रेनु शर्मा
हरिद्वार( हमारी चौपाल )परिषद पर उठे प्रश्नों ने खोल दिए पुराने निर्णयों के द्वार
हरिद्वार/उज्जैन
देश और विश्व की आस्था को दिशा देने वाला हरिद्वार कुंभ 2027 अब कुछ ही वर्षों की दूरी पर है। केंद्र सरकार से लेकर उत्तराखंड सरकार तक सभी संवैधानिक संस्थाएँ और प्रशासनिक विभाग इसकी तैयारियों में जुटे हुए हैं। अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद, जो साधु-संत समाज की सर्वोच्च प्रतिनिधि संस्था मानी जाती है, वह भी इस बार का कुंभ “भव्य और दिव्य” बनाने के संकल्प में सरकार के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल रही है।
परिषद के अध्यक्ष श्रीमहंत रवींद्र पुरी महाराज, जो स्वयं माँ मनसा देवी ट्रस्ट के अध्यक्ष भी हैं, और महामंत्री श्रीमहंत हरि गिरि महाराज (प्रमुखः जूना अखाड़ा) लगातार विभिन्न समितियों की बैठकों में भाग लेकर दिशा निर्देश दे रहे हैं।
इसी बीच अचानक श्री पंचायती बड़ा उदासीन अखाड़े के वर्तमान पदाधिकारी कोठारी महंत राघवेंद्र दास, महामंडलेश्वर रूपिंदर प्रकाश और महंत सूयाँश मुनि-द्वारा अखाड़ा परिषद की मान्यता, वैधता और उसके निर्णयों पर गंभीर प्रश्न उठाए जाने से पूरा संत समाज मंथन की स्थिति में पहुंच गया है।
परिषद पर प्रश्न उठाने वालों पर ही गंभीर प्रश्न ‘निर्णय बदले या
मंशा?’
घटनाक्रम का संवेदनशील पक्ष यह है कि आज जो पदाधिकारी अखाड़ा परिषद को “औचित्यहीन” और उसके वर्तमान नेतृत्व को “अवैध” बता रहे हैं-
यही वही पदाधिकारी हैं जिन्होंने कुछ समय पहले अखाड़ा परिषद को लिखित आवेदन देकर अपने अखाड़े के तीन वरिष्ठ महंतों पर कार्रवाई की मांग की थी।
उनमें शामिल थे-
महंत रघु मुनि महाराज
महंत अग्रदास महाराज
महंत दामोदर दास महाराज
तत्कालीन आवेदन में इन महंतों पर “अखाड़े के विरुद्ध कार्य करने” जैसा गंभीर आरोप लगाते हुए उन्हें अखाड़े से निष्कासित करने की मांग की गई थी।
अखाड़ा परिषद ने इस आवेदन
को मानते हुए इन्हें निष्कासित करने का प्रस्ताव पारित किया था। परिषद द्वारा पारित प्रस्ताव उस समय अखाड़ा परंपरा के अनुसार मान्य माना गया, क्योंकि आवेदन स्वयं उसी अखाड़े के वर्तमान पदाधिकारी दे रहे थे।
लेकिन अब जब वही पदाधिकारी अखाड़ा परिषद को ही “फर्जी”, “औचित्यहीन” और “अवैध” बता रहे हैं तो स्वाभाविक रूप से देशभर के साधु-संत यह प्रश्न उठा रहे हैं:
“यदि परिषद ही गलत है तो फिर इस परिषद द्वारा इन्हीं लोगों के कहने पर रघु मुनि महाराज सहित अन्य तीन महंतों के निष्कासन को कैसे सही माना जाए?”
क्या पूर्व निष्कासन स्वतः शून्य हो जाता है?
