16,07,2025
देहरादून ( हमारी चौपाल )उत्तराखंड बाल अधिकार संरक्षण आयोग की अध्यक्ष डॉ. गीता खन्ना ने विद्यालयों में गीता के श्लोक पढ़ाने को लेकर चल रहे विवाद पर गहरी चिंता व्यक्त की है। उन्होंने कहा कि गीता के श्लोक केवल धार्मिक ग्रंथ के अंश नहीं, बल्कि जीवन-दर्शन की अमूल्य शिक्षाएँ हैं, जो बच्चों में आत्मविवेक, आत्मनियंत्रण और नैतिक मूल्यों का विकास करती हैं।
डॉ. खन्ना ने कहा, “आज हम एक ऐसी सोच के प्रभाव में हैं, जिसने हमारी संस्कृति और शिक्षा प्रणाली को खंडित कर दिया। गुरुकुल परंपरा, भाषाएं, जीवनशैली – सबको तुच्छ बताकर एक ऐसी शिक्षा प्रणाली थोपी गई जिसने बच्चों को मूल्यों और आत्मगौरव से दूर कर दिया।”
उन्होंने वर्तमान में बच्चों को घेर रही समस्याओं जैसे डिप्रेशन, एंजायटी, नशे की लत और साइबर अपराध का उल्लेख करते हुए कहा कि गीता के श्लोकों के माध्यम से बच्चों को जीवन की सही दिशा देना अत्यंत आवश्यक है।
धर्मनिरपेक्षता के संदर्भ में उन्होंने स्पष्ट किया कि भारत सभी धर्मों का सम्मान करता है, लेकिन धर्मनिरपेक्षता का अर्थ यह नहीं कि ऐसे ज्ञान को खारिज कर दिया जाए जो बच्चों के मानसिक, नैतिक और व्यवहारिक विकास में सहायक हो।
डॉ. खन्ना ने बताया कि यूरोप, अमेरिका सहित कई देश गीता के श्लोकों को अपने स्कूल पाठ्यक्रम में जीवन कौशल और मानसिक स्वास्थ्य के हिस्से के रूप में शामिल कर रहे हैं।
उन्होंने शिक्षाविदों व नागरिकों से आग्रह किया कि वे इस विषय को धर्म के नजरिए से न देखें, बल्कि बच्चों के समग्र विकास की दृष्टि से इसकी उपयोगिता पर विचार करें।
*यदि कोई ग्रंथ – चाहे किसी भी धर्म का हो – बच्चों को जीवन में सही मार्ग दिखाने में सक्षम है, तो उसका विरोध करना अनुचित ही नहीं बल्कि सामाजिक न्याय के विरुद्ध भी है।