26.06.2021,Hamari Choupal
सदा एक लक्ष्य की तरफ नजर हो वह लक्ष्य है बिन्दु। एक लक्ष्य अर्थात बिन्दी की तरफ सदा देखते रहे। अन्य कोई बाते देखते हुए भी न देखे। मछली की तरफ नजर नही आंख की तरफ बिन्दु में रहे। मछली है विस्तार और सार है आंख अर्थात बिन्दु। विस्तार को नही देखे अर्थात सार रूप एक बिन्दु को देखे इसी प्रकार अगर किसी भी बात को विस्तार में देखते है तो विघ्न आ जाते हैं और यदि सार अर्थात बिन्दु के रूप में स्थित हो जाते हैं तो समस्याओं पर फुलस्टॉप अर्थात बिन्दी लग जाता है।
वृति की मधुरता से वाणी की मधुरता और कर्म में मधुरता स्वतः आ जाती है। एक का परिवर्तन अनेक आत्माओं का परिवर्तन का साधन बन जाता है। ऐसा परिवर्तन हो कि अनेकों के लिये उदाहरण बन जाये। जैसे स्थूल चीज की खुशबू चारों ओर स्वतः फैल जाती है वैसे ही यह वायब्रेशन संकल्प के द्वारा स्वतः फैल जायेगा।
सदा एक लक्ष्य हो कि हमें दाता बन कर सभी को देना है न कि लेना है अर्थात वह करे तो मैं करू ऐसा नही। दातापन की भावना हमें सम्पन्न कर देती है। सम्पन्न नही होंगे तो दे नही सकेंगे। मैं देने वाला दाता हूॅ इस भाव से देना ही लेना हो जाता है। जितना देना है उतना लेना है। दातापन की भावना हमें सदैव निर्विघ्न बना देती है।
व्यर्थ कर्म में भी फुलस्टॉप अर्थात बिन्दी लग जाता है। विस्तार को देखते हुए भी न देखे सुनते हुए भी न सुने। यह स्वरूप प्रैक्टिकल में आना चाहिये, यदि यह अभ्यास अभी नही होगा तो आने वाले दृश्य अंत्यंत विकारल होगा और इस विकराल दृश्य को देखते हुए एक सेकेण्ड के पैपर में सदैव के लिये फैल मार्क्स ले लेंगे।
कर्म भले बहुत साधारण हो लेकिन स्थिति महान है। स्थिति महान होने पर साधारण कर्म करते हुए भी महानता का साक्षात्कार हो जाता है। कार्य साधारण हो लेकिन स्थिति अतिश्रेष्ठ। अपनी विशेषता को जानकर उसको कर्म में लगायें जैसे लोहा पारस से मिल कर पारस हो जाता है वैसे ही एक गुण या विशेषता सेवा में लगाने से सेवा का फल लाख गुना मिलता है। और एक विशेषता ही अनेक समय का फल देने का माध्यम बन जाता है।
विशेषता को सदैव कार्य में लगाने से दूसरो की विशेषता ही दिखाई देगी। विशेषता न देखने के कारण हमारी दूसरों के सामने हार हो जाती है। हर एक की विशेषता को स्मृति में रखे और उसके प्रति आस्थावान रहे तो उनकी बातों का भाव बदल जायेगा। जैसे दो मित्र अगर बात करते है और तीसरा अगर निन्दा करने आता है तो उसके भाव को बदल देता है। जैसे यदि कोई गाली दे तो उसे विशेषता के निश्चय से समझाये यह तो गाली नही है बल्कि स्पष्टीकरण है ।
जहां निश्चय होता है वहां शब्द का भाव जटिल से साधारण बात हो जाती है। हर एक की विशेषता को देखे तो अनेक बाते होते हुए भी केवल एक बात शुभ भाव का दर्शन होगा। किसी की निन्दा की बात सुनने के बजाय सुनाने वाले का रूप परिवर्तन कर दें। उसके अर्थ में भावना को परिवर्तन कर दे। हर एक की विशेषता का वर्णन करे यदि कोई यह कहे कि हमने तो ऐसा देखा भी है लेकिन हमारे मुख से ऐसा न निकले बल्कि उनकी विशेषता को सुनाकर उस बात को चैंज कर दे। यदि हम सदा हलके रहेंगे तो दिल में कोई बात होगी भी तो वह भी हल्की हो जायेगी।
किसी के अवगुण का वर्णन दूसरों के सामने नही करना चाहिए। क्योकि वर्णन करना बिमारी के जर्म्स को फैलाना है। किसी भी जर्म्स को खत्म करने के लिये पावरफुल दवाई डालना होता है। यदि कोई पुछे तो फलाना कैसा है तो दिल से निकले कि वह बहुत अच्छा है। हमारे सम्पर्क में अनेक भाव वाली आत्मा आती है लेकिन प्रयास ऐसा हो कि हमारे तरफ से शुभ भावनाये की बाते ले जाये।
शुभ भावना होने पर एक की लग्न होने पर विघ्न और व्यर्थ का स्टॉक खत्म हो जाता है। और खुशी का स्टाक जमा हो जाता है।