HamariChoupal,17,08,2025
भारत के आदिवासी समुदाय, जो कि कुल जनसंख्या का 8.6% हैं, राष्ट्र की सांस्कृतिक विरासत के मूल तत्व का प्रतिनिधित्व करते हैं। फिर भी, इन समुदायों के कई व्यक्ति जानकारी के अभाव में सिकल सेल नामक अनुवांशिक बीमारी से जूझ रहे हैं। दशकों से इस बीमारी ने उनके स्वास्थ्य के साथ-साथ सामाजिक और आर्थिक विकास पर भी गहरा असर डाला है, और यह बीमारी भौगोलिक अलगाव एवं स्वास्थ्य सेवाओं तक सीमित पहुँच के कारण और भी जटिल हो गई है। इस गंभीर आवश्यकता को पहचानते हुए, भारत सरकार ने माननीय प्रधानमंत्री के दूरदर्शी नेतृत्व में जुलाई 2023 में राष्ट्रीय सिकल सेल एनीमिया उन्मूलन मिशन की शुरुआत की। इस मौलिक पहल का उद्देश्य न केवल सिकल सेल के आनुवांशिक संचरण का उन्मूलन करना है, बल्कि इस रोग से प्रभावित लाखों लोगों के सम्मान और स्वास्थ्य को भी बहाल करना है।
सिकल सेल रोग में लाल रक्त कोशिकाओं का आकार बदल जाता है, जिससे उनकी ऑक्सीजन वहन करने की क्षमता कम हो जाती है और धीरे-धीरे गंभीर स्वास्थ्य संबंधी जटिलताएं उत्पन्न होने लगती हैं। आदिवासी जनसंख्या के बीच इसका प्रभाव विशेष रूप से गहरा है, क्योंकि वे इस आनुवंशिक बीमारी से असमान रूप से प्रभावित होते हैं। ग्लोबल बर्डन ऑफ डिजीज एस्टिमेट्स (2021) रिपोर्ट के अनुसार, भारत में प्रति वर्ष अनुमानित 82,500 बच्चों का जन्म सिकल सेल रोग के साथ होता है।
राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति 2017 ने इस संकट से निपटने के लिए आधार तैयार किया और इसकी विशिष्ट स्वास्थ्य आवश्यकताओं पर ज़ोर इसी के आधार पर, केंद्रीय बजट 2023 में NSCAEM की घोषणा की गई, जिसमें वित्त वर्ष 2025-2026 तक 40 वर्ष से कम आयु के 7 करोड़ व्यक्तियों की मिशन मोड में जाँच करने का लक्ष्य रखा गया। कार्य स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के तहत क्रियान्वित किया गया, जिससे यह विश्व स्तर पर सबसे बड़े जनसंख्या-आधारित आनुवंशिक जाँच कार्यक्रमों में से एक बन गया है। इस मिशन का उद्देश्य 2047 तक SCD के आनुवंशिक संचरण को समाप्त करना और पहले से ही इससे पीड़ित लोगों को व्यापक देखभाल प्रदान करना भी है।
पहले दो वर्षों में, स्वास्थ्य मंत्रालय और राज्यों के संयुक्त प्रयासों से इस मिशन के अंतर्गत उल्लेखनीय परिणाम प्राप्त हुए हैं। 31 जुलाई 2025 तक, 17 उच्च-व्यापकता वाले राज्यों के 300 से अधिक जिलों में 6.07 करोड़ से अधिक व्यक्तियों की जांच की जा चुकी है। जांच किए गए व्यक्तियों में से 2.16 लाख रोगग्रस्त पाए गए, जबकि 16.92 लाख को वाहक के रूप में पहचाना गया। विश्लेषण से यह स्पष्ट होता है कि 95% मामले केवल पाँच राज्यों—ओडिशा, मध्य प्रदेश, गुजरात, छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र—में केंद्रित हैं।
