16.07.2021,Hamari Choupal
अजीब विडंबना है कि जिस मानसून के इंतजार में हम पलक-पावड़े बिछाये बैठे थे, उसके आते ही हमें उसकी तल्खी से दो-चार होना पड़ा है। अब चाहे हिमाचल प्रदेश में धर्मशाला के निकट बादल फटने की घटना के बाद जन-धन की व्यापक क्षति की बात हो या फिर एक ही दिन में बड़ी संख्या में बिजली गिरने से हुई मौतें हों। बहरहाल, हम इसके लिये सीधे प्रकृति को दोषी नहीं ठहरा सकते। यूं तो पहले भी अतिवृष्टि से तबाही की खबरें आती थीं। हर साल निचले इलाकों में बाढ़ आने और भू-स्खलन की खबरें भी आती थीं। लेकिन इधर उसकी मारक क्षमता में तेजी देखी जा रही है। हमें पूरी दुनिया में ग्लोबल वार्मिंग के चलते मौसम के मिजाज में आई तल्खी के रूप में इस आपदा को देखना चाहिए। राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ग्लोबल वार्मिंग के प्रभावों की चर्चा तो खूब होती है लेकिन जमीनी स्तर पर हम जनता को इस बाबत जागरूक नहीं कर पाये हैं। निस्संदेह कुदरत की अपनी चाल है, जो समय के हिसाब से ही गतिशील रहती है, लेकिन जब इसके व्यवहार में अतिरेक नजर आता है और जन-धन की हानि होती है तो वह दुखद ही है। मानसून के मौसम में सदियों से बारिश होती आई है, लेकिन बीते सोमवार को हिमाचल में बादल फटने के बाद करोड़ों की संपत्ति नष्ट होना, कुछ की मौत और कुछ का लापता होना दुखद ही है। कहीं न कहीं ये तबाही हमारे विकास के अनियंत्रित मॉडल पर सवाल उठाती है। पहाड़ हमारी अराजक विलासिता का साधन नहीं है। हमने ऊंची-ऊंची मंजिलें बनाकर पानी के प्राकृतिक प्रवाह के रास्ते में बाधा खड़ी कर दी है। जल निकासी के रास्तों पर इमारतें खड़ी कर दी हैं। ऐसे में जब असामान्य बारिश होती है तो घरों व सड़कों को रौंदते हुए पानी अपना ठिकाना तलाशता है, जिसकी कीमत हमें जन-धन की हानि के रूप में चुकानी पड़ती है।
कमोबेश ऐसी ही स्थिति बिजली गिरने की घटनाओं में अप्रत्याशित वृद्धि से भी पैदा हुई है। सोमवार को जयपुर के आमेर किले की बुर्ज में बिजली गिरने से ग्यारह लोगों की मौत और बड़ी संख्या में लोगों के घायल होने की घटना ने हर किसी को दुखी किया। ऐसा भी नहीं है कि बिजली गिरने की घटनाएं पहले नहीं होती थीं। लेकिन एक दिन में राजस्थान, मध्य प्रदेश व उत्तर प्रदेश आदि राज्यों में बिजली गिरने से अस्सी के करीब लोगों की मौत विचलित करती है। कुदरती विधान है कि आसमानी बिजली को ऊंची जगह आकर्षित करती है। यही वजह है कि बरसात में बिजली के ऊंचाई वाले स्थानों व पेड़ों पर गिरने की घटनाएं ज्यादा होती हैं। दरअसल, हम कोई ऐसा तंत्र भी विकसित नहीं कर पाये हैं जो बिजली गिरने की पूर्व में भविष्यवाणी कर सके। फिर भी आसमान में होने वाली गडग़ड़ाहट व शरीर के रोएं खड़े होने को संकेत माना जा सकता है। फिर भी इस बाबत लोगों को जागरूक तो किया जा सकता है। पूर्व अध्ययनों के आधार पर कहा जाता है कि बरसाती मौसम में मोबाइल का उपयोग नहीं करना चाहिए तथा छाते में लगी धातु के बिजली के वाहक होने के कारण इसका प्रयोग नहीं करना चाहिए। लेकिन हम ऐसी सलाहों को गंभीरता से नहीं लेते। बताते हैं कि जयपुर के आमेर किले में जिस मीनार पर यह हादसा हुआ, लोग उसे सेल्फी प्वाइंट के रूप में इस्तेमाल करते हैं। गरजते आकाश व कड़कती बिजली के बीच लगभग तीस लोग मोबाइल से सेल्फी ले रहे थे। कहा जा रहा है कि मोबाइल की तरंगों ने ऊंचाई वाले स्थान पर आकाशीय बिजली को आकर्षित किया जो इस हादसे की वजह बना। दरअसल, आसमानी बिजली से बचाव के लिये पूर्व अध्ययनों के आधार पर जो सलाह दी जाती है, उसका हम पालन नहीं करते। बारिश के बीच हम पेड़ों के नीचे खड़ा होने में खुद को सुरक्षित मान लेते हैं। इसी तरह हमें खराब मौसम में विद्युत की सुचालक यानी धातु आदि के संपर्क में खड़े होने से बचना चाहिए।