद्यार्थियों से भेंट कर भारतीय संस्कृति, संस्कार, दिव्य मंत्रों की महिमा के विषय में जानकारी प्रदान की। स्वामी जी ने कहा कि बच्चों को बचपन से ही हमारी बेसिक जरूरतें जैसे साबुन व पानी के साथ हाथ धोना, स्वच्छ भोजन व जल, स्वच्छता, आहर व व्यवहार आदि के विषय बताना जरूरी है।
स्वामी जी के पावन सान्निध्य में नन्हें बच्चों के सस्वर गायत्री मंत्र का पाठ किया। स्वामी जी ने कहा कि श्री पवन नौटियाल जी के अथक प्रयासों का परिणाम है कि आज प्रकृति के बीच में संस्कृति के गीत गूंज रहे हैं। स्वामी जी ने नवरात्रि के दिव्य अवसर पर बच्चों को अपनी शाक्ति को जाग्रत करने का संदेश देते हुये गायत्री मंत्र का उच्चारण कराया जिससे पूरे वातावरण की ऊर्जा ही बदल गयी।
आज विश्व खाद्य दिवस के अवसर पर कहा कि स्वस्थ आहार ही स्वस्थ जीवन की कुंजी है। अगर खाद्य पदार्थ सुरक्षित नहीं है तो वह भोजन नहीं है। भोजन केवल स्वाद के लिये ही नहीं बल्कि शरीर और मन को स्वस्थ रखने के लिये ग्रहण किया जाता है।
स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि प्राचीन समय में हमें व हमारे ग्रह दोनों को स्वच्छ व स्वस्थ भोजन प्राप्त होता था परन्तु वर्तमान समय में मानव व ग्रह दोनों का भोजन प्रदूषित हो रहा है। अब समय आ गया कि हम प्राचीन, परम्परागत और पौष्टिक अनाज की ओर बढ़ें और दूसरों को भी इसके प्रति जागरूक करें। अपने भोजन में मिलेट्स को शामिल कर हम स्वस्थ व स्थायी आहार की ओर बढ़ सकते हैं।
स्वामी जी ने कहा कि स्वस्थ भोजन शैली को अपनाने के लिये हमें हाथ धोने, स्वच्छता की संस्कृति को अपनाने एवं स्वच्छ जल का उपयोग करना अत्यंत आवश्यक है क्योंकि इसके अभाव में सूक्ष्मजीव संदूषण का खतरा बढ़ सकता है।
स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि पृथ्वी पर जीवन के लिए जल अत्यंत आवश्यक है। यह हमारे शरीर का 50 प्रतिशत से अधिक भाग बनाता है और पृथ्वी की सतह का लगभग 71 प्रतिशत भाग जल से ढ़का हुआ है परन्तु ताजा पानी केवल 2.5 प्रतिशत ही है, जो कि पीने, कृषि और औद्योगिक स्तर पर उपयोग किया जाता  है। जल केवल पीने के लिये नहीं बल्कि पृथ्वी पर जीवन, अर्थव्यवस्था, प्रकृति, पर्यावरण और इस ग्रह को स्वच्छ रखने के लिए भी अत्यंत आवश्यक है। जल न केवल मानव व प्राणियों बल्कि पूरे ग्रह को शक्ति प्रदान करता है। जल हमारे भोजन की नींव है तथा जल के बिना हम वैश्विक शान्ति की कल्पना नहीं कर सकते।
स्वामी जी ने कहा कि बढ़ता प्रदूषण, तीव्र जनसंख्या वृद्धि, शहरीकरण, आर्थिक विकास, ग्लोबल वार्मिग और जलवायु परिवर्तन के कारण हमारे ग्रह के जल स्रोतों व संसाधनों पर दबाव बढ़ता जा रहा है। विगत दशकों में प्रति व्यक्ति मीठे पानी के संसाधनों में 20 प्रतिशत की गिरावट आई है, साथ ही जल की उपलब्धता और गुणवत्ता में भी तेजी से गिरावट आ रही है। जल एक बहुमूल्य संसाधन है क्योंकि जल है तो जंगल है, पेड़-पौधे है और इनकी वजह से हमें प्राणवायु प्राप्त होती है। जल है तो धरती पर हम कृषि कर अनाज पैदा कर सकते हैं। जल नहीं होगा तो न प्राणवायु होगी और न ही भोजन होगा।
वर्तमान समय में वैश्विक स्तर पर 2.4 अरब लोग जल की कमी का सामना कर रहे हैं। उन्हें अपनी दैनिक जरूरतों को पूरा करने के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है। जल रूपी अमूल्य संसाधन के लिए बढ़ती प्रतिस्पर्धा बढ़ते संघर्ष कारण बनती जा रही है इसलिये हमारे पास जो जल बचा हुआ है उसका उपयोग व प्रबंधन बुद्धिमानी के साथ करना होगा।
अब समय आ गया है कि हम कम पानी में अधिक अनाज उगाने के लिये मिलट्स की ओर बढ़े ताकि सभी की पहंुच स्वच्छ व स्वस्थ भोजन तक हो तथा कोई भी पीछे न छूटे। इसके लिये हम क्या कर सकते हैं, इस पर चिंतन करना अत्यंत आवश्यक है। साथ ही हम क्या खाते हैं और वह भोजन कैसे उत्पन्न होता है, हम जो भोजन ग्रहण करते है उसे बनाने व पैदा करने में कितना पानी लगता है जिस दिन हम इसके प्रति जागरूक हो जायेंगे तो हम अपनी भावी पीढ़ियों व अपने ग्रह को सुरक्षित रख सकते हैं।
आईये संकल्प लें कि हम स्थानीय, मौसमी और ताजा खाद्य पदार्थों का उपयोग करेंगे, भोजन व जल की बर्बादी नहीं करेंगे। भोजन की बर्बादी को कम करके हम जल प्रदूषित होने से रोक सकते हैं।  आईये हम सभी साथ मिलकर, अपने भोजन,  वर्तमान व भावी पीढ़ी और ग्रह के भविष्य के लिए जल स्रोतों के संरक्षण का संकल्प लें।
गंगोत्री, उत्तरकाशी यात्रा के दौरान स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी व साध्वी भगवती सरस्वती जी के साथ आस्टेªलिया, अमेरिका, मैक्सिको, इंग्लैंड, अफ्रीका आदि अनेक देशों से आये श्रद्धालुओं ने भाग लिया और सभी ने स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी के नेतृत्व में पहाड़ों पर हो रहे चिकित्सा, शिक्षा, दिव्यांगों के लिये छात्रावास, गुरूकुल व पौधारोपण आदि सेवा कार्य की भूरि-भूरि सराहना की।

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