छत्तीसगढ़ के अंबिकापुर के नवापारा की एक युवा आदिवासी लड़की मीना की कहानी इस मिशन के सकारात्मक प्रभाव का प्रतीक है। जांच अभियान के दौरान नैदानिक परीक्षण किए जाने पर, मीना को निकट के एक उप-स्वास्थ्य केंद्र में नामांकित किया गया। प्रशिक्षित सामुदायिक स्वास्थ्य अधिकारी (सीएचओ), एएनएम और आशा कार्यकर्ता ने यह सुनिश्चित किया कि उसे निःशुल्क हाइड्रोक्सीयूरिया औषधि समय पर मिलती रहे, जिससे सिकल सेल रोग के लक्षणों में उल्लेखनीय कमी आई। आज, मीना पहले से कहीं अधिक स्वस्थ है और अपने समुदाय में आनुवंशिक रोगों के परामर्श में भी सक्रिय भूमिका निभा रही है।
स्क्रीनिंग प्रयासों में तेज़ी लाने के लिए, भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (ICMR) द्वारा अनुमोदित पॉइंट-ऑफ-केयर (PoC) डायग्नोस्टिक उपकरणों को लगाया गया है। शुरुआत में इनकी संख्या केवल तीन तक सीमित थी, जो अब बढ़कर 30 से अधिक हो गई है। इससे प्रति किट लागत ₹100 से घटकर ₹28 हो गई है। इस पहल ने SCD के लिए लागत-प्रभावी और कुशल डायग्नोस्टिक क्षमताएँ सुनिश्चित की हैं।
इस मिशन का कार्यान्वयन केवल स्क्रीनिंग पर केंद्रित नहीं है; यह एससीडी से पीड़ित व्यक्तियों की समग्र देखभाल को भी प्राथमिकता देता है। मिशन के अंतर्गत प्रबंधन हस्तक्षेपों में निःशुल्क स्वास्थ्य सेवाएँ, आवश्यक दवाओं और निदान तक पहुँच शामिल है। सिकल सेल रोग के प्रबंधन के लिए एक प्रमुख दवा, हाइड्रॉक्सीयूरिया, को राष्ट्रीय आवश्यक औषधि सूची (ईडीएल) में शामिल किया गया है और अब यह आयुष्मान आरोग्य मंदिर उप-स्वास्थ्य केंद्रों में उपलब्ध है, जिससे अंतिम व्यक्ति तक इसकी पहुँच सुनिश्चित होती है।
यह मिशन सिकल सेल रोग के उन्मूलन की प्रमुख रणनीतियों के रूप में आनुवंशिक परामर्श और जन जागरूकता पर भी ज़ोर देता है। अब तक 2.62 करोड़ से अधिक आनुवंशिक स्टेटस कार्ड वितरित किए जा चुके हैं, जिससे लोगों को उपयोगी स्वास्थ्य जानकारी प्राप्त हुई है। ये कार्ड परामर्श और उचित निर्णय लेने का एक प्रभावी माध्यम बन गए हैं, जो परिवारों को ऐसे विकल्प चुनने में मदद करते हैं जिनसे आनुवंशिक संचरण का जोखिम कम हो सकता है।
स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा निर्धारित दिशानिर्देशों और जनजातीय कार्य मंत्रालय से प्राप्त वित्तीय सहायता के आधार पर, पंद्रह स्वास्थ्य परिचर्या संस्थानों/मेडिकल कॉलेजों को उत्कृष्टता केंद्र के रूप में स्थापित करने के लिए चुना गया है। ये संस्थान प्रसवपूर्व निदान और गंभीर सिकल सेल रोग जटिलताओं के प्रबंधन पर ध्यान केंद्रित करते हैं, जिससे जोखिम वाले परिवारों को विशेष परिचर्या सुनिश्चित की जाती है। इसके अतिरिक्त, अक्टूबर 2024 में आयोजित एक राष्ट्रीय स्तर के प्रशिक्षक प्रशिक्षण कार्यक्रम के माध्यम से स्वास्थ्य सेवा पेशेवरों को सिकल सेल रोग प्रबंधन की जटिलताओं का प्रभावी ढंग से समाधान करने के लिए आवश्यक कौशल प्रदान किए गए हैं।
