HamariChoupal,06,09,2025
देहरादून(आरएनएस)। खराब एसी देने के मामले में हरिद्वार के ज्वालापुर, शिव विहार निवासी मोहन बाला को 12 साल बाद न्याय मिला। जिला उपभोक्ता आयोग ने तो उनकी शिकायत यह कहकर खारिज कर दी थी उनके पास सुनवाई का क्षेत्राधिकार ही नहीं है। मोहन बाला राज्य उपभोक्ता आयोग में पहुंची। आयोग ने वस्तुस्थिति जांचने के लिए एडवोकेट जनरल की तैनाती की, जो मोहन बाला के घर खराब पड़े एसी देखकर आए। इसके बाद आयोग ने एसी कंपनी और सेवा प्रदाता को घर में नए एसी लगाने के आदेश दिए। मोहन बाला ने अगस्त, 2013 को सिम्फनी कंपनी लिमिटेड से ₹7,60,329 में पांच एयर कूलर मशीनें खरीदीं। इन्हें लगाने का तीन लाख रुपये का भी भुगतान कर दिया गया। मेसर्स वेदर मेकर्स को एसी लगाने थे। लेकिन कुछ एसी खराब थे और एक खराब एसी को वापस लेकर दो एसी दे दिए थे। लेकिन खराब एसी वापस लेने को तैयार नहीं हुए। मोहन बाला की शिकायत को जिला उपभोक्ता आयोग ने यह कहकर खारिज कर दिया कि उसके पास मामले की सुनवाई करने का क्षेत्रीय क्षेत्राधिकार नहीं है। मोहन बाला की अपील पर राज्य उपभोक्ता आयोग ने यह स्पष्ट किया कि उपभोक्ता हरिद्वार से है, इसलिए जिला आयोग को सुनवाई का अधिकार है और शिकायत को खारिज करने में गलती हुई। आयोग की ओर से तैनात किए गए एडवोकेट कमिश्नर ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि पांच मशीनें मोहन बाला के घर में बिना स्थापित किए पड़ी हुई हैं और इनमें चार में मोटर भी नहीं लगी है। राज्य उपभोक्ता आयोग की अध्यक्ष कुमकुम रानी और सदस्य बीएस मनराल ने एसी कंपनी और सेवा प्रदाता दोनों की सेवा में कमी मानते हुए नई मशीनें लगाने के आदेश दिए हैं। साथ ही शिकायतकर्ता की मानसिक पीड़ा और परेशानी के लिए एक लाख रुपये के साथ ही 50 हजार रुपये का भुगतान करने के आदेश भी दिए हैं।
केस न० 2 :- जिला उपभोक्ता आयोग नैनीताल के फैसले के खिलाफ की गई अपील को राज्य उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग ने खारिज कर दिया। बीमा कंपनी ने तर्क दिया था कि स्वास्थ्य बीमा लेते वक्त गंभीर बीमारी छुपाई गई, ऐसे में वह बीमा क्लेम नहीं दे सकते। राज्य आयोग ने साफ किया कि बीमारी छुपाने के तर्क से कंपनी अपने दायित्व से बच नहीं सकती है। साथ ही कहा कि एक दिन के लिए किसी के अस्पताल में भर्ती होने से यह साबित नहीं हो जाता कि बीमारी गंभीर है। तल्लीताल, नैनीताल निवासी चंदा शाह ने रिलायंस जनरल इंश्योरेंस कंपनी से 2019 में ट्रैवल इंश्योरेंस पॉलिसी खरीदने एक दिन बाद लंदन चली गईं। जहां तबीयत खराब होने पर अस्पताल में भर्ती होना पड़ा। इसका खर्च ₹1.22 लाख रुपये आया। बीमा कंपनी से क्लेम खारिज होने पर चंदा शाह ने जिला उपभोक्ता आयोग में शिकायत की और उनके हक में फैसला आया। इसके खिलाफ इंश्योरेंस कंपनी ने राज्य आयोग में अपील की। राज्य आयोग की अध्यक्ष कुमकुम रानी ने अपील पर फैसला देते हुए कहा कि बीमा कंपनी यह साबित करने में असफल रही कि चंदा शाह पुराने हृदय रोग से पीड़ित थीं और उनका नियमित इलाज चल रहा था। साथ ही अस्पताल में सिर्फ एक दिन ही भर्ती किया गया था, इससे साफ है कि उनकी बीमारी बहुत गंभीर नहीं थी। आयोग ने बीमा दावा खारिज करने को सेवा में कमी पाया। आयोग ने बीमा कंपनी का दावा खारिज करना “सेवा में कमी” थी और इसका कोई औचित्य नहीं था। आयोग ने शिकायत दर्ज करने की तिथि से आठ प्रतिशत ब्याज के साथ इलाज पर हुए खर्च की रकम चुकाने के आदेश दिए। साथ ही जिला आयोग के लगाए 50 हजार रुपये जुर्माने को रद्द कर दिया। हालांकि मुकदमे के खर्च के तौर पर बीमा कंपनी चंदा शाह को 10 हजार रुपये देगी।
केस न० 3 :- बिजली के हाई वोल्टेज से मशीन जलने पर बीमा कंपनी को मिली राहत हल्द्वानी निवासी डॉक्टर ने बीमा कंपनी पर ठोका था 3.57 लाख का दावा देहरादून(आरएनएस)। हल्द्वानी निवासी डॉ.हरा प्रसाद ने अपने फिजियोथैरेपी और पुनर्वास केंद्र में एक ऑप्टोन प्रो लेजर मशीन एसबीआई की वित्तीय सहायता से खरीदी थी। बैंक ने एसबीआई जनरल इंश्योरेंस कंपनी से ₹10 लाख की बिज़नेस पैकेज इंश्योरेंस पॉलिसी ली थी। इस बीच हाई वोल्टेज के कारण मशीन जल गई। इंश्योरेंस कंपनी ने 3.57 लाख रुपये का क्लेम खारिज कर दिया। जिला आयोग ने भी डॉ.हरा प्रसाद की शिकायत खारिज कर दी तो राज्य आयोग में अपील की। राज्य आयोग ने निचले आयोग के फैसे को सही ठहराते हुए अपील खारिज कर दी। आयोग ने फैसले में कहा कि बिज़नेस पैकेज इंश्योरेंस पॉलिसी में मशीन का बीमा व्यावसायिक उद्देश्य के लिए किया गया था। ऐसे में डॉ.हरा प्रसाद उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 की परिभाषा के अनुसार उपभोक्ता नहीं हैं। साथ ही पॉलिसी बिजली सप्लाई में उतार-चढ़ाव या शॉर्ट सर्किट से होने वाले नुकसान को भी कवर नहीं करती है।
