राष्ट्रीय न्यूज़ सर्विस,26,04,2023{RNS}
हरिशंकर व्यास
विपक्ष की जात राजनीति का जवाब भाजपा ज्यादा बड़ी जात राजनीति से देगी या उसका जवाब ज्यादा उग्र और आक्रामक हिंदुत्व से दिया जाएगा? इस सवाल के जवाब से आगे की राजनीति की दिशा, दशा और केंद्रीय चेहरे तय होंगे। विपक्ष ने जाति को अपना हथियार बनाया है। उनका मुद्दा सामाजिक न्याय है। बिहार से शुरू हुई मंडल दो की राजनीति पूरे देश में फैलेगी। राहुल गांधी और मल्लिकार्जुन खडग़े उस रास्ते पर चल पड़े हैं। उनका मानना है कि पूरे देश में जाति आधारित जनगणना जरूरी है ताकि हर जाति को उसकी आबादी के हिसाब से आरक्षण दिया जा सके। आबादी के हिसाब से उसे देश के संसाधनों में हिस्सेदारी दी जाए। अगर सरकारी नौकरियां नहीं हैं या सरकारी स्कूल-कॉलेज पढऩे लायक नहीं हैं तो निजी कंपनियों में भी आरक्षण लागू हो और निजी क्षेत्र के स्कूल-कॉलेजों में भी आरक्षण की व्यवस्था हो। यही विपक्ष की अगले चरण की राजनीति का मुख्य मुद्दा बनने वाला है।
इसका जवाब देने के लिए भाजपा के पास दो रास्ते हैं। पहला रास्ता तो वह है, जिसका ऐलान विपक्षी पार्टियों से पहले खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किया था। उन्होंने 2021 में जब अपनी दूसरी सरकार में पहली बार फेरबदल की तो ऐलान करके कहा कि उनकी सरकार में सबसे ज्यादा ओबीसी यानी अन्य पिछड़ी जातियों के मंत्री हैं। प्रधानमंत्री ने अपने नए मंत्रियों का जब संसद में परिचय कराया तब भी यह बात कही कि उनकी सरकार में सबसे ज्यादा ओबीसी, एससी और एसटी मंत्री बने हैं और यह बात विपक्ष को पसंद नहीं आ रही है। मोदी की दूसरी सरकार में 27 ओबीसी मंत्री हैं और 20 एससी वह एसटी समुदाय के मंत्री हैं। जो 27 ओबीसी मंत्री हैं उनमें से 19 अति पिछड़ी जातियों के हैं। यह विपक्ष की जात राजनीति का एक जवाब है। भाजपा बार बार बताती है कि प्रधानमंत्री मोदी पिछड़ी जाति से आते हैं। सो, पिछड़ी जाति के प्रधानमंत्री की सरकार में सबसे ज्यादा पिछड़ी जाति के मंत्री हैं। जरूरत पडऩे पर और भी बनाए जा सकते हैं। आरक्षण को लेकर भी भाजपा कह चुकी है कि मोदी के रहते कोई आरक्षण को हाथ भी नहीं लगा सकता है।
लेकिन जाति और आरक्षण की राजनीति को लेकर भाजपा की सीमाएं हैं। वह एक सीमा से आगे नहीं बढ़ सकती है। उसके पीछे राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ खड़ा है, जिसके बारे में धारणा है कि वह अगड़ी जाति के लोगों का संगठन है और आरक्षण विरोधी है। संघ प्रमुख मोहन भागवत ने एक बार आरक्षण की समीक्षा करने की बात कही थी। इस पर बिहार में ऐसी राजनीति हुई थी कि 2015 के विधानसभा चुनाव में भाजपा और उसकी सहयोगी पार्टियां साफ हो गई थीं। यह भी तय है कि भाजपा जाति आधारित जनगणना नहीं कराने जा रही है। इसका कारण यह है कि जाति जनगणना के आंकड़े हिंदू समाज को पहले से ज्यादा विभाजित करेंगे। सैकड़ों जातियां अपनी संख्या लेकर सत्ता में हिस्सेदारी की बात करेंगी। इससे हिंदुत्व का समूचा नैरेटिव फेल होगा। भाजपा अब तक व्यापक हिंदू समाज को कंसोलिडेट करने के लिए जो प्रयास कर रही थी उसका तब कोई मतलब नहीं रह जाएगा। मंदिर बनाने से लेकर 80 और 20 फीसदी तक की राजनीति का नारा राजनीतिक रूप से कारगर नहीं रह जाएगा।