मिशन की सफलता “Whole-of-Government” के दृष्टिकोण पर आधारित है, जिसके तहत स्वास्थ्य मंत्रालय, जनजातीय कार्य मंत्रालय, सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय, शिक्षा मंत्रालय तथा महिला एवं बाल विकास मंत्रालय को भी शामिल किया गया है। यह अंतर-मंत्रालयी समन्वय जनजातीय स्वास्थ्य के सामाजिक-सांस्कृतिक और भौगोलिक आयामों का समाधान करते हुए समग्र कार्यान्वयन सुनिश्चित करता है। स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के अंतर्गत स्वास्थ्य अनुसंधान विभाग द्वारा समर्थित अनुसंधान-आधारित गतिविधियों ने इस मिशन की लागत-प्रभावशीलता और रोगी परिणामों में उल्लेखनीय सुधार किया है।
[13:44, 8/17/2025] RNS ,Anil Dat Sharma PI: Continue part
हालांकि इस मिशन की अब तक की उपलब्धियाँ बेहद सराहनीय हैं, स्वास्थ्य मंत्रालय अब मिशन की दीर्घकालिक प्राथमिकताओं को आगे बढ़ाने पर केंद्रित है। अब मिशन का तात्कालिक ध्यान आनुवंशिक परामर्श, जन जागरूकता अभियानों और आनुवंशिक स्टेटस कार्डों के वितरण के विस्तार पर होगा। सामुदायिक स्तर के मंचों का प्रभावी उपयोग यह सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण होगा कि प्रत्येक वाहक और रोगग्रस्त व्यक्ति को आवश्यक परिचर्या और सहायता प्राप्त हो। उन्नत अनुसंधान प्रयास मिशन की कार्यप्रणाली को और अधिक प्रभावी एवं सशक्त बनाने में सहायक सिद्ध होंगे।
इस मिशन की असली भावना इसके आदर्श “हमारे संघर्षकर्ताओं को साथ, हमारे उत्तरजीवियों को संबल, और हमारे योद्धाओं को समर्थन” में निहित है। राजनीतिक इच्छाशक्ति, वैज्ञानिक नवाचार और जमीनी स्तर पर कार्यान्वयन के संयोजन से भारत सिकल सेल एनीमिया को समाप्त करने और लाखों लोगों के जीवन में बदलाव लाने के लिए तत्पर है।
जैसे-जैसे भारत वर्ष 2047 तक सिकल सेल रोग उन्मूलन के अपने लक्ष्य की ओर आत्मविश्वास से आगे बढ़ रहा है, सिकल सेल एनीमिया उन्मूलन मिशन इसमें आशा की किरण बनकर उभरा है। यह इस बात का द्योतक है कि जब सरकार, स्वास्थ्य सेवा पेशेवर और समुदाय समान हित के लिए एकजुट होते हैं, तो क्या कुछ प्राप्त नहीं किया जा सकता है। हम सब मिलकर यह सुनिश्चित करेंगे कि किसी भी व्यक्ति को इस रोग के कारण होने वाले दर्द और पीड़ा को न सहना पड़े।
सिकल सेल एनीमिया के विरुद्ध भारत की लड़ाई सिर्फ़ एक आनुवंशिक रोग से लड़ने तक सीमित नहीं है—यह हाशिए पर रहने वाले हमारे देश के समूहों के लिए समानता, सम्मान और स्वास्थ्य के प्रति प्रतिबद्धता है। मीना जैसी महिलाओं के अनुभवी मार्गदर्शन में, यह मिशन लक्षित स्वास्थ्य सेवा पहलों की परिवर्तनकारी शक्ति का प्रमाण है, जो जनजातीय स्वास्थ्य चुनौतियों के समाधान में एक ऐतिहासिक उपलब्धि है।
आइए, इस अभूतपूर्व प्रयास का जश्न मनाएं और एक स्वस्थ, अधिक समावेशी भारत के निर्माण के अपने संकल्प को दोहराएं।