06,09,2021,Hamari Choupal
{कंचना यादव}
जातिगत जनगणना का महत्त्व अगर जानना है तो उससे पहले यह जानना होगा की दुनिया भर में अधिकांश देश जातिगत जनगणना कराते हैं। जातिगत जनगणना कराने से किसी की जाति संकट में नहीं पड़ती है। जातिविहीन समाज तब तक नहीं बन सकता है जब तक समाज के हर वर्ग में समानता न स्थापित हो, सबको बराबर की सुविधा न मिले। यह तभी संभव होगा जब हमें वस्तुस्थिति का पता हो। जातिगत जनगणना कराने से देश में किस जाति का क्या सामाजिक, राजनितिक, आर्थिक और शैक्षणिक स्थिति है उसका पता चल जायेगा। कोई भी सरकार संविधान में लिखे राज्य के नीति निर्देशक तत्व के आधार पर जब कल्याणकारी नीति बनाती है तो वह आंकड़ों का इस्तेमाल करती है। जैसे महिला सम्बंधी वन स्टॉप सेंटर योजना बनाते वक्त सरकार ने महिलाओं के साथ हो रहे घर के अंदर और बाहर की तरह-तरह की परेशानियों के आंकड़ों का इस्तेमाल किया था। इसी तरह किसी भी जाति के लोगों का वर्तमान में हालात समझने के लिए जातिगत जनगणना कराना बहुत जरुरी है ताकि वंचित और उपेक्षित लोगों पर सरकार विशेष रूप से ध्यान दे पाए।
जातिगत जनगणना को लेकर बिहार नेता प्रतिपक्ष तेजश्वी यादव और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात किए। बिहार विधानसभा के मानसून सत्र के दौरान बिहार नेता प्रतिपक्ष तेजश्वी यादव सहित कई विपक्षी नेताओं ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से जातीय जनगणना कराने की मांग की थी। दरअसल उसी का नतीजा है कि जातिगत जनगणना पर दोनों ही दल का एक मत है।
समाज में अगर हर वर्ग के लोगों के बीच में समानता लाना है तो जातिगत जनगणना कराना जरुरी है ताकि किसी भी जाति के लोगों का मौजूदा हालात का पता चल सके। जाति आधारित जनगणना आज समय की मांग है, ऐसी बहुत-सी जातियाँ है जो आरक्षण की हक़दार हैं और उनको आरक्षण का लाभ नहीं मिला है। जातीय जनगणना का उद्देश्य बस आरक्षण तक सीमित रहना नहीं है, जाति जनगणना वास्तव में बड़ी संख्या में उन मुद्दों को सामने लाएगी जिसको सरकार द्वारा वरीयता देने की जरुरत है।
(लेखक-जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, स्कूल ऑफ़ कम्प्यूटेशनल एंड इंटीग्रेटिव साइंस में रिसर्च स्कॉलर हैं और छात्र राजद की एक्टिविस्ट हैं)