भोपाल,19 06.2021,Hamari Choupal
कोरोना संक्रमण की तीसरी लहर बच्चों के लिए खतरनाक मानी जा रही है, क्योंकि अभी बच्चों के वैकसीन नहीं लगी है। अगर तीसरी लहर आती है, तो बच्चों को बचाने की तैयारियां जिले के कस्बों के अस्पतालों में बिल्कुल नहीं है। यहां न डॉक्टर हैं, न पैरा मेडिकल स्टाफ है, न ही सफाई कर्मचारी या पैथालॉजी आदि की सुविधाएं हैं। खानापूर्ति के लिए इन अस्पतालों में चार-पांच पलंग अलग से बच्चों के लिए डाल दिए गए हैं और ऑक्सीजन के कंसंट्रेटर भिजवा दिए गए हैं। कुछ एक जगहों पर ऑक्सीजन प्लांट भी लगाए जा रहे हैं। बेड और ऑक्सीजन के भरोसे तीसरी लहर की तैयारी जिला अस्पताल कर रहे हैं। सरकार ने हाई कोर्ट में दिए हलफनामे में जो आंकड़े पेश किए हैं उसके मुताबिक प्रदेश में कोरोना की पहली और दूसरी लहर में 18 साल से कम उम्र के 54 हजार बच्चे संक्रमित हुए थे। बच्चों में संक्रमण दर 6.9 प्रतिशत रही। इनमें से 12 हजार से ज्यादा को अस्पतालों में भर्ती होना पड़ा। हैरानी वाली बात ये भी है कि प्रदेश के 52 में से सिर्फ 20 जिला अस्पतालों में ही बच्चों के लिए आईसीयू है। वहीं स्वास्थ्य केंद्रों पर फिलहाल इलाज के नाम पर सिर्फ चेकअप ही हो सकता है। ये तब जब मध्यप्रदेश में शिशु मृत्यु दर पूरे देश में सबसे ज्यादा है। यहां जन्म लेने वाले एक हजार में से 48 बच्चों की मौत हो जाती है। देवास जिला अस्पताल की बात करें, तो यहां तीसरी लहर को देखते हुए व्यवस्थाएं शुरू की गई हैं। इसके तहत अस्पताल में बेड तो बढ़ा दिए हैं, लेकिन डॉक्टरों की अलग से कोई व्यवस्था नहीं की गई है। वहीं जिले के ग्रामीण क्षेत्रों के हाल तो बेहद खराब हैं। यहां बच्चों के विशेषज्ञ डॉक्टर ही नहीं हैं।
खानापूर्ति के लिए देवास जिले में बच्चों के लिए दस बेड का आईसीयू तैयार कर लिया है। वहीं विधायक निधि से भी दस बेड का बच्चों का आईसीयू बना रहे हैं। जिला अस्पताल में वर्तमान में चार शिशु रोग विशेषज्ञ हैं। वहीं एसएनसीयू में तीन डॉक्टर पदस्थ हैं। बच्चों के इलाज की जिम्मेदारी इन्हीं डॉक्टरों के भरोसे है। अप्रैल माह में प्रदेशभर के कुछ जिलों में ऑक्सीजन प्लांट लगाने के लिए सरकार ने घोषणा की थी जिसमें सीहोर जिला मुख्यालय भी था। इसे अप्रैल माह में शुरू होने की बात कही जा रही थी। दो माह बीतने के बाद भी जिला अस्पताल में ऑक्सीजन प्लांट बनना शुरू नहीं हो सका है। बच्चों के लिए बनाया जा रहे 20 पीआईसीयू बेड की तैयारियां भी भगवान भरोसे हैं। जिला अस्पताल में तीसरी लहर के लिए सबसे महत्वपूर्ण शिशु रोग विशेषज्ञों की है। इनके दो पद स्वीकृत हैं, लेकिन पिछले चार साल से एक खाली पड़ा है। यहां पर भी एक ही शिशु रोग विशेषज्ञ हैं, जो वैक्सीनेशन का काम देख रही है। जिले की बात करें तो नौ शिशु रोग विशेषज्ञों के पद स्वीकृत हैं लेकिन वर्तमान में कार्यरत तीन ही हैं। छ: पद खाली पड़े हैं। प्रथम श्रेणी विशेषज्ञ के जिले के लिए 73 पद स्वीकृत हैं। इनमें से 56 कार्यरत हैं। अभी भी 16 डॉक्टरों के पद खाली हैं। इसी तरह चिकित्सा अधिकारी के 76 पद स्वीकृत हैं। इनमें से 65 कार्यरत हैं। 11 पद खाली पड़े हुए हैं। विदिशा के मेडिकल कॉलेज में तो बच्चों के लिए इजाज की पर्याप्त व्यवस्था है, लेकिन तहसीलदार स्तर के अस्पतालों के हाल बेहद खराब हैं। तहसील स्तर के अस्पतालों में बच्चों के विशेषज्ञ डॉक्टर ही नहीं हैं। तीसरी लहर की तैयारी के तहत विदिशा मेडिकल कॉलेज में 15 बेड नवजात शिशु एवं 15 बेड अन्य बच्चें के लिए आईसीयू तैयार हैं। कोरोना संक्रमण के बचाव के लिए लगभग 50 डॉक्टर 117 नर्स 40 सफाई कर्मचारी एवं 35 सिक्योरिटी गार्ड की व्यवस्था की गई है, लेकिन तहसील स्तर के अस्पतालों की स्थिति खराब है।
अनिल पुरोहित/अशफाक