नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को केंद्र सरकार और राज्यों को स्पष्ट निर्देश दिया कि वन भूमि को तब तक कम नहीं किया जाएगा जब तक कि उसके बदले में पर्याप्त क्षतिपूर्ति वनीकरण नहीं किया जाता है। कोर्ट ने कहा, “हम वन क्षेत्र को कम करने की अनुमति नहीं देंगे। रैखिक परियोजनाओं के लिए किसी भी वन भूमि का उपयोग नहीं किया जा सकता। अगर किसी परियोजना के लिए वन भूमि का इस्तेमाल होता है, तो उतनी ही भूमि का वनीकरण करके क्षतिपूर्ति करनी होगी।”
यह फैसला 2023 में वन संरक्षण अधिनियम, 1980 में किए गए संशोधनों को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान आया है। याचिकाकर्ताओं का तर्क था कि संशोधनों के जरिए वन की परिभाषा को संकुचित कर दिया गया है। कोर्ट ने कहा कि ‘वन’ शब्द का अर्थ व्यापक होगा और इसमें 1.97 लाख वर्ग किलोमीटर की अघोषित वन भूमि भी शामिल होगी। कोर्ट ने सरकार को 1996 के तमिलनाडु गोदावर्मन थिरुमुलपड मामले के फैसले के अनुसार ‘वन’ शब्द के शब्दकोश में दिए गए अर्थ पर ही अमल करने का निर्देश दिया है।
कोर्ट ने स्पष्ट किया कि “सरकारी रिकॉर्ड” में दर्ज वन भूमि के अलावा, वन जैसे क्षेत्र, अवर्गीकृत और सामुदायिक वन भूमि भी वन की श्रेणी में आएंगी। पर्यावरण मंत्रालय द्वारा 29 नवंबर, 2023 को जारी अधिसूचना के नियम 16 के अनुसार, राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को सभी वन भूमि का एक समेकित रिकॉर्ड तैयार करना होगा, जिसमें एक वर्ष का समय लगेगा। यह कदम पारिस्थितिक असंतुलन को रोकने के लिए उठाया गया है।