Friday , November 22 2024

संकटग्रस्त प्रजातियों, कीड़ा जड़ी, बुरांश प्रजाति पर शोध और इनके संरक्षण की आवश्यकता: अजय टम्टा

 

अल्मोड़ा। गोविन्द बल्लभ पन्त राष्ट्रीय हिमालयी पर्यावरण संस्थान कोसी- कटारमल तथा राष्ट्रीय सतत तटीय प्रबन्धन केन्द्र चेन्नई द्वारा भारत की जी 20 की अध्यक्षता और बदलती जलवायु के तहत हिमालयी समाजों को बनाए रखने के लिए हरित-विकास रणनीतियाँ: नीति, मार्ग और उपकरण विषय पर दो दिवसीय (27-28 जून 2023) राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन किया जा रहा है। कार्यक्रम के प्रथम दिन की शुरुआत संस्थान के निदेशक और गणमान्य अतिथियों के द्वारा दीप प्रज्जवलन और सरस्वती वन्दना के द्वारा हुई। अपने स्वागत उद्बोधन में संस्थान के निदेशक प्रो. सुनील नौटियाल ने सभी आगंतुकों का स्वागत करते हुए उन्हें इस कार्यक्रम में अपनी सहभागिता हेतु सबका आभार जताया और उन्हें संस्थान तथा इसकी क्षेत्रीय इकाइयों द्वारा हिमालयी क्षेत्रों में विभिन्न पर्यावरणीय मुद्दों पर किये जा रहे विभिन्न विकासात्मक कार्यो और हितधारकों द्वारा लिये जा रहे लाभों से सबको अवगत कराया। उन्होंने कहा कि दो दिवसीय इस  सम्मेलन के माध्यम से हमें एक दूसरे की बातों को सुनने और मनन करने का अवसर प्राप्त होगा। उन्होंने भारतीय हिमालयी क्षेत्रों  में जल सुरक्षा एवं जलवायु परिवर्तन, समाज की आजीविका, सतत विकास के लिए जैव विविधता, वर्ष 2020-2025 के लिए अनुसंधान एवं विकास, भारत की जी 20 की प्राथमिकताएं, हरित भारत के लिए रोडमैप पंचामृत, एक हिमालय एक नीति जैसे ज्वलन्त मुद्दों से सबको अवगत कराया।

अपने उद्बोधन में कार्यक्रम के मुख्य अतिथि सांसद अजय टम्टा ने संस्थान द्वारा किये जा रहे विभिन्न विकासात्मक कार्यो और संस्थान को इस सम्मेलन के माध्यम से विभिन्न संस्थानों को जोड़ने की प्रशंसा की। उन्होंने संस्थान द्वारा समय समय पर आयोजित इस तरह के सम्मेलनों का शोधार्थियों को अधिक से अधिक आत्मसात करने की अपील की। उन्होंने कहा कि बिना पर्यावरण के मानव और बिना मानव के पर्यावरण की कल्पना नहीं की जा सकती है, अतः हम सबको मिलकर पर्यावरण को बचाने के लिए आगे आने की आवश्यकता है। उन्होंने संकटग्रस्त प्रजातियों, कीड़ा जड़ी, बुरांश प्रजाति पर शोध और इनके संरक्षण की आवश्यकता जताई और संस्थान से इनके संरक्षण हेतु अपील की।
कार्यक्रम के विशिष्ठ अतिथि और  पर्यावरण मंत्रालय भारत सरकार के पूर्व सचिव हेम पाण्डे ने संस्थान द्वारा चलायी जा रही विभिन्न परियोजनाओं को धरातली स्तर पर लागू करने हेतु संस्थान की सराहना की और कहा कि हमें पर्यावरण और पारिस्थितिकी तंत्र के साथ छेड़छाड़ किये बिना इनका संरक्षण कर पर्यावरण को बचाना है। उन्होंने कहा कि हमें भयावह दृष्टिकोण, पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं का मूल्यांकन और पर्यावरण प्रणाली की निगरानी की नितान्त आवश्यकता है। विवेकानन्द पर्वतीय संस्थान के निदेशक डॉ लक्ष्मीकांत ने पर्वतीय क्षेत्रों में मौसम के अनुकूल कृषि और इसके द्वारा अधिक से अधिक जीविकापार्जन करने पर अपने विचार साझा किये। पर्यावरण सेवा निधि के निदेशक पदमश्री डॉ ललित पाण्डे ने कहा कि आज मानव विकास की चाह में अपनी पुरानी प्रथाओं और रीति रिवाजों को भूलते जा रहा है जो समाज के लिए घातक है। उन्होंने पर्वतीय क्षेत्रों में महिलाओं की समाज में कम सहभागिता पर अपनी चिंता व्यक्त की।
प्लेनरी लेक्चर में मुख्य वक्ता पदमश्री डॉ वी पी डिमरी ने हिमालयी राज्यों में प्राकृतिक आपदाएँ  उत्तराखंड के विशेष संदर्भ में विषय पर अपना व्याख्यान प्रस्तुत किया और सबको मानव जनित और प्राकृतिक आपदाओं से अवगत कराया। उन्होंने 1970 के गोहना लेक आपदा, 2013 की केदारनाथ आपदा और 2022 की जोशीमठ आपदा और हिमालयी क्षेत्रो में विगत 100 वर्षो में आये भूकम्पों  और भूकंप के अग्रदूतों से भी सबको अवगत कराया।

