HamariChoupal,23,02,2025
देहरादून, जो कभी अपनी प्राकृतिक सुंदरता और शांत वातावरण के लिए जाना जाता था, आज अवैध निर्माण और प्रशासनिक भ्रष्टाचार का केंद्र बन चुका है। शहर में एमडीडीए के चंद भृष्ट अधिकारियों और भूमाफियाओं के गठजोड़ ने कानून-व्यवस्था की धज्जियां उड़ा दी हैं। न नियमों की परवाह है, न जनता की सुरक्षा की चिंता—बस पैसे और राजनीतिक संरक्षण के बल पर इमारतें खड़ी की जा रही हैं।
धामावाला: भ्रष्टाचार का जीता-जागता उदाहरण
धामावाला के निवासियों ने लगातार प्रशासन से गुहार लगाई, लेकिन नतीजा कुछ नहीं निकला। मनचंदा स्वीट्स के पास 12 फीट की गली में खड़ी की गई चार मंजिला इमारत को लेकर वाद संख्या 1021/S-10/2019 के तहत कई बार ध्वस्तीकरण के आदेश जारी किए गए। लेकिन यह आदेश केवल कागजों तक सीमित रहे।
इस इमारत के मालिक गुलाटी को प्रशासन का कोई डर नहीं, क्योंकि उसे एमडीडीए के कुछ भ्रष्ट अधिकारियों और राजनीतिक संरक्षण का पूरा सहयोग मिला हुआ है। जब भी कार्रवाई की बात उठती है, तो फाइल 2023 से कमिश्नर के दफ्तर में अटकी होने की बात कहकर जनता को गुमराह कर दिया जाता है।
कांवली रोड: 6 फीट की गलियों में कॉम्प्लेक्स, आखिर कैसे?
अवैध निर्माण का यह गोरखधंधा केवल धामावाला तक सीमित नहीं है। कांवली रोड पर 6 फीट की गलियों में भी बड़े कॉम्प्लेक्स खड़े किए जा रहे हैं। मुदित गुप्ता नामक व्यक्ति द्वारा बनाए गए इस कॉम्प्लेक्स के खिलाफ भी कई बार शिकायतें दर्ज हुईं, लेकिन हर बार कार्रवाई ठंडे बस्ते में डाल दी गई।
सवाल उठता है कि जब एक आम नागरिक को अपने घर के लिए सरकारी अनुमति लेना जरूरी होता है, तो भूमाफियाओं को इतनी छूट क्यों? क्या ये आदेश महज दिखावा हैं?
सेटिंग-गेटिंग का खुला खेल
इस पूरे भ्रष्टाचार में सबसे बड़ा हाथ एमडीडीए के चंदअधिकारियों का है, जो बिल्डरों के साथ गठजोड़ कर सेटिंग-गेटिंग का गंदा खेल खेल रहे हैं।
फाइलों में दबी कार्रवाई: कोर्ट के आदेशों के बावजूद अवैध इमारतें गिराने की जगह और ऊंची होती जा रही हैं।
राजनीतिक संरक्षण: भूमाफियाओं को नेताओं का खुला समर्थन मिल रहा है।
डर का माहौल: जो भी इनके खिलाफ आवाज उठाता है, उसे धमकियां दी जाती हैं।
जनता की आवाज को दबाने की साजिश
अवैध निर्माणों के खिलाफ बोलने वालों को धमकाकर चुप कराने की कोशिश की जाती है। सवाल यह है कि अगर कोई शिकायत करता है, तो क्या प्रशासन का काम उसे सुरक्षा देना नहीं?
धमकियां और दबाव: शिकायत करने वाले लोगों को प्रतिशोध का सामना करना पड़ता है।
स्थानीय राजनीति का सहारा: अवैध निर्माणकर्ता राजनीतिक दबदबे और माफियाओं से जुड़े हैं।
निवासियों की असहायता: लोग अब प्रशासन से उम्मीद छोड़ चुके हैं।
देहरादून का अस्तित्व खतरे में
अवैध निर्माणों की यह बाढ़ सिर्फ शहर की सुंदरता खराब नहीं कर रही, बल्कि देहरादून के अस्तित्व पर भी सवाल खड़ा कर रही है।
आपातकालीन सेवाओं में बाधा: संकरी गलियों में बनी इन इमारतों से एम्बुलेंस और फायर ब्रिगेड जैसी सेवाओं को परेशानी हो रही है।
यातायात और जल निकासी ठप: अनियोजित निर्माणों की वजह से शहर की सड़कें और ड्रेनेज सिस्टम चौपट हो चुका है।
यह खबर पहली बार 26 जनवरी 2025 को हमारे अखबार ‘सांध्य दैनिक हमारी चौपाल’ में प्रकाशित की गई थी, जिसने न केवल स्थानीय निवासियों बल्कि प्रशासनिक अमले का भी ध्यान आकर्षित किया था। लेकिन अधिकारियों और बिल्डर्स के नापाक गठजोड़ के आगे यह मामला दबा दिया गया, और अब तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई।