परिचय
हिंदू धर्म में नर्मदा नदी का विशेष धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व है। इसे जीवनदायिनी और मोक्षदायिनी माना जाता है। गंगा और यमुना की तरह ही नर्मदा की भी विधिवत पूजा की जाती है। यह नदी मध्य प्रदेश और गुजरात से होकर बहती है और लाखों लोगों की आस्था का केंद्र है। लेकिन इसकी एक अनोखी विशेषता है—यह उल्टी दिशा में बहती है, यानी पश्चिम से पूर्व के बजाय पूर्व से पश्चिम की ओर प्रवाहित होती है।
यह प्रश्न लोगों के मन में अक्सर आता है कि नर्मदा नदी ऐसी क्यों बहती है। इसके पीछे भूगर्भीय कारणों के साथ-साथ एक पौराणिक कथा भी जुड़ी हुई है, जो नर्मदा के अद्भुत स्वाभिमान और प्रेम की कहानी को दर्शाती है।
नर्मदा नदी का पौराणिक इतिहास
नर्मदा को अन्य नामों, जैसे रेवा और शोणभद्र, से भी जाना जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, नर्मदा राजा मेखल की पुत्री थीं और उनकी सुंदरता अनुपम थी। राजा ने उनकी शादी के लिए एक कठिन शर्त रखी थी—जो भी राजकुमार दुर्लभ गुलबकावली पुष्प (हल्दी की एक दुर्लभ जाति का फूल) लेकर आएगा, उसी से नर्मदा का विवाह संपन्न होगा।
शोणभद्र नामक राजकुमार ने यह दुर्लभ पुष्प प्राप्त कर लिया, जिससे राजा मेखल ने नर्मदा का विवाह उनसे तय कर दिया। विवाह निश्चित होने के बाद, नर्मदा शोणभद्र से मिलने की इच्छा रखने लगीं। उन्होंने अपनी दासी जुहिला के हाथों शोणभद्र के लिए प्रेम संदेश भेजा। जुहिला ने नर्मदा से सुंदर वस्त्र और आभूषण मांगे और संदेश लेकर चल पड़ी।
जब वह शोणभद्र के पास पहुंची, तो राजकुमार उसे ही नर्मदा समझ बैठे। उधर, जुहिला भी शोणभद्र के प्रेम में पड़ गई और उसने उनके प्रणय निवेदन को स्वीकार कर लिया।
नर्मदा का क्रोध और स्वाभिमान
जब नर्मदा को इस विश्वासघात का पता चला, तो उनका हृदय अपार पीड़ा से भर गया। वह तुरंत शोणभद्र से मिलने पहुंचीं, लेकिन वहां का दृश्य देखकर उनका क्रोध और अपमान का भाव गहरा हो गया। उन्होंने देखा कि शोणभद्र और जुहिला एक-दूसरे में मग्न थे।
स्वाभिमान से भरी नर्मदा यह अपमान सहन नहीं कर सकीं। उन्होंने वहीं से लौटने का निश्चय किया और कभी भी पीछे मुड़कर न देखने की प्रतिज्ञा की। उन्होंने अपने जीवन में किसी से भी विवाह न करने का संकल्प लिया और आजीवन कुंवारी रहने का व्रत धारण कर लिया।
इसी कारण से नर्मदा नदी को कुंवारी नदी कहा जाता है और यह हमेशा उल्टी दिशा में बहती है, जैसे मानो वह शोणभद्र से हमेशा दूर जाने का प्रयास कर रही हो।
नर्मदा नदी की वैज्ञानिक व्याख्या
हालांकि पौराणिक कथाएं नर्मदा के उल्टी दिशा में बहने का भावनात्मक और आध्यात्मिक कारण बताती हैं, लेकिन इसका एक भूगर्भीय कारण भी है। नर्मदा नदी विंध्य और सतपुड़ा पर्वतों के बीच बहती है। इसकी घाटी पश्चिम की ओर ढलान लिए हुए है, जिससे यह पूर्व से पश्चिम की ओर प्रवाहित होती है। यह भारत की कुछ चुनिंदा नदियों में से एक है, जो इस दिशा में बहती हैं।
नर्मदा की आध्यात्मिक महिमा
नर्मदा नदी को गंगा के समान ही पवित्र माना जाता है। यह माना जाता है कि इस नदी में स्नान करने मात्र से ही पापों से मुक्ति मिल जाती है। साथ ही, कहा जाता है कि नर्मदा की परिक्रमा करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। इसलिए देशभर से श्रद्धालु नर्मदा परिक्रमा करने आते हैं और इसकी महिमा का गुणगान करते हैं।
नर्मदा नदी केवल एक जलधारा ही नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति, आस्था और प्रेम की एक अद्भुत गाथा है। इसकी उल्टी धारा न केवल भूगर्भीय कारणों से प्रभावित है, बल्कि यह एक पौराणिक प्रेम कथा का प्रतीक भी है, जिसमें स्वाभिमान, प्रेम, त्याग और आत्मसम्मान का अनूठा संदेश समाहित है। यही कारण है कि नर्मदा आज भी पूरे विश्व में अपनी अद्वितीय विशेषता के लिए जानी जाती है।