HamariChoupal,25,09,2022
सत्य से किनारा होने के कारण बुद्धि असत्य को सत्य, रांग को राइट मानने लगती है, उल्टी जजमेंट देने लगती है। कितना भी कोई समझायेगा कि यह राइट नहीं है, लेकिन वह यथार्थ को, सत्य को भी असत्य की शक्ति से समझाने वाले को रांग सिद्ध करेगा।
यह सदा याद रखो कि आजकल ड्रामा अनुसार असत्य का राज्य है और असत्य के राज्य-अधिकारी प्रेजीडेंट रावण है। उसके कितने शीश हैं अर्थात् असत्य की शक्ति कितनी महान् है! उसके मंत्री-महामंत्री भी बड़े महान् हैं। उसके जज और वकील भी बड़े होशियार हैं इसलिए उल्टी जजमेन्ट की प्वॉइन्ट्स बहुत वैराइटी और बाहर से मधुर रूप की देते हैं इसलिए सत्य को असत्य सिद्ध करने में बहुत होशियार होते हैं।
लेकिन असत्य और सत्य में विशेष अन्तर क्या है? असत्य की जीत अल्पकाल की होती है क्योंकि असत्य का राज्य ही अल्पकाल का है। सत्यता की हार अल्पकाल की और जीत सदाकाल की है। असत्य के अल्पकाल के विजयी उस समय खुश होते हैं। जितना थोड़ा समय खुशी मनाते वा अपने को राइट सिद्ध करते, तो समय आने पर असत्य के अल्पकाल का समय समाप्त होने पर जितनी असत्यता के वश मौज मनाई, उतना ही सौ गुणा सत्यता की विजय प्रत्यक्ष होने पर पश्चाताप करना ही पड़ता है ।
कई समझते हैं कि असत्य के बल से असत्य के राज्य में विजय की खुशी वा मौज इस समय तो मना लें, भविष्य किसने देखा। कौन देखेगा – हम भी भूल जायेंगे, सब भूल जायेंगे। लेकिन यह असत्य की जजमेंट है।
भविष्य वर्तमान की परछाई है। बिना वर्तमान के भविष्य नहीं बनता। असत्य के वशीभूत आत्मा वर्तमान समय भी अल्प-काल के सुख के नाम, मान, शान के सुखों के झूले में झूल सकती है और झूलती भी है, लेकिन अतीन्द्रिय अविनाशी सुख के झूले में नहीं झूल सकती।
इसलिए अपने को चेक करो, दूसरे को नहीं। कयोकि आजकल दूसरों को चेक करने में सब होशियार हो गये हैं। – अपना चेकर बनो और दूसरे का मेकर बनो। लेकिन करते क्या हो? दूसरे का चेकर बन जाते हो और बातें बनाने में मेकर बन जाते हो।
अपने को चेक करो। दूसरे को चेक करने लगते हो तो लम्बी कथायें बन जाती हैं और अपने को चेक करेंगे तो सब कथायें समाप्त हो एक सत्य जीवन की कथा प्रैक्टिकल में चलेगी।
जो शरीर की मेहनत नहीं करते हैं उनको एक्सरसाइज की मेहनत कराते हैं। आप तो लक्की हो ना जो एक्सरसाइज नहीं करना पड़े। हाथ-पांव चलते रहते हैं। जितना जो हार्ड वर्क (कठिन परिश्रम) करता है उतना वह सेफ है – माया से भी और शरीर की व्याधियों से भी। बुद्धि तो बिजी रहती है ना। और फालतू तो कुछ नहीं चलेगा।
सब जस्टिस होने चाहिए, सेल्फ जस्टिस। कोई भी बात करने के पहले स्वयं जज करो तो न स्वयं का समय जायेगा और न दूसरों का।
सभी को जस्टिस होने चाहिए,लेकिन सेल्फ जस्टिस। कोई भी बात करने के पहले स्वयं जज करो तो न स्वयं का समय जायेगा और न दूसरों का।