27.07.2021,Hamari Choupal
स्व स्थिति की सीट पर रहने से परिस्थितियों पर विजय स्वतः मिलती है। स्व स्थिति अर्थात आत्मिक स्थिति में रहने से हर प्रकार की परिस्थितियों पर विजय मिलती है। जब तक स्व स्थिति शाक्तिशाली नही होगा तब तक हम परिस्थितियों पर विजय प्राप्त नही कर सकते है। परिस्थिति है हमारी रचना और स्व स्थिति अर्थात रचियता। रचना के ऊपर रचियता का विजय अवश्य होता है।
यदि हम अपनी सीट छोड देते है तो हमारी हर हो जाती है। सीट पर सैट रहने वालों के पास ही शाक्तियॉ रहती है। शाक्तियॉ सीट पर रहने वालों की आज्ञा मानती है। सीट छोड देने का अर्थ है शाक्तिहीन हो जाना। सीट पर रहने से शाक्तियॉ स्वत आ जाती है।
इगो या देह अभिमान आने पर हम सीट के नीचे चले आते है। सीट के नीचे आने का अर्थ है ईगो रूपी माया का धूल लग जाना। जब हम सीट से उतर कर नीचे आयेंगे तो धूल अवश्य लगेगी अर्थात हमारी शुद्ध आत्मा इगो की प्रभाव में अशुद्ध हो जाती है। इगो में आने का अर्थ है मैला हो जाना। हम शुद्ध आत्मा है, इस पर इगो का धूल लगने से हम अशुद्ध रूप में दिखाई देते है।
कैसी भी परिस्थिति हो लेकिन सदा परमात्मा का साथ रहने पर विजय रहते है। परमात्मा की याद से हम सदैव खुश और निर्विघ्न रहते है।
हमारे खुशी का आधार है निमित्त बनना और दुख का आधार है मैपन में आना। निमित्त बनना हमारे लिए विशेष लिफ्ट की गिफ्ट है। ईश्वरीय सेवा को बोझ नही है। निमित्त बन कर चलना अर्थात सदैव खुशी का अनुभव करना है। करनकरावनहार करा रहे है और मै निमित्त हूॅ। यह मान कर चलने से ही सफलता मिलेगी।
मैपन में आना अर्थात माया के आने का गेट खोल देना। लेकिन निमित्त समझना अर्थात माया के आने का गेट बन्द कर देना। निमित्त समझने से माया जीत बन जायेंगे और सफल हो जायेगे।
अव्यक्त बाप दादा, मुरली महावाक्य 03 फरवरी, 1979