उत्तराखंड के एक वरिष्ठ मंत्री का विदेश प्रेम लगातार सुर्खियों में बना हुआ है। प्रदेश की महत्वपूर्ण जिम्मेदारियों और मंत्रालय के कार्यभार को नजरअंदाज कर मंत्रीजी का विदेशी दौरों पर जोर देना अब न केवल विपक्ष बल्कि उनकी अपनी पार्टी के कार्यकर्ताओं के बीच भी सवाल खड़े कर रहा है।
विदेशी दौरों की हकीकत
मंत्रीजी हर विदेश यात्रा से पहले दावा करते हैं कि वह वहां की नीतियों और योजनाओं को उत्तराखंड में लागू करेंगे। लेकिन ज़मीनी सच्चाई कुछ और ही बयां करती है। शिक्षा, चिकित्सा और सहकारिता जैसे महत्वपूर्ण मंत्रालयों का प्रभार संभालने वाले मंत्रीजी ने इन क्षेत्रों में सुधार लाने के बजाय अपने विदेश प्रेम को तरजीह दी। उनके विदेशी दौरों के दावों का कोई ठोस परिणाम अब तक सामने नहीं आया है।
जनता और पार्टी के बीच बढ़ती नाराजगी
मंत्रीजी का घरेलू क्षेत्र, जहां कभी उनका राजनीतिक प्रभाव सर्वोपरि था, अब उनकी उपेक्षा के कारण पार्टी के लिए चुनौती बन गया है। हाल ही में हुए नगर निकाय चुनावों में भाजपा को इस क्षेत्र में हार का सामना करना पड़ा, जिससे यह साफ हो गया कि मंत्रीजी जनता के बीच अपनी साख खो रहे हैं। पार्टी कार्यकर्ताओं के बीच यह चर्चा आम हो गई है कि मंत्रीजी का यह विदेश प्रेम पार्टी के लिए नुकसानदेह साबित हो सकता है।
राजनीतिक महत्वाकांक्षाएं या जनता से बेरुखी?
एक समय था जब मंत्रीजी मुख्यमंत्री की कुर्सी पाने के लिए दिल्ली दरबार में लगातार अपनी दावेदारी पेश करते थे। लेकिन अब उनके व्यवहार और विदेश दौरों के प्रति झुकाव ने यह स्पष्ट कर दिया है कि उनका ध्यान जनता की समस्याओं से हटकर कहीं और केंद्रित हो गया है। कुछ लोग उनके इस रवैये को भविष्य में विदेश में बसने की योजना से जोड़कर देख रहे हैं, जबकि कुछ इसे उनकी राजनीतिक प्राथमिकताओं की कमी मानते हैं।
शासन की अनदेखी और जनता का आक्रोश
उत्तराखंड के शिक्षा, चिकित्सा और सहकारिता जैसे भारी-भरकम मंत्रालयों का प्रभार संभालने के बावजूद मंत्रीजी का बार-बार विदेश जाना एक बड़ा राजनीतिक मुद्दा बनता जा रहा है। महत्वपूर्ण कैबिनेट बैठकों से उनकी अनुपस्थिति और विदेश दौरे पर व्यस्त रहना न केवल शासन व्यवस्था को बाधित कर रहा है, बल्कि जनता के बीच आक्रोश को भी बढ़ा रहा है।
जनता का सवाल: जिम्मेदारी या अगली उड़ान?
