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कलराठी जमीन पर बीज डालने से मेहनत-समय ज्यादा लगता हैं, और सफलता भी कम मिलती है : मनोज श्रीवास्तव

25.07.2021,Hamari Choupal

 

दूसरों की बुराई और कमजोरी को दिल पर न रखें और क्षमा करें। इस आधार पर बुराई और कमजोरी दिल पर न रखते हुए, क्षमा करंगे और उनके कलयाण के प्रति उनके वास्तविक स्वरूप और गुणों को सामने रखते हुए उनकी महिमा करेंगे और उनकी महानाता की स्मुति को याद दिलायेंगें। ऐसा करते हुए दूसरे कमजोर व्यक्ति अपन गुणों को सुनते हुए समर्थ बनेंगे और उनके कमजोरी और बुराई को मिटाने की हिम्मत ला सकेंगे।

 

अपने पूर्व स्मृति की याद से कमजोर में भी हिम्मत आ जाती है। वह अनुभव और अहम भाव न रखने के कारण ऐसा व्यक्ति परिवर्तन में आ जाएगा। इसलिए कभी दूसरो कमजोर को , तुम कमजोर हो, तुम कमजोर हो नहीं कहना चाहिए नही तो जिस प्रकार शरीर से कमजोर व्यक्ति यदि डाक्टर द्वारा यह सुने कि तुम तो मरने वाले हो तब उसका हार्ट फेल हो जाएगा।

इसलिए चाहे कोई कितना भी कमजोर हो उसे केवल ईशारा देखकर ही शिक्षा देनी चाहिए। पहले समर्थ बनाकर फिर शिक्षा देनी चाहिए। अर्थात् पहले उसकी विशेषता की महिमा करें फिर उसकी कमजोरी पर अटेंशन दिलाए। पहले धरती पर हिम्मत और उत्साह का हल चलाए फिर बीज डालने पर सहज ही बीज का फल निकलेगा। नही तो कमजोर और हिम्मतहीन अर्थात् बंजर, कलराठी जमीन पर बीज डालने से मेहनत अधिक और समय ज्यादा लगता हैं, इसके साथ ही सफलता भी कम मिलती है,। अब कमजोरी को अपने संकल्प द्वारा विदाई दें।

 

समय कम है किंतु कार्य महान है इसलिए अपना हर सेंकेण्ड और हर संकल्प कार्य के प्रति ही लगाऐगें अर्थात् अपना तन-मन और धन कार्य सेवा के प्रति अर्पण करेंगे। अप्राप्त व्यक्तियों को कैसे तृप्त करेंगे और भिखारी आत्माओं को कैसे संपन्न बनायोंगें, इसके प्रति काय्र करना है। कोई व्यक्ति कैसा बी अवगुण वाला हो, कड़ें संस्कार वाला हो अथवा कम बुद्वि वाला हो, पत्थर बुद्वि हो सदा ग्लानि करने वाला हो सभी के प्र्रति कल्याणकारी अर्थात् लाफुल और लवफुल होंगें।

 

इसे रहम भाव कहते है लेकिन चलते-चलते रहम के बदले वहम और अहम भाव पैदा कर लेते है। इसलिए अपने अहम और वहम को समाप्त करने के लिए रहम भाव पर अटेंशन दें। रहम भाव के बदले अहम भाव का अर्थ है मै ही सब कुछ़ हूं, यह कुछ नहीं है। यह कुछ नहीं कर सकते हैं मैं ही सबकुछ कर सकता हूं। ऐसे विचार रहमदिल रखकर अपने वहम और अहम को मिटाने में मदद देते है।

 

अव्यक्त बाप-दादा मुरली महावाक्य 03 फरवरी, 1979

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