देहरादून,HamariChoupal,06,05,2022
जस्टिस यूसी ध्यानी ने कहा कि किशोर न्याय अधिनियम 2015 और नियम 2016 को ठीक तरह से समझने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि कानून में 18 वर्ष तक के बच्चे को सजा या जेल का प्राविधान नहीं है, क्योंकि बच्चे की मंशा किसी को नुकसान पहुंचाने की नहीं होती है। ‘पाप से डरो, पापी से नहीं यह इस कानून का सिद्धांत है।
जस्टिस यूसी ध्यानी ने शुक्रवार को महिला कल्याण विभाग की ओर से सुद्धोवाला में आयोजित कार्यशाला में बतौर मुख्य वक्ता कही। कहा कि बाल कल्याण समिति और किशोर न्याय बोर्ड के प्रतिनिधियों को बच्चों से समानुभूति रखनी जरूरी है। अपराध के बाद कुछ व्यक्ति को घटना के समय जुवेनाइल बताते हैं, ऐसे में जन्म प्रमाण पत्र की ध्यान से जांच की जाए। बाल गृहों के बच्चों का समाज के साथ पुनर-समेकिकरण करने पर ध्यान दिया जाए। स्वास्थ्य विभाग से आए डॉ. नरेश कुमार ने कहा कि पोक्सो प्रकरणों में बाल कल्याण समिति और किशोर न्याय बोर्ड को संवेदनशीलता के साथ कार्य करने की आवश्यकता है।
मुख्य प्रशिक्षक के रूप में कैलाश सत्यार्थी फाउंडेशन नई दिल्ली से आए डॉ. संगीता गौड़ ने बाल गृहों का प्रबन्धन, बाल कल्याण समिति के कार्य व दायित्व, फिट पर्सन, फिट फैसिलिटी, गैर संस्थागत देखभाल- फोस्टर केअर, स्पॉन्सरशिप, दत्तक ग्रहण पर विस्तार से प्रकाश डाला। इस मौके पर चाइल्डलाइन की निदेशक अदिति पी कौर, सीओ मसूरी पल्लवी त्यागी, प्रो. ओमकार नाथ तिवारी, अंजना गुप्ता, प्रीति उपाध्याय, समीक्षा शर्मा मौजूद रहे।