वहीं प्लेनरी लेक्चर में मुख्य वक्ता बी एस बोनाल ने नाजुक युवा हिमालय में विकास विशेष रूप से धारचूला घाटी उत्तराखंड में धौली गंगा में सड़कों और जलविद्युत परियोजनाओं का निर्माण विषय पर व्याख्यान दिया और दारमा, व्यांस और चौंदास वैली में विभिन्न औषधीय पौधों और बागवानी तथा इन क्षेत्रो में हो रहे विभिन्न निर्माण कार्यो के द्वारा पर्वतीय पारिस्थितिकी तंत्र को हो रहे नुकसान से सबको अवगत कराया और ब्लास्टिंग पर प्रतिबंध लगाने को कहा।
कार्यक्रम के प्रथम तकनीकी सत्र में डॉ वी.पी. डिमरी और डॉ संजीव बच्चर की अध्यक्षता में भूमि, जल और आर्द्रभूमि विषय पर परिचर्चा हुई जिसमें राष्ट्रीय सतत तटीय प्रबन्धन केन्द्र चेन्नई  के डॉ ए. पनीरसेल्वम द्वारा तटीय आर्द्रभूमि पारिस्थितिकी प्रणालियों में कार्बन पृथक्करण तथा भारतीय पेट्रोलियम संस्थान देहरादून के डॉ सुदीप गांगुली के रिफाइनरी धाराओं का डिसल्फराइजेशन: एक ऊर्जा कुशल और पर्यावरण अनुकूल दृष्टिकोण विषय पर अपना व्याख्यान दिया।

कार्यक्रम के द्वितीय तकनीकी सत्र में हेम पांडे और बी.एस. बोनाल की अध्यक्षता में जैव विविधता और पारिस्थितिकी तंत्र की बहाली विषय पर परिचर्चा हुई जिसमे डॉ एस.एस. सामंत ने आईएचआर में जलवायु परिवर्तन के तहत जैव विविधता संरक्षण और प्रबंधन, डॉ एस कनौजिया ने बीआईएस और जैव विविधता में मानकीकरण तथा डॉ एस.के. सिंह ने उत्तराखंड के विशेष संदर्भ में पश्चिमी हिमालय के औषधीय पौधे विषय पर अपना व्याख्यान दिया।
इसके अतिरिक्त विभिन्न सत्रों के माध्यम द्वारा उत्तराखंड की राज्य पर्यावरण योजना, नॉलेज शेयरिंग, सहयोग और नेटवर्किंग तथा COP27 – युवा मंच और पोस्टर प्रस्तुतियों के प्रतिबिंब विषय पर भी चर्चा की गयी। इस कार्यक्रम में इसीमोड काठमांडू से डॉ संजीव बच्चर, एच एन बी गढ़वाल विश्वविद्यालय श्रीनगर, भारतीय पेट्रोलियम संस्थान देहरादून से डॉ एस गांगुली, वाडिया संस्थान देहरादून, नाबार्ड से गिरीश पन्त, विवेकानन्द पर्वतीय संस्थान अल्मोड़ा से डॉ लक्ष्मीकांत, गो.ब. पन्त विश्वविद्यालय पन्तनगर, भारतीय मानक ब्यूरो नयी दिल्ली से डॉ एस के कन्नौजिया और डॉ सौरभ, आई आई एस सी बैंगलोर से डॉ रवीन्द्रनाथ, सोबन सिंह जीना विश्वविद्यालय अल्मोड़ा, एरीज नैनीताल, कुमाऊँ विश्वविद्यालय नैनीताल से डॉ ललित तिवारी, एचएफआरआई शिमला से डॉ एस एस सामन्त समेत 27 संस्थानों के प्रतिभागियों, संस्थान के वैज्ञानिकों ई किरीट कुमार, डॉ जे सी कुनियाल, डॉ आई डी भट्ट, डॉ पारोमिता घोष सहित संस्थान के वैज्ञानिकों एवं शोधार्थियों समेत लगभग 200 प्रतिभागियों ने प्रतिभाग किया। कार्यक्रम का सञ्चालन डॉ के एस कनवाल द्वारा किया गया।

About admin

Check Also

जिज्ञासा यूनिवर्सिटी में बहुविश्यक शोध को बढ़ावा देते सम्मेलन का समापन

शोध को प्रभावी बनाने हेतु बहुविषयक अनुसंधान को बढ़ावा देने के उद्देश्य से जिज्ञासा विश्वविद्यालय …

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *