देहरादून/कालसी, प्रतिनिधि हमारी चौपाल
उत्तराखंड के देहरादून जनपद अंतर्गत कालसी क्षेत्र के ढालीपुर, व्यासनेरी और बाढ़वाला इलाकों में टोंस और यमुना नदियों में खुलेआम अवैध खनन किया जा रहा है। जेसीबी मशीनें दिन-रात नदी के सीने को चीर रही हैं, और उपखनिजों का अवैध भंडारण धड़ल्ले से हो रहा है। सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि यह सब कुछ प्रशासन और पुलिस की आंखों के सामने हो रहा है, जिससे यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि क्या यह अवैध खनन प्रशासनिक मिलीभगत के बिना संभव है?
मुख्यमंत्री की सख़्त छवि के बावजूद बेलगाम खनन
यह स्थिति तब और भी गंभीर हो जाती है जब हम देखते हैं कि मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की मजबूत प्रशासनिक छवि और लगातार “जीरो टॉलरेंस” की नीति के बावजूद कालसी जैसे क्षेत्र में अवैध खनन धड़ल्ले से जारी है। मुख्यमंत्री के स्पष्ट निर्देशों और कानून व्यवस्था की सख्ती के दावों के बावजूद, यदि नदियों का सीना यूँ ही चीर दिया जा रहा है तो यह प्रशासनिक तंत्र की लापरवाही नहीं, बल्कि संदेहास्पद चुप्पी को दर्शाता है।
अदालतों के आदेशों की अवहेलना
सुप्रीम कोर्ट और उत्तराखंड हाईकोर्ट ने बार-बार यह स्पष्ट निर्देश दिए हैं कि बिना पर्यावरणीय अनुमति और NBWL (नेशनल बॉयोडायवर्सिटी वाइल्डलाइफ बोर्ड) की NOC के किसी भी इको सेंसिटिव ज़ोन में खनन नहीं हो सकता। बावजूद इसके, कालसी जैसे संवेदनशील क्षेत्र में खुलेआम खनन गतिविधियाँ न केवल कोर्ट के आदेशों की अवहेलना हैं, बल्कि यह राज्य सरकार की पर्यावरणीय प्रतिबद्धताओं पर भी प्रश्नचिन्ह खड़ा करती हैं।
यमुना आरती भवन समिति ने उठाई आवाज
यमुना आरती भवन समिति के अध्यक्ष श्री सुरेश रावत ने इस मुद्दे पर आवाज़ उठाते हुए स्पष्ट आरोप लगाए हैं कि ढालीपुर क्षेत्र में यमुना पुल से महज 300 मीटर की दूरी पर जेसीबी मशीनें अवैध खनन में लगी हुई हैं। उन्होंने प्रशासन से तत्काल हस्तक्षेप की मांग की है और कहा है कि यदि जल्द कार्रवाई नहीं हुई तो स्थानीय लोग सड़कों पर उतरने को मजबूर होंगे।
प्रशासन और पुलिस की चुप्पी संदेहास्पद
स्थानीय निवासियों ने बताया कि खनन माफिया रात-दिन जेसीबी मशीनों से उत्खनन कर रहे हैं, लेकिन अब तक न कोई छापेमारी हुई है, न ही कोई वाहन जब्त किया गया है। सवाल यह उठता है कि यदि यह कार्य अवैध है, तो संबंधित प्रशासनिक और पुलिस अधिकारी कार्रवाई क्यों नहीं कर रहे? क्या यह उनकी सहमति या संरक्षण के बिना संभव है?
पर्यावरण और लोगों को नुकसान
अवैध खनन से न केवल नदियों का प्राकृतिक प्रवाह और जैवविविधता प्रभावित हो रही है, बल्कि इसके कारण नदी तट के आसपास रहने वाले लोगों के लिए बाढ़ का खतरा भी बढ़ गया है। साथ ही, उपखनिजों का अवैध भंडारण भी जल-प्रदूषण और पारिस्थितिकी तंत्र के लिए गंभीर खतरा बन गया है।
मांगें:
1. तत्काल छापेमारी अभियान चलाकर खनन को रोका जाए।
2. ड्रोन और सैटेलाइट से निगरानी की व्यवस्था हो।
3. खनन माफियाओं पर FIR दर्ज कर उन्हें जेल भेजा जाए।
4. जवाबदेही तय की जाए—किसकी अनुमति से मशीनें चल रही हैं?
5. स्थानीय लोगों को पर्यावरण सुरक्षा में सहभागी बनाया जाए।
सुरेश रावत ने कहा कि प्रशासन और पुलिस को इस पूरे मामले में तुरंत संज्ञान लेना चाहिए। यदि वे इस आपराधिक गतिविधि को रोकने में विफल रहते हैं, तो यह समझा जाएगा कि वे खुद इस अवैध खनन के हिस्सेदार हैं।
मुख्यमंत्री की सख़्त नीति और प्रशासन पर पकड़ के बावजूद यदि नदियाँ खनन माफियाओं के हवाले हैं, तो यह केवल प्रशासनिक विफलता नहीं, बल्कि जन-आक्रोश का कारण बन सकता है।
> “नदी का सीना चीरने वालों को कब तक संरक्षण मिलता रहेगा?”