अब जनता और पार्टी कार्यकर्ता यह देखना चाहते हैं कि मंत्रीजी विदेश से लौटने के बाद अपने मंत्रालय के कामकाज को प्राथमिकता देंगे या फिर अगली विदेश यात्रा की तैयारी में जुट जाएंगे। उत्तराखंड की जनता के लिए यह सवाल महत्वपूर्ण है कि उनकी समस्याओं को कब प्राथमिकता मिलेगी।
मंत्रीजी की विदेश यात्राएं जहां जनता के लिए उपेक्षा का प्रतीक बनती जा रही हैं, वहीं पार्टी के कार्यकर्ताओं और उनके समर्थकों के लिए चिंता का कारण बन चुकी हैं। ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि मंत्रीजी की विदेश प्रेम की उड़ान कब थमेगी और वह अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन कब करेंगे।
मंत्रीजी का गिरता जनाधार: संगठन की जड़ों से सत्ता के शिखर तक, लेकिन जनता से दूरी बढ़ती गई
श्रीनगर गढ़वाल विधानसभा सीट से विधायक और आरएसएस कैडर से जुड़े धन सिंह रावत का सफर संघर्ष और समाज सेवा की मिसाल रहा है। उत्तराखंड भाजपा में संगठन मंत्री के रूप में अपनी मजबूत पकड़ बनाने वाले धन सिंह रावत ने छात्र राजनीति से लेकर राम जन्मभूमि आंदोलन और राज्य आंदोलन तक कई महत्वपूर्ण भूमिकाएं निभाई। समाज सेवा के कार्यों में भी उनकी गहरी रुचि रही, जिसमें बाल विवाह निषेध, शराब विरोध, और 100 महाविद्यालयों में 10,000 पौधे लगाने जैसे सराहनीय प्रयास शामिल हैं।
संघर्ष से सत्ता तक का सफर
धन सिंह रावत का राजनीतिक करियर समाज सेवा और जनसरोकार के कार्यों से भरा रहा। उत्तराखंड राज्य आंदोलन में उनकी सक्रिय भूमिका और इसके चलते दो बार जेल जाने का अनुभव उन्हें एक जमीनी नेता के रूप में स्थापित करता है। छात्र राजनीति के दौरान अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) के साथ काम करते हुए उन्होंने संगठनात्मक मजबूती और जनसंपर्क का प्रभावी प्रदर्शन किया।
जनता की अपेक्षाओं पर खरा उतरने में असफलता
भूतकाल की इन उपलब्धियों के कारण प्रदेश की जनता को उनसे बड़ी अपेक्षाएं थीं। लेकिन सत्ता में आने के बाद धन सिंह रावत पर भी सत्ता का रोग हावी होता दिखा। जनता से जुड़े मुद्दों और अपने जमीनी आधार को सशक्त बनाने की बजाय वह विदेशी दौरों और राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं में उलझ गए। उनके निर्वाचन क्षेत्र श्रीनगर में भाजपा को हाल ही में निकाय चुनावों में मिली हार ने यह स्पष्ट कर दिया है कि उनका जनाधार तेजी से खिसक रहा है।
राजनीति से सेवा तक: एक अधूरी कहानी
जहां धन सिंह रावत की छवि एक संघर्षशील और सामाजिक सरोकारों से जुड़े नेता की रही, वहीं सत्ता के मोह में वह जनता और अपने समर्थकों से दूर होते गए। संगठन मंत्री और आरएसएस के कैडर से जुड़े होने के बावजूद वह अपनी जिम्मेदारियों को निभाने में विफल साबित हो रहे हैं। शिक्षा, चिकित्सा, और सहकारिता जैसे अहम मंत्रालयों का प्रभार संभालने के बावजूद इन क्षेत्रों में कोई ठोस प्रगति देखने को नहीं मिल रही।
राजनीतिक गिरावट और सवालों के घेरे में मंत्रीजी
श्रीनगर जैसे अपने प्रभाव वाले क्षेत्र में चुनावी हार और पार्टी कार्यकर्ताओं की नाराजगी इस बात का संकेत है कि धन सिंह रावत को अब जनता की समस्याओं पर ध्यान केंद्रित करना होगा। जनता और संगठन की उम्मीदें अब भी उनसे जुड़ी हैं, लेकिन यह देखना दिलचस्प होगा कि वह इन अपेक्षाओं पर खरे उतर पाते हैं या फिर सत्ता के मोह में जमीनी राजनीति से और दूर हो जाते हैं।
प्रदेश को धन सिंह रावत जैसे नेताओं से बहुत उम्मीदें थीं, लेकिन उनका बढ़ता विदेश प्रेम और जमीनी कार्यों से दूरी यह सवाल खड़ा करती है कि क्या वह अपने अतीत की उपलब्धियों के साथ न्याय कर पाएंगे या उनका राजनीतिक सफर सिर्फ एक अधूरी कहानी बनकर रह जाएगा।