शिलाद ऋषि की तपस्या और नंदी का दिव्य जन्म:
शिलाद ऋषि, एक महान तपस्वी थे, जिन्होंने पुत्र प्राप्ति की कामना से भगवान शिव की कठोर आराधना की। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर, भगवान शिव ने उन्हें वरदान दिया कि उन्हें एक ऐसा पुत्र मिलेगा जो धर्म, ज्ञान और शक्ति का प्रतीक होगा। वरदान के अनुसार, शिलाद ऋषि को एक दिव्य बालक मिला, जो पृथ्वी से प्रकट हुआ था। शिलाद ऋषि ने उस बालक को नंदी नाम दिया और उसे अपने पुत्र के रूप में स्वीकार किया।
नंदी एक असाधारण बालक था। वह बचपन से ही वेदों, शास्त्रों और कलाओं का ज्ञाता था। उसकी बुद्धि तीव्र थी और उसकी वाणी में ओज था। उसने अपने पिता से धर्म और ज्ञान की शिक्षा प्राप्त की और एक आदर्श पुत्र बना। नंदी की भक्ति और सेवा भाव से ऋषि शिलाद बहुत प्रसन्न थे।
संतों का आगमन और नंदी की अल्पायु का रहस्योद्घाटन:
एक दिन, शिलाद ऋषि के आश्रम में दो दिव्य संत पधारे। ऋषि ने अपने पुत्र नंदी को उनकी सेवा का आदेश दिया। नंदी ने पूरी निष्ठा और श्रद्धा के साथ संतों की सेवा की। संतों ने ऋषि की सेवा से प्रसन्न होकर उन्हें आशीर्वाद दिया, लेकिन नंदी के लिए कुछ नहीं कहा।

ऋषि शिलाद ने संतों से इसका कारण पूछा, तो उन्होंने बताया कि नंदी अल्पायु है। यह सुनकर ऋषि चिंतित हो गए, क्योंकि वे अपने पुत्र को बहुत प्यार करते थे। नंदी ने अपने पिता को समझाया कि उन्हें चिंता नहीं करनी चाहिए, क्योंकि वह भगवान शिव के आशीर्वाद से ही पैदा हुआ है और वही उसकी रक्षा करेंगे।
नंदी की शिव भक्ति और अमरत्व की प्राप्ति:
नंदी ने अपने पिता की आज्ञा से भगवान शिव की घोर तपस्या शुरू की। उसने कठोर नियमों का पालन करते हुए, बिना भोजन और जल के, कई वर्षों तक तपस्या की। उसकी तपस्या से प्रसन्न होकर, भगवान शिव प्रकट हुए और उसे वरदान मांगने के लिए कहा।
नंदी ने भगवान शिव से प्रार्थना की कि वे उसे हमेशा अपनी सेवा में रखें और उसे अमरत्व प्रदान करें। भगवान शिव ने नंदी की भक्ति से प्रसन्न होकर उसे अपना वाहन और अपना सबसे प्रिय गण बना लिया। उन्होंने नंदी को अमरत्व का वरदान भी दिया और उसे अपने गणों का अधिपति नियुक्त किया।
नंदी की महिमा और शिव मंदिरों में उनका स्थान:
नंदी भगवान शिव के परम भक्त और उनके सबसे प्रिय गण हैं। उन्हें धर्म, न्याय, शक्ति और भक्ति का प्रतीक माना जाता है। मान्यता है कि नंदी के कानों में अपनी मनोकामना कहने से वह भगवान शिव तक पहुंचती है। इसलिए, शिव मंदिरों में नंदी की मूर्ति स्थापित की जाती है और भक्त उनकी पूजा करते हैं।
नंदी की कथा हमें यह सिखाती है कि सच्ची भक्ति और समर्पण से भगवान को प्राप्त किया जा सकता है। यह कथा हमें यह भी सिखाती है कि हमें अपने कर्तव्यों का पालन पूरी निष्ठा और श्रद्धा के साथ करना चाहिए।

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