अनुराग गुप्ता
उत्तराखंड के दुर्गम पर्वतीय इलाकों में जीवन और प्रकृति के बीच संघर्ष कोई नई बात नहीं है। राज्य में अक्सर भूस्खलन, हिमस्खलन और प्राकृतिक आपदाएं बड़ी चुनौती बनकर सामने आती हैं। हाल ही में चमोली जिले के माणा क्षेत्र में हुए भीषण हिमस्खलन ने इस कठिन सच्चाई को एक बार फिर उजागर कर दिया। इस हादसे में 55 श्रमिक प्रभावित हुए, जिनमें से 47 को सुरक्षित निकाल लिया गया है, जबकि शेष श्रमिकों को निकालने के लिए प्रशासन पूरी ताकत से जुटा हुआ है।
धामी सरकार की तत्परता और संवेदनशीलता
उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने इस घटना के बाद जिस तेजी और संवेदनशीलता का परिचय दिया, वह उनकी कुशल नेतृत्व क्षमता का प्रमाण है। उन्होंने स्वयं राहत एवं बचाव अभियान की निगरानी की, प्रभावित क्षेत्र का हवाई सर्वेक्षण किया और अधिकारियों को हरसंभव सहायता प्रदान करने के निर्देश दिए। मुख्यमंत्री धामी पहले भी कई आपदाओं में इसी तत्परता के साथ काम कर चुके हैं, और हाल ही में सिल्क्यारा टनल हादसे के दौरान उनकी कार्यशैली ने पूरे देश में उनकी सराहना करवाई थी। उस समय भी उन्होंने दिन-रात राहत एवं बचाव अभियान पर नज़र रखी थी और यह सुनिश्चित किया था कि हर एक मजदूर को सुरक्षित बाहर निकाला जाए।
इस बार भी, माणा क्षेत्र में हुए हिमस्खलन के बाद धामी जी ने बिना देर किए राज्य आपातकालीन परिचालन केंद्र को सक्रिय किया, वायुसेना, एनडीआरएफ, एसडीआरएफ, पुलिस और स्वास्थ्य विभाग को तत्काल बचाव अभियान में लगाने का निर्देश दिया। उनके प्रयासों का ही परिणाम है कि अब तक अधिकांश श्रमिकों को सुरक्षित निकाला जा चुका है और बचाव कार्य तेजी से आगे बढ़ रहा है।
प्रधानमंत्री मोदी का भरोसा : केंद्र और राज्य सरकार का समन्वय
इस संकटपूर्ण समय में देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी से फोन पर वार्ता कर हादसे की जानकारी ली और हरसंभव सहायता प्रदान करने का आश्वासन दिया। यह केंद्र और राज्य सरकार के बीच मजबूत समन्वय को दर्शाता है, जो उत्तराखंड जैसे संवेदनशील क्षेत्र के लिए अत्यंत आवश्यक है। प्रधानमंत्री मोदी ने सिल्क्यारा टनल हादसे के समय भी उत्तराखंड सरकार को पूरा समर्थन दिया था और इस बार भी उनकी तत्परता से यह साफ हो जाता है कि उत्तराखंड को विकास और सुरक्षा दोनों के लिए केंद्र का पूरा सहयोग प्राप्त है।
आपदा प्रबंधन का एक नया मानदंड
चमोली हादसे में राज्य सरकार और प्रशासन की त्वरित कार्रवाई ने आपदा प्रबंधन के एक नए मानदंड को स्थापित किया है। मुख्यमंत्री धामी के नेतृत्व में उत्तराखंड सरकार अब एक प्रो-एक्टिव डिजास्टर मैनेजमेंट मॉडल की ओर बढ़ रही है, जहां आपदाओं के समय केवल प्रतिक्रिया देने के बजाय, पूर्व नियोजन और त्वरित क्रियान्वयन पर ज़ोर दिया जा रहा है।
इस हादसे से कई महत्वपूर्ण सबक मिलते हैं:
1. पर्वतीय क्षेत्रों में कार्यरत श्रमिकों की सुरक्षा के लिए अधिक पुख्ता इंतज़ाम किए जाएं।
2. मौसम की सटीक भविष्यवाणी और चेतावनी प्रणाली को और मजबूत बनाया जाए।
3. हिमस्खलन संभावित क्षेत्रों में विशेष प्रशिक्षण और सुरक्षात्मक उपाय किए जाएं।
4. बचाव दलों की पहुंच में तेजी लाने के लिए अधिक संसाधन और उपकरण उपलब्ध कराए जाएं।
उत्तराखंड के लिए एक नया दृष्टिकोण
चमोली हिमस्खलन हादसे में जिस तरह से राहत एवं बचाव कार्यों को अंजाम दिया जा रहा है, वह दर्शाता है कि उत्तराखंड अब आपदा प्रबंधन के प्रति कहीं अधिक सजग और सक्षम हो चुका है। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की तत्परता, संवेदनशीलता और नेतृत्व कौशल इस मुश्किल घड़ी में उत्तराखंड के लिए संजीवनी साबित हुए हैं। वहीं, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का समर्थन यह दिखाता है कि राज्य और केंद्र सरकार मिलकर उत्तराखंड को सुरक्षित और आपदारहित बनाने के लिए प्रतिबद्ध हैं।
यह हादसा निश्चित रूप से एक त्रासदी है, लेकिन यह भी स्पष्ट करता है कि जब शासन में कुशल नेतृत्व, तत्पर प्रशासन और केंद्र का मजबूत सहयोग हो, तो कोई भी चुनौती असंभव नहीं होती। उत्तराखंड अपने पर्वतीय जीवन की कठिनाइयों से जूझते हुए भी आगे बढ़ेगा और धामी जी जैसे मजबूत नेतृत्व के कारण आपदाओं से लड़ने की इसकी क्षमता दिन-ब-दिन और अधिक विकसित होती जाएगी।