अखाड़ा परंपरा में निर्णय सामूहिक होते हैं। लेकिन आज की स्थिति यह संकेत दे रही है कि-
यदि परिषद की वैधता पर प्रश्न लगते हैं, यदि परिषद को फैसले लेने योग्य संस्था ही नहीं माना जा रहा,
और यदि उसके अध्यक्ष/महामंत्री को ही गलत ठहराया जा रहा है, तो ऐसे में उनके द्वारा पूर्व में पारित प्रस्तावों का भी औचित्य स्वतः ही संदिग्ध हो जाता है।
यह मत तेजी से उभर रहा है कि रघु मुनि महाराज, अग्रदास महाराज और दामोदर दास महाराज पूर्ववत् अपने पद व सम्मान के अधिकारी हैं, और परिषद का निरस्त निर्णय उन्हें प्रभावित नहीं करता।
यह विचार इसलिए भी प्रमुखता पा राहा है क्योंकि यह निर्णय उन्हीं लोगों द्वारा कराए जाने का आरोप है, जो आज स्वयं परिषद की निंदा में लगे हुए हैं।
सनातन मर्यादा में निर्णय ‘कलह नहीं, समाधान’
सनातन धर्म में अखाड़ों की संरचना
केवल प्रशासनिक नहीं, बल्कि आध्यात्मिक
स्वरूप रखती है। उनका प्रत्येक निर्णय-साधु समाज की गरिमा, परंपरा की पवित्रता, और धर्म की सेवा को सर्वोपरि मानकर लिया जाना चाहिए। कुंभ मेला एक महायज्ञ है-और यज्ञ में एकता, अनुशासन, मर्यादा और शुचिता सबसे आवश्यक तत्त्व हैं। ऐसे समय में जब लाखों-करोड़ों श्रद्धालु कुंभ के दिव्य आयोजन को प्रतीक्षा कर रहे हैं, अखाड़ों में किसी भी प्रकार का विवाद स्वयं कुंभकी छवि को प्रभावित कर सकता है।
सरकार और अखाड़ों का समन्वय – कुंभ की भव्यता का आधार
उत्तराखंड के मुख्यमंत्री श्री पुष्कर सिंह धामी लगातार कुंभ की तैयारियों का निरीक्षण कर रहे हैं। केंद्र सरकार भी इस बार डिजिटल, सुरक्षित, स्वच्छ और सुव्यवस्थित कुंभ की परिकल्पना पर काम कर रही है।
अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष श्रीमहंत रवींद्र पुरी महाराज एवं महामंत्री श्रीमहंत हरि गिरि महाराज ने स्पष्ट कहा हैः
“यह कुंभ देश और दुनिया को सनातन धर्म की उज्वल परंपरा का दर्शन कराएगा। भव्य कुंभ होगा।”
ऐसे में परिषद के भीतर से उठी आवाजें न केवल अखाड़ों, बल्कि पूरे देश के साधु-संतों और भक्तों को सोचने पर विवश कर रही हैं।
संत समाज में उठ रहा बड़ा प्रश्न ‘अब किसे माना जाए सही?’
जब परिषद को गलत बताया जा हा है, परिषद के निर्णयों की वैधता पर प्रान लग रहे हैं, और निर्णय करवाने वाले ही निर्णयों को चुनौती दे रहे हैं, तो पूरा
संत समाज यह पूछने को मजबूर है कि-क्या पूर्व में किए गए निष्कासन व्यक्तिगत मतभेदों पर आधारित थे?
क्या परिषद को भ्रमित करके निर्णय करवाया गया? और यदि ऐसा था, तो क्या अब निष्कासित महंतों का सम्मान बहाल किया जाना चाहिए?
संत समाज की बढ़ती अपेक्षा ‘सत्य सामने आए’
संत समाज की प्रतिष्ठा और अखाड़ों की गरिमा केवल निर्णयों में नहीं, बल्कि निर्णयों की पारदर्शिता में निहित है।
आज की स्थिति यह संदेश दे रही है कि अखाड़ा परिषद को संपूर्ण साधु समाज के सामने इस पूरे विषय पर स्पष्ट, पारदर्शी और तथ्य आधारित वक्तव्य देना चाहिए।
कुंभ की पवित्रता सबसे ऊपर
जब विश्वभर की निगाहें 2027 के हरिद्वार कुंभ पर हैं तब आवश्यक है कि- अखाड़ों में आपसी संवाद बढ़े, संदेहों का निवारण किया जाए, विवादों का समाधान धर्मसम्मत मार्ग से निकले, और पूर्व निर्णयों की निष्पक्ष पुनर्समीक्षा की जाए।
संत माहापुरुषों की यह परंपरा रही है कि मतभेदों को विरोध नहीं, बल्कि मंधन के माध्यम से सुलझाया जाता है।
‘रघु मुनि महाराज सहित सभी महंतों का सम्मान पूर्ववत् माना जाए’
सभी तथ्यों का समन्वय यही संकेत देता है कि यदि परिषद की वैधता को चुनौती दी गई है, तो परिषद द्वारा किए गए निष्कासन के निर्णय भी धर्मसम्मत समीक्षा के योग्य हो जाते हैं। और यह संत समाज की गरिमा के अनुरूप होगा कि पूर्व में निष्कासित महंतों को उनका सम्मान तत्काल प्रभाव से पूर्ववत् माना जाए और उनकी अखाड़े में पुनस्र्थापना को वैध दजों मिले।
यह कदम न केवल अखाड़ों की एकता को मजबूत करेगा, बल्कि यह संदेश भी देगा कि- सनातन परंपरा में न्याय, सत्य और धर्म ही सर्वोपरि हैं।