सो, जात राजनीति की काट में भाजपा जाति की राजनीति करके कामयाब नहीं हो सकती है। उसे ज्यादा उग्र हिंदुत्व की राजनीति करनी होगी। जाति की सीमा मिटाने वाला नैरेटिव तैयार करना होगा। और वह नैरेटिव तैयार होगा योगी आदित्यनाथ के चेहरे और उनके काम से। प्रधानमंत्री मोदी हिंदू हृद्य सम्राट हैं लेकिन उनकी छवि एक बड़े राजनेता और विकास पुरूष की भी बनाई गई है। गुजरात दंगों के बाद जो छवि वह काफी हद तक बदल गई है, जबकि योगी आदित्यनाथ की वैसी छवि बन रही है, जैसी 2002 के बाद मोदी की बनी थी। योगी कट्टर हिंदुत्व का चेहरा बन रहे हैं। मीडिया में उनका जिस तरह से महिमामंडन हो रहा है वह अपनी जगह है लेकिन अतीक अहमद और उसके भाई अशरफ अहमद की हत्या के बाद सोशल मीडिया में जो माहौल बना वह अभूतपूर्व है। सामान्य लोगों ने, महिलाओं और युवाओं ने और यहां तक कि सरकारी कर्मचारियों ने अपने सोशल मीडिया अकाउंट की तस्वीरें बदलीं और मु_ी बांध कर दोनों हाथ ऊपर उठाए हुए योगी की तस्वीर लगाई।
फरवरी के आखिरी हफ्ते से लेकर अभी तक की घटनाओं ने योगी की लार्जर दैन लाइफ छवि को और मजबूती दी है। फरवरी के अंत में राजू पाल मर्डर केस के गवाह और दो पुलिसकर्मियों की गोली मार कर हत्या की गई थी। उस हत्याकांड में अतीक और उसके बेटे असद के साथ साथ अशरफ और सात अन्य लोग आरोपी थी। घटना के बाद योगी आदित्यनाथ ने माफिया को मिट्टी में मिला देने की बात कही थी। अप्रैल का तीसरा हफ्ता आते आते छह लोग मार दिए गए यानी मिट्टी में मिला दिए गए। उमेश पाल पर गोली चलाने वालों में सात लोगों की पहचान हुई थी, जिसमें से असद अहमद सहित चार लोगों को पुलिस ने मुठभेड़ में मार दिया। अतीक व अशरफ की पुलिस हिरासत में गोली मार कर हत्या कर दी गई। यह योगी के बुलडोजर न्याय से एक कदम आगे की घटना थी। असल में उत्तर प्रदेश में यह धारणा स्थापित की गई है कि माफिया का मतलब मुस्लिम माफिया होता है और उसके बाद उसे मिट्टी में मिलाने का काम शुरू हुआ। इससे पहले योगी की सरकार ने ही सबसे पहले रोमियो स्क्वायड बना कर हिंदू लड़कियों को कथित लव जिहादी यानी मुस्लिम लडक़ों से बचाने का अभियान शुरू किया था।
मुस्लिम गैंगेस्टर को खत्म करने और हिंदुओं को बचाने की धारणा से व्यापक हिंदू समाज में सुरक्षा का भाव बना है। याद करें कैसे गुजरात में 2002 के दंगों के बाद नरेंद्र मोदी की वजह से हिंदुओं में सुरक्षा का भाव पैदा हुआ था। वैसा ही भाव योगी की वजह से व्यापक हिंदू समाज में पैदा हुआ है। यह निजी तौर पर योगी की और पार्टी के स्तर पर भाजपा की बड़ी ताकत बनेगी। एक तरफ अयोध्या में भव्य राममंदिर का निर्माण का हो रहा है तो दूसरी ओर काशी कॉरिडोर बना है तो मां विध्यवासिनी के कॉरिडोर का काम हो रहा है। इस तरह हिंदुत्व का सकारात्मक एजेंडा तो दूसरी ओर 20 फीसदी के मुकाबले 80 फीसदी के मन में श्रेष्ठता, सर्वोच्चता और सुरक्षा की भावना भरने का एजेंडा है। जाति की बजाय हिंदुत्व के छाते के नीचे लोगों को एकजुट करने का यह वह बड़ा मुद्दा हो सकता है, जिसका प्रतीक योगी हैं।